गुरुवार, दिसंबर 14, 2017

पहले मेरे बच्चे बाद में कुछ और ........!!!!

पिछले कई दिनों से मेरे घर मे छोटी छोटी चुहिया आ गयी है पहले पहल जब ये आयी थी तब इनकी संख्या एक या दो थी माने अल्पसंख्यक ही थी तो मुझे कोई परेशानी भी नही थी इधर उधर घूमती रहती, यहाँ वहाँ से कुछ भी खा लिया और सारे घर मे खेलती रहती ! मेरा छोटा बेटा इनको देख कर तब बड़ा खुश होता था उसके लिए तो ये चलता फिरता खिलौना थी ! उस वक़्त मैंने भी इनके निवारण के लिए कुछ नहीं किया क्योंकि इनसे कोई परेशानी थी ही नही और वैसे ये भी एक जीव ही है तो क्या हुआ अगर ये मेरे घर मे आ कर रह रही है सभी को जीने का अधिकार है तो मैं क्यों इनसे इनका ये अधिकार छिनू !
दिन बीते हफ़्ते बीते और फिर एक दिन मैंने गौर किया कि अचानक इनकी संख्या बढ़ गयी है अब ये 2-4 की संख्या में नहीं थी पहले वाली चुहिया शायद मेरी शराफत का फायदा उठा कर बाहर से औरो को भी ले आयी थी और अब ये अल्पसंख्यक नहीं थी अब ये धीरे-धीरे बहुसंख्यक में बदल रही थी ! अब इनकी इस बढ़ती संख्या ने धीरे-धीरे मेरे घर की चीज़ों को नुकसान पहुँचना शुरू कर दिया ! इन्होंने सबसे पहले मेरे रसोई में रखी खाने की चीज़ों पर हमला किया आये दिन कभी सब्जियां बर्बाद की तो कभी बच्चों के खाने के लिए रखे बिस्कुट,ब्रेड और नमकीन ! अब मेरा छोटा बेटा भी जो इन्हें पहले देख कर खुश होता था बल्कि इनके आगे पीछे भागता था अब वो भी इनसे डरने लगा और इनके सामने आते ही रोने लगता ! अब जब इनका आतंक बढ़ने लगा तो मुझे भी इनका निवारण करना ज़रूरी लगा तो मैंने घर मे चूहेदानी लगा दी जिसके कांटे में मैंने पनीर का टुकड़ा फँसाया लेकिन ये बड़ी समझदार निकली ये बिना किसी आहट के आती और पनीर लेकर भाग जाती ! मतलब पनीर भी जाता और उसको खाकर ये तंदुरुस्त भी होती और दिन प्रतिदिन इनकी सँख्या बढ़ती गई वो अलग ! और इसके मेरे घर में की जाने वाली इनकी मनमर्जी के तो कहने ही क्या !!
कई दिन तक यूँही चलता रहा,घर मे भी इनकी तेज गंध फैलने लगी साथ ही साथ इनसे होने वाली बीमारियों का डर भी सताने लगा, लेकिन जब देखा कि बहुत कोशिशों के बाद भी ना ही ये पकड़ में आ रही और ना ही इनके बढ़ते आतंक में कोई कमी आ रही तो तब मैंने इनको पकड़ने के लिए स्टिकी कार्ड का इस्तेमाल करना ठीक समझा, वो कार्ड जिस पर आते ही चुहिया वही उस कार्ड पर चिपक जाती है और मरने तक तड़पती रहती है हालांकि ये उपाय बड़ा ही क्रूर और बर्बर था क्योंकि इसमें इनकी मौत तड़प-तड़प कर होनी थी, लेकिन जब इन चुहियों के आतंक से मेरे घर के सामान पर और मेरे बच्चों पर इनका प्रतिकूल असर पड़ने लगा तो मुझे यही सही लगा और मैंने रात को कार्ड लगा दिया सुबह उठ कर देखा तो उस पर एक चुहिया चिपकी हुई थी जो शायद तड़प तड़प कर मर चुकी थी जिसका मुझे बड़ा दुःख भी हुआ और खुद पर गुस्सा भी आया कि उसे ऐसे क्यों मारा लेकिन फिर सोचा अगर ये शांति से रह लेती तो शायद इसके साथ ये ना होता लेकिन नहीं ये तो मेरे घर रहकर मुझे ही सताने लगी थी बस यही वजह थी जो मुझे ये कड़ा कदम उठाना पड़ा ! खैर मैंने वो कार्ड उठा कर फेंक दिया और अपने काम मे लग गयी !
इस एक घटना के बाद मैंने नोटिस किया कि सारी चुहियाँ अचानक से गायब हो गई, जैसे सभी ने एकसाथ ही मेरे घर से पलायन कर दिया हो, मै ये देख कर बड़ी ख़ुश हुई मुझे लगा वाह चलो एक चुहिया की मौत बाकियों को काफ़ी कुछ सीखा गयी, लेकिन मेरी ये खुशफहमी ज्यादा देर ना रही !
अभी कल ही की बात है जब मैं घर के परदे बदल रही थी तो अचानक ही एक चुहिया पर्दो में लटकी हुयी दिखी जो वहाँ हवा में लटके हुए करतब दिखा रही थी और  उसे देख मैं बहुत डर गई और अब मुझे खुद पर गुस्सा आने लगा कि क्यों मैंने ये यकीन कर लिया कि अब ये मेरे घर को नुक्सान नहीं पहुंचाएंगी ??? क्यों  ये मान लिया कि एक चुहिया की मौत से मुझे बाकी सबसे निजात मिल गया ??? ये मेरी सच में बहुत बड़ी भूल थी, खैर अब इनसे छुटकारा पाने के लिए  मुझे इनका कुछ पक्का इलाज करना होगा वरना ये यूँही गाहे बगाहे नुक्सान पहुंचाती रहेंगी और वैसे भी जब बात मेरे बच्चों के स्वस्थ जीवन की है तो उसके लिए थोड़ा सा क्रूर बनना शायद ग़लत नहीं होगा !
और यही हालात आजकल कुछ धर्म और समुदाय विशेष के भी है जिनका इलाज बहुत  जरुरी हो गया है ! खैर अब और क्या कहूँ इस बारे में क्यूँकि यहाँ समझदार भी सभी है और ज्ञानी भी !!

सोमवार, दिसंबर 11, 2017

जिंदगी की राजनीति !

1.बीती गर्मियों की बात है मेरे छोटे बेटे को बीमारी की वजह से एक प्राइवेट हॉस्पिटल में 10 दिन के लिए एडमिट होना पड़ा था जिसमे से 3 दिन वो आईसीयू में रहा था ! जब 10 दिन बाद सुबह उसे डिस्चार्ज किया तो हॉस्पिटल ने बिल दिया 78 हज़ार का, बिल 78 हज़ार का इसलिए था क्योंकि बेटे का मेडिक्लेम करवाया हुआ था ! हॉस्पिटल ने बिल मेडिक्लेम कम्पनी में
भेजा और हमें कहा आप एजेंट को बता दीजिए ताकि वो जल्द इसे पास करवाये और फिर आपको डिस्चार्ज मिल जाएगा !
हमने एजेंट से बात की उन्होंने थोड़ी देर बाद बताया कि कंपनी ने क्वेरी डाली है कि हॉस्पिटल ने लूज मोशन जैसी बीमारी में इतने लंबे टाइम के लिए पेशेंट को क्यों रखा और आईसीयू से डिस्चार्ज होने के बाद भी 5 दिन हॉस्पिटल में रोके रखने की क्या जरूरत थी ??? खैर, हॉस्पिटल ने दोबारा दूसरा बिल तैयार किया और भेजा अब बिल गया 73 हज़ार का , मेडिकल कंपनी ने ये भी पास नही  किया उसने नई क्वेरी लगाई की हॉस्पिटल ने जो टैस्ट करवाये है उनकी जरूरत क्यों पड़ी और इसका जवाब उन्होंने सीनियर डॉक्टर्स से लिखित में माँगा उसके बाद तीसरी बार बिल गया 70 हज़ार का जिसे मेडिकल कंपनी ने फाइनली 68 हज़ार का पास किया !
अब हॉस्पीटल वालों ने हमे 4 हज़ार का बिल अलग से दिया और बोले ये आपको भरना पड़ेगा क्योंकि आईसीयू में जो अक्यूपमेंट्स इस्तेमाल हुए है वो मेडिकल के अंडर नहीं आते इसलिए ये बिल आप भरो हमने एजेंट को पूछा उन्होंने कहा हाँ होता तो लेकिन इतनी देर से जब बिल जा रहे थे ये तब क्यों नहीं बोले ?? बिल पास होने में सुबह से रात हो चुकी थी तो हमने भी ज्यादा बहस ना करके 4 हज़ार भर दिए !
TPA पेपर्स साइन करने के लिए जब मैं गयी तब मैंने वहाँ बैठी लेडी से पूछा मैडम अगर यही बिल आप कैश में देते तो बिल कितने का होता पहले तो उसने मुस्कुरा कर टाल दिया फिर जब मैंने दोबारा पूछा तो बोली मैडम अगर ये बिल कैश पेमेंट से होता तो ये डेढ़ लाख से ऊपर जाता !
अब दूसरी कहानी
2. मेरे परिवार की ही एक लेडी जिन्हें कुछ साल पहले रसोली हो गयी थी और जिसका उन्होंने एक प्राइवेट हॉस्पिटल में ऑपरेशन करवाया जिसमें ऑपरेशन के बाद उनका यूटरस निकाल दिया गया अब ऑपरेशन के तकरीबन एक साल बाद उन्हें फिर से दर्द शुरू हुआ उन्होंने उसी गायनोक्लोजिस्ट को दोबारा दिखाया डॉक्टर ने कुछ दिन ट्रीटमेंट किया जब फर्क नही पड़ा तो उन्हें अल्ट्रासाउंड कराने को बोला तो उस लेडी ने एक प्राइवेट हॉस्पिटल में अल्ट्रासाउंड करवाया जिसकी रिपार्ट  उन्हें शाम को मिली जब रिपोर्ट लेजाकर उन्होंने गायनोक्लोजिस्ट को दिखाई तो डॉक्टर हैरान , डॉक्टर ने खुद उसी समय हॉस्पिटल में फ़ोन करके पूछा कि रिपोर्ट किसकी दी  है हॉस्पिटल स्टाफ ने कन्फर्म किया कि रिपोर्ट उन्ही लेडी की है ! दरअसल रिपोर्ट में ये था कि लेडी को दर्द यूटरस में सूजन की वजह से हो रहा है जबकि यूटरस तो था ही नही ! लेडी ने कंज्यूमर कोर्ट में केस फाइल किया हुआ है और ये केस फाइल होने के बाद हॉस्पिटल ने उस लेडी को केस वापस लेने के लिए एक अच्छा खासा अमाउंट आफर किया  जो उन्होंने लेने से मना कर दिया केस 1 साल से कंज्यूमर कोर्ट में है !
अब तीसरी कहानी
3. 2 साल पहले मेरे जेठ यानी मेरे पति के बड़े भाई को अचानक पीठ और कंधों में दर्द शुरू होने लगा उन्होंने पेन रिलीफ जेल लगा लिया है और शॉप पर ही काम करने वाले लड़के से ही अपने कंधे दबवाने लगे लेकिन उन्हें आराम नही  मिला और वो घर आ कर लेट गए जब काफी देर बाद भी कोई आराम नहीं मिला और उन्हें बेचैनी और सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो उन्हें पास ही के प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए जहाँ ड्यूटी डॉक्टर्स ने चेक करने के बाद पेन रिलीफ इंजेक्शन लगा दिए और कहा कि थोड़ी देर बाद आराम आ जायेगा आप इन्हें ले जा सकते है लेकिन उन्हें फिर भी आराम नही आया तो डॉक्टर्स ने एक ट्राई लेते हुए कहा कि आप इनका एक ECG करवा लेना अगर ये ज्यादा परेशान  हो तो तब मेरे फादर इन लॉ ने कहा अगर जरूरत है तो आप ही क्यों नही  कर देते वैसे भी इन्हें अभी तक आराम नही मिल रहा ! डॉक्टर्स ने पापा के कहने पर उनका ECG किया और जब उसकी रिपोर्ट आई तो सबके होश उड़ गए ! दरअसल वो मामूली दर्द नहीं एक मेजर हार्ट अटैक था ! और रिपोर्ट के अनुसार उनके पास बचने के 30% चांस थे ! हर कोशिश की हर कॉन्टेक्ट यूज़ किया लेकिन कोई उन्हें नहीं बचा सका ! आज भी याद है जब उन्हें घर लाया गया तो उनकी बेटियों ने हमसे चिपक कर रोकर रोकर बारबार यही पूछा चाची पापा कहाँ गए चाची पापा को क्या हुआ पापा कुछ बोल क्यों नहीं रहे ! हमारे पास उस वक़्त सिवाय आंसुओ के और कुछ नहीं था !! 😔😔😔
अब बात आती है दिल्ली के शालीमार बाग के  मैक्स हॉस्पिटल की जिसका लाइसेंस सस्पेंड किया गया है तबसे कुछ लोग ऐसे हाय तौबा मचा रहे है कि जैसे हॉस्पिटल ही बन्द हो गया हो ! भई सिर्फ़ नए पेशेंट को एडमिट करना बंद हुआ है जो पहले से एडमिट है उनका इलाज अब भी चल रहा है और वैसे कौन सा ऐसा समझदार होगा जो उस हॉस्पिटल में इलाज कराना चाहेगा जहां जिंदा बच्चे को मरा बता कर उसे पैक करके दे दें !!  एक बार जरा उस बच्चे के माँ बाप से पूछना उन्हें कैसा लगा !!?? वैसे भी  जिस आम जनता की परेशानी की बात आप कर रहे हो वो आम जनता उसका बिल भी नहीं भर पाती !! एक मामूली सी बीमारी का भी ये हॉस्पिटल 2 या 3 दिन का बिल भी 1 लाख से नीचे नहीं बनाते ! इन हॉस्पिटल्स में बिना मेडिक्लेम के जाने के बारे में बन्दा सोचता भी नहीं है और अगर जाना भी पड़े तो भई रिसेप्शन वाले पहले आपसे आपकी हैसियत पूछते है उसके बाद आपको एडमिट करते है !
तो हर चीज़ में अपनी गंदी राजनीति मत घुसेड़ो, ज़रूरी नहीं कि समर्थन और विरोध की राजनीति हर बार ज़रूरी हो ! अगर इस एक फैसले से बाकी हॉस्पिटल्स को भी अक्ल आये तो ये सभी के लिए अच्छा ही होगा !
बाकी जिस पर बीतती है असल दर्द वही जानता है !