रविवार, मई 24, 2020

भाई भी खास है

#भाई_दिवस
हांजी आज भाई दिवस मतलब #brothers_day है ! हाँ हाँ पता है पता है आप लोग क्या बोलोगे ....क्या ये फालतू के चोंचले है कभी ये दिन कभी वो दिन कभी इसका कभी उसका, अरे हटाओ यार ये सब बेकार के दिन है सब अंग्रेजी ड्रामे है ......हम नही मानते इस सब को !😏😏 
तो भई बात ऐसी है जब आप अंग्रेजो के दिये daughter's day, mother's day, father's day, womens day , mens day और सबका चहेता Valentine's day मना सकते हो तो भई भाईयों ने क्या बिगाड़ा है ??? एक स्पेशल दिन इनको भी दे देते है कर लेते है इनकी भी थोड़ी सी तारीफ़, जता लेते है इनसे भी थोड़ा प्यार फिर बाकी के 364 दिन है ही इनसे लड़ने झगड़ने के लिए ....!
हाँ तो बात है आज भाईयों की, ये जो हमारे भाई लोग होते है ना एकदम नारियल जैसे होते है ऊपर से तो एकदम सख्त और अंदर से तो आप समझ ही गए होंगे ...बल्कि ये हमारी जिंदगी के सबसे पहले क्राइम पार्टनर होते है ! इनके साथ मिलकर बचपन के  किये हुए क्राइम हमेशा यादगार रहते है ! कभी साथ मे स्कूल बंक करना, कभी साथ मे घर से मिले सामान लाने के पैसों में साथ मे हेर फेर करना, कभी साथ मिलकर किसी रिश्तेदार को तंग करना, कभी साथ मिलकर पड़ोसी की छत पर उधम मचा लेना,कभी साथ मिलकर एक दूसरे को मम्मी पापा की डाँट से बचा लेना और कभी बैक फायर होने पर एक दूसरे को पिटवा भी देना , कभी साथ मिलकर घर मे आई मिठाईयों पर हाथ साफ कर लेना और बाद में एक दूसरे पर इल्जाम लगाकर खुद शरीफ बन जाना , कभी मम्मी पापा की डाँट खाने के बाद चुपके से उनकी नकल करना और हां सबसे इम्पोर्टेन्ट , भाईयों का अपनी बहन के कपड़ो को पहन कर मटकना, बहन की छुपाई हुई चॉकलेट्स खा जाना, बहन के बाल खींचना, उसे पापा की लाडली कह कर चिढाना , मम्मी से अपनी बहन की शिकायतें लगाना उसे लगातार तंग करना ....और भी ना जाने क्या क्या करना और हाँ थोड़े बड़े होने पर एक दूसरे के सीक्रेट्स को अपना सीक्रेट्स समझ कर मम्मी पापा से छुपा भी लेना !
ऐसे ही प्यारे से होते है हमारे भाई बल्कि बचपन से लेके आखिर तक ये हमारे एक चलते फिरते सिक्युरिटी गार्ड भी होते है ! बहन जब भी कहीं घर से अकेले बाहर जाएगी तो पापा की इंस्ट्रक्शन मिलने पर ये भी उनके साथ चले जायेंगे एक दम सिक्योरिटी गार्ड बन कर भले खुद बहन से 5-6 साल छोटे हो लेकिन क्या मज़ाल जो ये बहन के सामने बड़े भाई से कम रियेक्ट करें .....!!!
बहन की जगह अगर छोटा भाई हो ना तो ये उसको भी एकदम ऐसे ही ट्रीट करते है बल्कि तब शरारतें थोड़ी और ज्यादा हो जाती है, और फिर इन्ही सब शरारतों के बीच जब भाई बहन बड़े होकर अपने अपने कामो में अपने अपने घर परिवार में व्यस्त होते है ना तो ऐसा ही एक स्टूपिड सा दिन आता है जो पुरानी यादों को हवा दे जाता है और याद कराता है भाईयों का प्यार उनका गुस्सा उनका लड़ना झगड़ना उ का वक्त बेवक़्त तंग करना उनकी बातें उनकी बचपन की यादें आदि आदि आदि तब हमें उस वक्त महसूस होता है कि कितना अनमोल रिश्ता है हमारे पास ...!😊
अपने भाई के अलावा भी यहाँ फेसबुक जैसी जगह पर भी कुछ लड़के ऐसे ही है जिनके साथ भले हमारा बचपन ना बीता हो लेकिन यहाँ वो हमारा साथ एक भाई की तरह ही देते है एक भाई की तरह ध्यान भी रख लेते है और कभी कभी तो अपनी आईडी से ज्यादा आपकी आईडी पर नजर रख कर चुपके से आपको इनबॉक्स में आकर बता जाएंगे कि यहां किससे दूर रहना है और किसको ब्लॉक करना है 😁😁 ख़ैर मानो तो इनमें भी एक फिक्रमंद भाई दिखेगा और ना मानो तो अपना भाई भी अपना हितैषी नहीं लगेगा बाकी हर रिश्ते के कई पहलू होते है लेकिन आज इनके दिन पर यही सही ....💝

#happy_brothers_day

मंगलवार, नवंबर 19, 2019

पुरुष दिवस

पुरुष एक ऐसी वेदना है जिसकी संवेदना को बचपन से ही मारना शुरू किया जाता है ! बचपन मे अगर कभी उसकी आँख में आँसू आए तो कहा जाता है "ये क्या तू लड़कियों की तरह से रो रहा है चुप कर" ! मतलब रो कर अपनी पीढ़ा जाहिर करने का  पहला और अंतिम अधिकार लड़कियों का है लड़को का नहीं ! लड़को को बचपन मे उनके खिलौने उनके खेल उनके काम बिल्कुल अलग करके दिए जाते है  क्योंकि ईश्वर ने उन्हें शुरू से ही शारीरिक बलवान बनाया है तो समाज ने भी उनकी इस विशेषता का ध्यान रखते हुए उन्हें लगातार बलशाली कामो की तरफ़ धकेला है ! उनका ये बलशाली होने का टैस्ट उनके बचपन से ही शुरू हो जाता है घर मे कोई भारी चीज़ इधर से उधर करनी है तो बुलाओ लड़के को , रसोई में कोई स्टील का डब्बा खुलने में दिक्कत दे रहा है तो बुलाओ लड़के को , छोटी बहन तो क्या बड़ी बहन को भी अगर बाहर जाना है तो भेजो साथ मे लड़के को, बाहर से कोई सामान लाना है तो फिर से लड़का, आधी रात को अचानक कोई बीमार हो जाये तो लेके जाए लड़का (और हाँ इसके साथ सख्त हिदायत कि बीमार के पास खड़े होकर आँसू नहीं बहाने क्योंकि रोने धोने का काम लड़कियों का है), घर मे कोई रिश्तेदार आ जाये तो बाहर से नाश्ता पानी लाना हो तो भेजो लड़के को, यहाँ तक कि घर मे कोई चूहा,छिपकली, कॉकरोच मर जाए तो उसकी लाश उठा कर ठिकाने लगाने के लिए भी बुलाओ लड़के को .....!!!!
मतलब लड़का ना हुआ कोई चलता फिरता बिना भाव का रोबोट हो गया ! जिसे कहीं भी कभी भी अपने बारे में ना तो बोलना है और ना सोचना है क्योंकि ऐसा कुछ भी करना उसको सीधा स्वार्थी होने का खिताब देगा और पितृसत्तात्मकता का तमगा मिलेगा वो अलग ! इन्ही सब के चलते इनके साथ होता क्या है कि ये खुद को एक्सप्रेस करना भूल जाते है या यूं कहिए इन्हें ये शिक्षा कभी दी ही नहीं जाती कि अपना मन सामने वाले के आगे कैसे खोला जाए और यहीं से ये लोग बस एक कमाऊ मशीन बन कर रह जाते है !  सुबह से शाम तक कमाओ फिर आओ खाओ सो जाओ ! अगले दिन से फिर वही रूटीन ! वक्त के साथ एक टॉइम ऐसा आता है जहाँ ना ये अपने बारे में बोलना चाहते ना कोई और इनके बारे में सुनना चाहता ! फिर भी कहीं कोई इनसे इनके बारे में कुछ पूछ भी ले तो इनके पास खुद को ब्यान करने के लिए शब्द नहीं होंगे ! 
आज भी #मेंस_डे होने के बाद भी कोई इनको विश भी करें तो दाँत निपोर कर रह जाएंगे ! आज सुबह ही जब मैंने अपने हसबेंड को मेंस डे विश किया तो उनका शर्माना देखने लायक था इसपर जब पूछा क्या गिफ़्ट चाहिए तो जवाब मिला "तुझे कुछ चाहिए तो तू ले आ मुझे कुछ नहीं चाहिए" ! मतलब भावनाओ के साथ इनकी इक्छाये भी खत्म ! ऐसे होते है पुरुष ! हालांकि जैसे अपवाद महिलाओ में है वैसे ही अपवाद पुरुषों में भी है लेकिन को अलग बहस का मुद्दा है और आज इनके दिन पर कोई बहस नहीं ! 
आख़िर में पूरे पुरुष समाज को Happy #international_mens_day 💐

गुरुवार, अगस्त 08, 2019

एक चाहत .…...!

डियर अन्नया,  
यही नाम सोचा था मैंने तुम्हारे लिए जब पहली बार तुम्हारा ख्याल आया था, जब पहली बार मुझे पता लगा था कि फिर से कोई मेरे घर में आने वाला है उस दिन से तुम मेरा सपना बन गई जिसे मैं बस पा लेना चाहती थी तुम्हें पाने की चाहत ऐसी थी कि उस वक्त कोई भी मुझसे ये कह देता कि तेरे घर लड़की ही आएगी तो मैं मारे खुशी के,थोड़ा और एक्स्ट्रा खा लेती थी ! उस टाइम तो तुम्हारे लिए चाहत इतनी बढ़ गई थी कि मैं उस वक्त बड़ों की दी गई सारी नसीहतें झट से मान लेती थी कि बस तुम में कोई कमी ना रह जाए मेरी वजह से  ! तुम्हें पता है, मैं जब भी मार्केट में कोई नई ड्रेस देखती  तो उसमें तुम्हें ही इमेजिन कर लेती थी और सोचती थी जब मेरी बेटी इसे पहनेगी तो कैसी दिखेगी बल्कि एक बार तो मैं एक छोटी सी सुंदर सी फ्रॉक ले भी आई थी, यह सोच कर कि जब तुम आओगी ना तो मैं तुम्हें यही फ्रॉक पहनाऊंगी और बस ऐसे ही तुम्हें सोच सोच कर नए-नए सपने बुनती रहती थी ! मैं बहुत खुश रहती थी, तब तुम्हारे बड़े भाई से भी तुम्हारी बाते कर लेती थी ! इसी तरह टाइम बीतता था मेरा और फिर वह दिन आ गया जब मैं ऑपरेशन थिएटर में पहुंच गई और बस तुम्हें पा लेने के लिए बहुत ज़्यादा एक्साइटेड हो गई कि बस अब थोड़ी देर बाद तुम मेरी गोद मे आ जाओगी ! फिर बस मुझे एक इंजेक्शन लगा और मैं धीरे-धीरे अपने होश खोने लगी और बन्द आंखों में तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा मुझे धुँधला सा नज़र आने लगा ! तभी अचानक फिर एक बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी तो मैं थोड़ा होश में आई और मैंने फौरन डॉक्टर से पूछा डॉक्टर क्या हुआ है ?? डॉक्टर ऑपरेशन करते करते हँसते हुए बोली क्या चाहिए तुम्हें शाहरुख या करीना ?? मैंने बोला आप बताओ ना ...डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोली , बेटा हुआ है !! क्या ??? यह सुनते ही मैं जोर जोर से रोने लगी और बोलने लगी मुझे नहीं चाहिए बेटा मुझे तो बेटी ही चाहिए !! मुझे याद है मैंने रोते रोते अपने हाथ से वो ग्लूकोस का पाइप भी खींच कर निकाल दिया था और तब फिर उस एनेस्थीसियन ने मेरे दोनों हाथ कस के पकड़ कर मुझे लिटा दिया !! मैं बस रोये जा रही थी कि ये क्या हो गया मेरे साथ मुझे तुम क्यों नहीं मिली ?? मेरा सपना एकदम से टूट गया  फिर जब डॉक्टर ने मुझे मेरे बेटे को दिखाया उस वक्त वो बहुत प्यारा लग रहा था उस टाइम वो एक दम सुर्ख लाल गुलाबी सा, मैंने तब उसका माथा चूम लिया और एक बार फिर तुम्हे याद करके रो पड़ी !!! तब उस एनेस्थीसियन ने और डॉक्टर ने बहुत समझाया और तब मुझे यही समझ आया कि तुम मेरे लिए थी ही नहीं तुम बस एक गहरा सुर्ख सपना थी जो मैंने खुद के लिए बुन लिया था ! उसके बाद धीरे धीरे मैं उस वक्त तुम्हें भूलने लगी लेकिन वो कहते है ना दिल से की गई चाहत और दिल से देखा गया सपना कभी भुलाया नहीं जा सकता बस यही मेरे साथ हुआ, उस दिन से लेकर आज तक  मैं जब भी किसी छोटी बच्ची को देखती हूं, तो मुझे बस तुम याद आ जाती हो !  कभी-कभी तो कोस भी लेती हूं खुद की किस्मत को कि मुझे तुम क्यों नहीं मिली फिर याद आती है किसी की कही वो एक लाइन, " बेटियाँ किस्मत वालों को ही मिलती है !"
तुम्हारी ना बन सकी माँ
सोनी गर्ग गोयल 

मंगलवार, जुलाई 16, 2019

इश्क़ में लड़किया पागल होती है, प्रैक्टिकल नहीं !!!

"प्यार कब कहां किसी का पूरा होता है
 प्यार का तो पहला अक्षर ही अधूरा होता है" 
बस इन्हीं दो लाइनों में प्रेम के प्रतिरोध का सार छुपा है लेकिन सिर्फ उन लोगों के लिए जिनका प्रेम उनकी मंजिल तक नहीं पहुंचा, बाकी उन लोगों के लिए तो यह सिर्फ 2 लाइनें हैं जिन्होंने पहले प्यार  किया और फिर  एक सफल शादी भी की ! ऐसे बहुत से जोड़े आगे चलकर कई युवाओं के मार्गदर्शक बनते  तो कुछ युवाओं की हिम्मत और बस ऐसे ही यह चेन  बढ़ती जाती है लेकिन कई बार इस बढ़ती हुई चेन में कुछ ऐसी कड़ियां भी जुड़ जाती हैं जिनमें बहुत जल्दी जंग लग जाती है और वो कड़ी पूरी चेन  के लिए थोड़ी अपमानजनक भी  साबित होती है !  असल में इस प्रेम विवाह की चेन  में जुड़ना बहुत आसान नहीं तो बहुत मुश्किल भी नहीं है लेकिन प्रॉब्लम तब आती है जब पीयर प्रेशर के चलते या किसी दिखावे के चलते या अपनी नासमझी के चलते इस प्रेम विवाह की चेन में जबरदस्ती घुसा जाए !!
नेहा, दिल्ली शहर में रहने वाली एक 24 साल की लड़की जिसको अचानक से एक लड़के से प्यार हो जाता है लड़का छोटी जात का और लड़की बड़ी जात की, लड़की एक मशहूर रईस परिवार की बेटी और लड़का एक लोअर मिडल क्लास से आने वाला, जोकि जूते के शोरूम पर जूते दिखाने का काम करता है दोनों एक सोशल मीडिया साइट पर मिलते हैं और वहीं से बातों बातों में दोनों को प्यार हो जाता है धीरे-धीरे दोनों का मिलना जुलना  घूमना फिरना रेस्टोरेंट में साथ में  लांच लेना शुरू होता है जिसके  बिल अक्सर लड़की ही चुकाती थी ! कुछ सालों के इस कथित प्यार के बाद बारी आई शादी की,जब लड़की के घर वाले लड़की के लिए एक अच्छे लड़के की तलाश कर रहे थे तभी लड़की उन्हें अपने प्रेम के बारे में बताती है और कह देती हैं कि वह शादी करेगी तो सिर्फ उसी लड़के से जिससे वो प्यार करती है एक हिंदुस्तानी पिता होने के नाते लड़की के बाप ने पहले तो बात सुनते ही बिल्कुल मना कर दिया लेकिन जब लड़की के रोज-रोज के रोने और किसी और से शादी ना करने की जिद सर चढ़ने लगी तो हार कर लड़की के पिता ने लड़की से लड़के को घर पर बुलाने को कहा !  इस सबके दौरान लड़का अपने परिवार वालों को नेहा के लिए मना चुका था ! इस वजह से लड़की के पिता से मिलने ना सिर्फ लड़का आया बल्कि उसके परिवार के कुछ सदस्य भी आए जिन्होंने लड़की के पिता को भरपूर समझाने की कोशिश की कि बच्चों का प्यार है बच्चों की आपसी समझ है हमें और आपको इन्हे आशीर्वाद देकर इन की शादी कर देनी चाहिए लड़की के पिता ने कुछ टाइम मांग कर उन्हें अपने घर से भेज दिया ! उनके जाने बाद लड़की के पिता ने अपनी लड़की को बहुत समझाया कि लड़का आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है और वो लड़की के खर्चे नहीं उठा पायेगा लेकिन लड़की टस से मस मस नहीं हुई ! लड़की के पिता ने बाकी दो छोटी बहनों की भी दुहाई दी  कि अगर तू इस तरह करेगी तो छोटी बहनों के साथ क्या होगा लेकिन लड़की फिर भी मानने को तैयार नहीं लड़की पर सिर्फ लड़के  प्यार का पागलपन सवार था लड़की की मां ने भी समझाया कि वह परिवार हमारी बराबरी का नहीं है और जितने शौक तेरे इस घर में पूरे होते  हैं उस घर में पूरे नहीं हो पाएंगे और फिर रोयेगी वो अलग !  लड़की किसी भी तरह से मानने को तैयार नहीं कई हुई ! दिन बीते, हफ्ते बीते, महीने बीते, लेकिन लड़की मानने को राजी नहीं और आखिरकार 1 दिन लड़की ने वो किया जिसकी उसके पापा को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, एक रात लड़की, लड़के के साथ घर छोड़ कर चली गई घर ! फिर तकरीबन 1 हफ्ते बाद लौटी और जब आई तो उसने बताया कि वह उस लड़के के साथ शादी कर चुकी हैं यह सुनते ही उसके पिता ने एक भारतीय पिता की तरह उसे  उसी वक्त घर से निकाल दिया यह कहकर कि "जब शादी कर ही ली तो अब यहां क्यों आई है ??,जाए और अपने ससुराल में ही रहे अब वही उसका घर है !"  लड़की भी उसी वक्त अपने घर से चली अभी कुछ महीने ही बीते थे कि वही हुआ जिसका पापा को डर था एक दिन लड़की अचानक रोते हुए घर वापस आ गई और तब अपनी  लड़की को रोते हुए देख कर पापा उसके आंसुओं के आगे हार गए तब से लेकर आज तक उसकी शादी को तकरीबन 5 साल हो चुके हैं और पापा आज भी लड़की को पैसे देते रहते हैं लेकिन इन 5 सालों में लड़की के घर में बहुत कुछ हो चुका है लड़की के पिता पूरी तरह से शराब की आदी हो चुके हैं और लड़की की दोनों छोटी बहने जिसमें से  एक कहीं भी शादी करने को तैयार नहीं है और दूसरी का कहीं भी रिश्ता तय नहीं हो पा रहा !
दूसरी कहानी शिवानी, एक बड़े रसूखदार परिवार की छोटी बेटी जिसे जॉब करते करते एक लड़के से प्यार हो गया और यहां भी वही लड़की अमीर लड़का गरीब !  जात की बात रहने ही  देते हैं क्योंकि शहरों में जात बिरादरी से कहीं ज्यादा परिवार वालों का स्टेटस मैटर करता है जात बिरादरी तो फिर भी अब नजरअंदाज कर दी जाती है ! इस कहानी में भी यही हुआ लड़की के घरवालों ने लड़की को बहुत समझाया बहुत मनाया लेकिन लड़की मानने को राजी नहीं और जब लड़की को भी दिखा कि उसके परिवार वाले नहीं मान रहे हैं और लगातार उस पर कहीं और शादी कर लेने का दबाव बना रहे हैं तो उस लड़की ने लड़के के साथ कोर्ट मैरिज कर ली और जब घर आकर अपने परिवार को बताया तो उन्होंने भी उसी वक्त लड़की को घर से बाहर निकाल दिया कि जब शादी कर ही ली तो अब यहां किस लिए आई है जो परिवार तुमने सुना है उस में खुश रहो ! इस शादी में लड़की को तकरीबन डेढ़ 2 साल बीत चुके थे इस दौरान उसकी बेटी भी हुई ! शादी के 3 साल बीत जाने के बाद जब लड़की के छोटे भाई की शादी की बात हुई तो सभी के कहने और समझाने पर लड़की के माता-पिता ने लड़की के घर भी कार्ड भेज दिया लड़की भी भाई की शादी में आ गई मां बाप और सभी परिवार वालों से मिलकर खुश हुई जब परिवार के  कुछ लोगों ने लड़की से उसके ससुराल के हालचाल जाने तो पता लगा लड़का घर में रहता ही नहीं है, बस महीने में एक दो बार आ जाता है ! शादी क बाद से ही लड़का दिल्ली से बाहर रहकर नौकरी करने लगा ! अब घर में लड़की अकेले रहती है अपनी बेटी के  साथ ! परिवार क पूछने पर लड़की ने बताया की उसे ये सब अपने माँ बाप को बताने की हिम्मत नहीं हुई ! 
इन दोनों की कहानियों में जो की बिलकुल सच है, एक बात जो सामने आयी वो ये कि, इश्क़ करो और जरूर करो लेकिन जब अपने लिए कोई जीवनसाथी चुनो तो व्यवहारिक जरूर बनो क्यूंकि इश्क़ की आग में ना घर चलते है ना जिंदगी की गाडी ! 
#इश्क़ #प्रेमविवाह 



शनिवार, जून 08, 2019

अपना फैसला खुद करो !!

बात पिछले साल की  है जब लविश क्लास २ में था, तब एक दिन स्कूल से आने के बाद जब मैंने उससे रोज़ की तरह उसके बैग से टिफिन निकालते हुए पूछा 
लविश आज टिफिन कैसा लगा ?
थोड़ा गुस्से में और शिकायत करते हुए वो बोला, मम्मा आज मेरा पूरा  टिफिन _____ ने खा लिया !
क्यों ? वो अपना टिफिन नहीं लाया था क्या ???
लाया था, लेकिन उसने पता नहीं कब मेरे बैग से टिफिन निकाल कर लंच पीरियड से पहले ही खा लिया !
तेरा ध्यान कहाँ रहता है तू अपने बैग का ध्यान भी नहीं रख सका और मैडम क्या करती है क्लास में तूने उनको बताया ??
हाँ बताया था मैंने, और मैडम ने उसे बोला कि दोबारा ऐसे नहीं करना वरना पनिशमेंट मिलेगी और मुझे एक बिस्किट का पैकेट दे दिया मैंने लंच में फिर वो खा लिया  !
ठीक है , और आगे से खुद भी ध्यान रखा कर अपने बैग का और सामान का !
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तक़रीबन ३ या ४ दिन बाद फिर यही सब हुआ 
लविश : लगभग रोते हुए , मम्मा _______ ने मेरा टिफिन फिर से खा लिया और मैंने मैम को बोला तो उन्होंने बस उसे डाँट दिया लेकिन पनिश नहीं किया !!!
ठीक है, तू रो मत  मैं कल तेरी मैम से कल बात करती हूँ !!
और ये बात इस बार लविश ने अपने पापा को भी सुबह स्कूल जाने पहले बताई 
पापा कल ना मेरा टिफिन फिर से _______ खा लिया !!
फिर ?
फिर मैंने मैंम को बोला लेकिन मैम ने बस उसे थोड़ा सा डाँट दिया लेकिन पनिश तो किया ही नहीं !!
लविश के पापा : बेटा सुन अगर इस बार वो कभी भी तेरा टिफिन खाये ना तो मैम से कुछ मत बोलियों  तू बस उस _____ के मुँह पर एक खींच कर मारियो तबियत से ...... और डरियो बिलकुल नहीं !!
लेकिन पापा फिर मैम मुझे ही डाँटेगी और डायरी में नोट लिख कर पैरेंट्स  को बुलाएंगी !!
कोई  नहीं वो हम देख लेंगे लेकिन इस बार तू रो कर वापस मत आइयो !!
ठीक है पापा !!

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उस लड़के ने अपने बढ़ते हौसले और मैम के ज्यादा कुछ ना कहने की वजह से फिर वही किया , लेकिन इस बार लविश तैयार था उसने वही किया जो उसके पापा ने उसे समझाया और नतीजा ये हुआ कि पुरे साल उस लड़के ने दोबारा कभी लविश को परेशान नहीं किया !!!! हाँ लेकिन बाद में पता लगा कि बार बार बाकि बच्चों की कंप्लेंट की वजह उसका सेक्शन चेंज करा दिया गया और दुसरे सेक्शन में जाके क्या हुआ पता नहीं ! 

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कहने को तो बस ये एक छोटा सा मामला है क्लासरूम का लेकिन,  अगर समझा जाए तो यही आज का सिस्टम है , अगर मैम यानी प्रशासन ने सबसे पहली शिकायत पर ही एक सही एक्शन/फैसला  लिया होता तो ना उस बच्चे का हौसला बढ़ता और ना ही  लविश यानी विक्टम हिंसक होता !
यही बात #अलीगढ़ मामले में #ट्विंकल के साथ  हुई है !! अगर यहाँ भी पुलिस ने अपना काम पहली ही शिकायत पर ठीक से किया होता तो शायद मामला कुछ और होता लेकिन नहीं ऐसा नहीं हुआ और अब जब दूसरी शिकायत पर आरोपी गिरफ्त में है तो शासन से लेके प्रशासन तक सब लगे है बस हग मूत के लीपने पोतने में !!! और तरस आ रहा है उन माँ बाप पर जो इस उम्मीद है कि दोषी को कड़ी सजा मिलेगी जबकि वो अपनी ही बेटी से दुष्कर्म के इल्जाम पर भी खुला घूम रहा है !!!
जबकि होना ये चाहिए था कि उस बच्ची के माँ बाप को उन दोषियों को देखते ही उन दोनों को अपने हिसाब से उसी वक्त सजा दे देनी थी क्यूंकि प्रशासन ने तो अभी बहुत लीपना है !! 



मंगलवार, अप्रैल 09, 2019

चाय से धोखा

चाय ना हुई, मुआ इश्क़ हो गया,
जब पकती है तो बस इश्क़ सी पकती है
और जब महकती है तो इश्क़ सी ही महकती है
ये चाय,इश्क़ सी ही तो है
ठीक इश्क़ की ही तरह धीरे धीरे उबलती है
और जितनी उबलती है,उतनी ही गहरी होती है
बिल्कुल गहरे लाल सुर्ख इश्क़ की तरह
जैसे चाय में डूबे इलायची,अदरक
चाय का स्वाद बढ़ाते है,वैसे
इश्क़ में डूबे दो प्रेमी,
इश्क़ का स्वाद बढ़ाते है 
लेकिन वो कहते है ना बड़े बुजुर्ग  
ये आजकल का इश्क़ ना हुआ पानी का बुलबुला हो गया 
जितनी जल्दी बना उतनी जल्दी फुस्स 
 वैसे ही है, चाय के नए इश्कबाज़ 
जितनी जल्दी सर्दियों में चाय से इश्क हुआ 
उतनी जल्दी गर्मियों में ये चाय वाला इश्क फुस्स !!!
मतलब ये चाय का इश्क़ भी आजकल का इश्क़ हो गया !
जितना जल्दी इश्क़ उतना जल्दी धोखा !!

#चाय #इश्क़ #गर्मियाँ #धोखा 

शुक्रवार, जनवरी 04, 2019

क्यों पैदा किया

मेरे घर से कुछ दूरी पर एक तीनमंजिला मकान बना हुआ हैं जिसमे एक-एक मंज़िल पर कई कई किरायदार रहते है उनमे से ही एक परिवार ऐसा है जिसमे आठ सदस्य है ! माता पिता,चार बेटियां और दो बेटे ! बेटियां बड़ी हैं और दोनों बेटे छोटे ! अक्सर इनमे से सबसे छोटा बेटा जिसकी उम्र तकरीबन आठ या नौ वर्ष की होगी वो अक्सर हमारे घर खेलने आ जाया करता है पहले आने में हिचकिचाता था लेकिन धीरे धीरे वो खुल गया और मेरे बेटे को भी (जिसकी उम्र दो वर्ष है ) उसके साथ खेलना अच्छा लगने लगा ! अब दोनों शाम को अक्सर साथ खेला करते हैं ! मैं भी अक्सर उनके खेल में शामिल हो जाया करती हूँ इसी दौरान मैं उससे कुछ बातें भी कर लिया करती हूँ और बातों बातों में ही पता चला कि वो आठ सदस्यो का परिवार किस तरह रहता है! हुआ यूँ कि एक दिन जब खेलते खेलते बाहर अन्धेरा नज़र आया तब मेरी नज़र घडी पर गयी देखा तो नौ बज चुके थे, मैंने फ़ौरन उसे उसके घर जाने को कहा, "कहा कि बहुत देर हो गयी है अब तुम अपने घर जाओ तुम्हारी मम्मी चिंता कर रही होंगी " "इस पर वो हँसते हुए बोला कि नहीं मेरी मम्मी कुछ नही कहती" मुझे सुन कर हैरानी हुई ! मैंने फिर पूछा क्यों, तुम्हे देर से जाने पर डाँट नहीं पड़ती ?वो बोला "नहीं बल्कि उसकी मम्मी तो सो चुकी होंगी !" ये बात सुन कर हैरानी और बढ़ गयी सोचने लगी कि कैसी माँ है बच्चा घर से बाहर खेल रहा है और वो सो भी गयी !लेकिन उसके बाद जब मैंने उससे इस सब कि वजह पूछी तो जो बात सामने आयी उससे बड़ी हैरानी भी हुई और तरस भी आया !
असल में उस बच्चे की माँ घरो में झाड़ू पौछे का काम किया करती है और उसके पिता बेलदारी का काम करते है लेकिन फिलहाल वो घर में ही रहते है और उस बच्चे के कहे अनुसार उसके पिता रोज़ शराब पी कर घर में झगड़ा करते है और उस बच्चे को भी अक्सर मारा पीटा करते है जिस वजह से वो बच्चा अक्सर देर रात को ही अपने घर जाना पसंद करता है ! उसके बाद उसने बताया कि उसकी मम्मी रोज़ सुबह घर के सभी सदस्यो के लिए खाना बना कर और बाकी काम ख़त्म करके तक़रीबन छह बजे काम के लिए निकल जाया करती है और साथ उसकी बहने भी घरो में काम करने जाती है ! सबसे बड़ी बहन के बारे में उसने बताया कि उसकी शादी हो चुकी है और वो भी घरो में काम किया करती है और एक बहन किसी के घर में रहती है और वही रेह कर काम करती है !फिर मैंने पूछा और तुम दोनों भाई क्या करते हो तो वो तपाक से बोला मेरा भाई मोबाईल की दूकान पर काम करता है (जिसकी उम्र उसे पता नहीं बस इतना पता है कि वो आठवी क्लास में पढता है) और उसे पाँचसौ रुपए महीना मिलता है, और मैं यहाँ आ जाता हूँ ! ये सब सुन कर सच में एक बार तो बड़ा गुस्सा आया कि कैसे माँ बाप है जो अपने बच्चो से इतनी छोटी उम्र में काम करवा रहे है और जिन्हे अपने बच्चो की बिलकुल फ़िक्र ही नहीं कि वो सारा दिन कैसे रहते है कहाँ जाते है क्या करते है ?
अक्सर जब किसी बच्चे को इस तरह के हालात में देखती हूँ तो यही एक सवाल मन में उठता है कि आखिर क्यूँ इसके माँ बाप ने इसे पैदा किया जब वो इसे सही ढंग से पाल ही नहीं सकते तो क्यूँ इस बेचारे की ज़िंदगी इतनी बत्तर बना दी ? ये सवाल मैं अक्सर जब किसी माता पिता से पूछती थी तो जवाब मिलता था "अरे बेटा ये किसी के हाथ में नहीं होता ऊपरवाले ने इनकी किस्मत में यही लिखा है तो कोई क्या करें, कौन से माँ बाप चाहते है कि उनका बच्चा भूखा रहे और पढ़ लिख न सके !" उनकी इस बात पर मैं अक्सर यही सोचती अरे किस्मत उपरवाले ने लिखी है लेकिन किस्मत लिखवाने के लिए ऊपरवाले के पास पैदा करके तो माँ बाप ने ही भेजा है !लेकिन इस सबके बीच एक और बात भी सामने आती और वो ये कि बहुत से लोग सिर्फ एक लड़के के माता पिता कहलाने के चक्कर में इतने बच्चे पैदा कर लिया करते है ! अगर इस बात पर गौर करा जाए तो जिस परिवार का ज़िक्र मैंने किया है उसमे भी चारो बेटियां बड़ी ही है और बेटे छोटे, तो ये माना जा सकता है कि शायद उस माँ ने भी एक अदद बेटे की चाह में इतने बच्चो को जन्म दिया हो !
उफ्फ्फ !! मतलब फिर वही सब, घर में एक बेटा होना चाहिए बड़ा होकर जो माँ बाप का सहारा बनेगा कुल का नाम आगे बढ़ाएगा वगैरह वगैहरा !! अब बेटा होना चाहिए या नहीं होना चाहिए मैं इस विषय पर बात नहीं करना चाहती, हाँ लेकिन मैं एक सवाल उन सभी माता पिता से ज़रूर पूछना चाहूंगी जिन्होंने बेटे कि चाह में कई बच्चे पैदा किये है, क्या वो अपने सभी बच्चो को भरपूर पालन पोषण कर रहे है ?? इसे कुछ यूँ समझते है अभी मैंने ऊपर जिस लड़के की बात की मैं यहाँ भी उसी का उधाहरण देते हुए कहूँगी मैं जब भी उससे कुछ खाने के लिए पूछती तो वो झट से हाँ कह देता और जो भी मैं उसे देती वो बिना स्वाद लिए झट से खा लेता है धीरे धीरे वो रात का खाना भी मेरे बेटे के साथ ही खा कर जाने लगा और मैं भी बड़े शौक से दोनों को खाना खिला देती लेकिन धीरे धीरे मुझे अहसास हुआ कि वो खाना खाने के बाद फ़ौरन ही अपने घर चला जाता था लगा जैसे वो सिर्फ खाना बनने के इंतज़ार में है इतिफाक कि बात है कि अगले ही दिन मुझे खाना बनाने में थोड़ी देर हो गयी और मेरा बेटा भी दूध पी कर सो चुका था तो बचपन मैंने भी उसे जाने के लिए कह दिया लेकिन उस दिन उसका जाने का मन नहीं हुआ असल में वो खाने के इंतज़ार में था तभी मैंने उससे पूछा कि तुम्हारी मम्मी ने क्या बनाया है उसने कहा "पानी वाले आलू" और साथ में ये भी कहा कि उसे वो अच्छे नहीं लगते ! मैंने कहा ठीक है थोड़ी देर रुको फिर यहीं खाना खा जाना और उस दिन के बाद से वो अक्सर रात का खाना मेरे घर पर ही खा कर जाने लगा इस दौरान मैंन जब भी उससे पूछा कि तुम्हारे घर पर क्या बना है तो उसके जवाब में अक्सर पानी वाले आलू ही हुआ करते थे ! अब कोई ये समझाए कि प्रतिदिन आलू कि सब्ज़ी और रोटी खिला देने भर को सम्पूर्ण पोषण कहा जा सकता है ?
अब तक मैंने एक ख़ास वर्ग कि ही बात की लेकिन ये बात सभी पर लागू होती जब हम अपनी कमाई से इतने बच्चो का पालन नहीं कर सकते इन्हे भरपेट भोजन नहीं से सकते, इन्हे अच्छी शिक्षा नहीं दे सकते, तो क्यों इन्हे पैदा करते है ?? क्यों इन्हे बचपन में ही कमाई करने के लिए मजबूर कर देते है ?? क्यों इनका बचपन नरक बना देते है ?? जिस बेटे के लिए इतने बच्चे पैदा किये जाते है क्या उस बेटे की ही आधारभूत ज़रूरत पूरी हो पाती है ??और जिस बेटे को पाने के चक्कर में इतने बच्चे पैदा किये क्या उनकी ज़रूरते हम पूरी कर पाते है ?? क्यों हम अपने ही बच्चो को पिछड़ा और पिछड़ा बनाते चले जाते है, क्यों हम इस सोच से ऊपर नहीं उठ पाते कि बच्चा चाहे जो भी हो लड़का या लड़की हमे उसे हर स्तर पर आगे बढ़ाना है उसकी आधारभूत ज़रुरतो को पूरा करना है !! क्यों हम ना चाहते हुए भी, या सिर्फ एक लड़के की चाह में एक के बाद एक बच्चे पैदा करते जाते है ? क्यों ??