गुरुवार, जून 17, 2010

कब बदलेगी ये "इज्ज़त" की सोच ????

कल के अखबार में एक खबर पढ़ी, खबर दिल्ली के स्वरूप नगर की थी जिसमे एक लड़का और एक लड़की शादी करना चाहते थे मतलब प्रेम विवाह ! अपने घर वालो की मर्जी से, लेकिन जब लड़का, लड़की के घर अपनी शादी की बात करने गया तो लड़की के घर वालो ने लड़के को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया और ये देख कर जब लड़की ने लड़के को बचाने की कोशिश की तो उन लोगो ने लड़की को भी पीटना शुरू कर दिया ! पीटते-पीटते भी जब उनका मन नहीं भरा तो उन्होंने दोनों को लोहे के ट्रंक  में डाल कर उन्हें तब तक बिजली का करंट दिया जब तक वो मर नहीं गए ! आज उन दोनों को मारने वाले लड़की के ताऊ और लड़की के पिता दोनों की पुलिस की गिरफ्त में है !और दोनों में से किसी को भी अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है !
अब दूसरी खबर .........अभी कुछ दिन पहले की ही बात जब एक युवक और एक युवती ने गंगनहर में कूद कर जान दे दी और यहाँ भी वजह वही थी दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन दोनों के शायद घरवाले इस बात से राज़ी नहीं थे !
ऐसी और ना जाने कितनी ही घटनाएं हम रोज़ अखबारों में पदते है और अपने आस-पास देखते है ! इन सभी घटनाओं में सिर्फ एक ही चीज़ उभर कर आती है और वो है घर की इज्ज़त ! जिसके लिए माता-पिता अपने ही बच्चो का क़त्ल करने से नहीं हिचकते ! अभी पिछले दिनों ही 'निरुपमा' का केस सामने आया जिसकी चर्चा  मैं अपने ही एक पूर्व  लेख में कर चुकी हूँ !
आखिर माँ-बाप अपनी ही बेटी का क़त्ल कैसे कर सकते है ??? वो भी उस बेटी का ------
जिस बेटी को एक माँ ने अपने ढूध से सीचा,
जिस बेटी की ऊँगली पकड़कर पिता ने उसे चलना सिखाया,
जिसकी उंगलियों ने अपने भाई की कलाई को राखी से सजाया,
जिसकी एक मुस्कराहट ने पिता का हर गम दूर किया,
जिसकी गूंजती किलकारी ने माँ के होटो पर एक मुस्कान बिखेरी,
जिसे कभी पिता ने अपने घर की रौनक कहा,
जिसकी मासूम शरारतो ने भाई को हंसाया तो कभी परेशान किया,
जिसकी एक छोटी सी ख्वाइश पर भी पिता ने अपना सब कुछ वार दिया,
जिसकी हर पसंद नापसंद को पिता ने अपनी पसंद नापसंद बनाया,
जिसकी एक छोटी सी आह पर पिता ने दुनिया सर पर उठा ली,
जिसे पिता ने कभी अपने जीने की वजह बताया,
जिसकी हर सांस से माता-पिता ने अपनी हर सांस जोड़ ली,
जिसकी चंचलता ने माता-पिता को प्रफुल्लित कर दिया,
जिस पिता के आँगन में खेल कर वो बड़ी हुई,
उसकी एक चाहत  ने ऐसा क्या कर दिया कि,
                 "एक पिता अपनी ही बेटी का कातिल बन गया"    
स्वरुप नगर कि घटना में अपनी ही बेटी का क़त्ल करने के बाद एक पिता और एक ताऊ को (जो मेरी नजरो में पिता समान ही है) उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं ! क्या ये सब करने के बाद वो दोनों पिता कहलाने लायक है ??
हमेशा से सुनती आई हूँ कि माता-पिता अपने बच्चो के लिए कुछ भी कर सकते है ! किसी भी माता-पिता के जिंदगी कि सबसे बड़ी चाहत अपने बच्चो को खुश  देखना ही होती है ! लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है ???
किस इज्ज़त और किस समाज के लिए वो ऐसा कुक्र्त्य करते है !
 क्या इज्ज़त, अपने ही जन्म दिए बच्चो कि ख़ुशी से बढकर है ???
अगर माता-पिता को कुछ वास्तव में गलत लगता है तो बच्चो को समझाया भी जा सकता है उन्हें उनकी गलतियों से अवगत भी कराया जा  सकता है, लेकिन शायद नहीं क्योकि माता-पिता अक्सर अपने बच्चो के प्रश्नों का ना तो जवाब देना चाहते  और ना ही उन्हें समझना चाहते, उन्हें ये पसंद ही नहीं कि उनके बच्चे कोई फैसला ले या फिर वो अपनी पसंद का जीवनसाथी चुन सके और शायद इसलिए ही माता-पिता के पास अपने बच्चो की पसंद को खारिज कर उन्हें मौत के घाट उतारने में भी कोई हिचक महसूस नहीं होती ! बल्कि अपने किए हुए ऐसे नरसंहार को वो गर्व से सही भी ठहराते  है ! हाँ भई, तो क्या हुआ बच्चे जिंदा नहीं है  उनकी इज्ज़त तो जिंदा रह ही जाती है ! जिसे शायद वो ताउम्र अपने गले से  लगा कर सके ! शायद यही इज्ज़त उन्हें हर ख़ुशी दे सके, शायद यही इज्ज़त उनके जीवन का सहारा बन सके, और शायद यही इज्ज़त उनकी आखिरी सांस में उन्हें सहारा दे सके !
ओनर किलिंग पर लिखे अपने पिछले लेख की ही तरह आज एक बार फिर से हार मान गई ! माता-पिता की सोच शायद बच्चो की बली दे कर ही बदलेगी लेकिन इस सोच को बदलने के लिए  और कितनी बलीया देनी पड़ेंगी ???

28 टिप्‍पणियां:

  1. आज एक नये सोच की ज़रूरत है .......................

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  2. @ श्री योगेन्द्र मौदगिल जी,
    (मेरी पिछली पोस्ट "नेता जी की नरक यात्रा" पर दी गई उनकी प्रतिक्रिया पर मेरा एक सुधार....)
    आप मेरे ब्लॉग पर आए इसके लिए मैं आपकी हार्दिक आभारी हूँ ! आपको अपने ब्लॉग पर देख कर अत्यंत प्रसन्नता हुई !
    सर, वो पोस्ट पब्लिश करते समय वास्तव में मैं इसके मूल रचनाकार का नाम नहीं जानती थी............किसी से सुनी थी और जब अच्छी लगी तो सबके साथ बाटने चली आई ! हाँ इसे पोस्ट करते समय मुझसे ये गलती हुई की किसी के कुछ भी पूछने से पहले ही मुझे ये बता देना चाहिए था की ये रचना मेरी नहीं है ! हालाँकि किसी के भी पूछे जाने पर मैंने हर बार यही कहा की ये रचना मेरी नहीं है ! लेकिन अपनी इस गलती से सीख लेते हुए ये सुनिश्चित करती हूँ की भविष्य में ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी ! ..........
    भविष्य में आगे भी आपके विचारो और आपके आशीर्वाद का साथ चाहूंगी !
    सादर धन्यवाद ..........

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  3. "यह एक खतरनाक प्रवत्ति बनती जारही है आधुनिक समाज की इससे अच्छा तो द्वापर था जहाँ कृष्ण जैसे भाई थे जो अपनी बहन के मनोभावों को तो समझते थे...."

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  4. @Amitraghat
    आज के समाज में कृष्ण जैसे भाई की कल्पना करना ही हास्यप्रद होगा .............

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  5. oh....kitna dardanak hai pita ke dwaara beti ki mout vo bhi sirf pyaar ke chalte.......pata nahi logo ki maansikta kab badalegi.

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  6. aapki post se inspire hokar abhi just ek post dala hun .pls see.....on krantidut.blogspot.com

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  7. असल में अधिकांशतः अभिभावकों को लगता है संतान हर तरह से उनके अधीन हैं और स्वेच्छा से निर्णय और वह भी विवाह इत्यादि का , लेने का उन्हें कोई अधिकार नहीं..इसे वे अपने प्रतिष्ठा और अहम् से जोड़ कर देखते हैं जिसपर किसी भी प्रकार का चोट उन्हें सहन नहीं होता...
    लेकिन समय बदल रहा है अगले तीन चार दशकों में स्थिति में बहुत अंतर आएगा........

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  8. सोनी बिटिया! तुमरा पोस्ट के बारे में कुछ नहीं कहेंगे, अऊर तुमने जो सवाल उठाया है उसके बारे में भी नहीं कहेंगे... मगर एतना जरूर कहेंगे कि तुम ई कइसे भूल जाती हो कि एही समाज में लड़की पैदा होने के पहले ही गर्भ में मार दी जातीहै!! तब सोचो कि गलती से ऊ पैदा हो जाए तब का हाल होगा उसका.. बोझा ही समझेगा ऊ घर का लोग उसको...हम त पहिले भी बोले हैं कि बंगाल में बेटी को माँ कहते हैं... वहाँ केतना बिनब्याही लड़की पूरा परिवार चलाती है, सिर्फ इसलिए कि ब्याह होने के बाद उसका घर छूट जाएगा.
    इज्जत के लिए हत्या करने वाले का भी इज्जत कहाँ रहता है... जेल में जाने अऊर हत्यारा कहलाने से इज्जत बचता है कहीं... लेकिन शेक्सपियर के ‘रोमेओ एण्ड जुलिएट’ से के. बालचंदर के ‘एक दूजे के लिए’ तक यही होता आया है...

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  9. इस विषय पर जितना सोचता हूँ, उतनी पीड़ा होती है... कैसा ऑनर, किस काम का ऑनर, जो किलिंग से प्राप्त होता है... बिहारी बाबू की बात शत प्रतिशत सही है...

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  10. @ चला बिहारी ब्लोगर बनने
    सर, इमानदारी से कहूँ तो मेरा सवाल था ही आपसे और वो आपकी कही बात के लिए जो आज आपने फिर से दोहराई है कि बंगाल में बेटी को माँ कहते है .........आप हमेशा मुझे सोनी बिटिया कहते है पढ़ बहुत अच्छा लगता है और आपकी प्रतिक्रियाये हमेशा एक नई सीख देती है और शायद इसी अनजाने रिश्ते के चलते मैं आज कि अपनी पोस्ट पर आपसे ये सवाल पूछना चाह रही थी सवाल तो पूछा पर आपके नाम के साथ नहीं पता था कि आपका जवाब ज़रूर मिलेगा ............लेकिन मिला नहीं या कह सकती हूँ कि मिल गया क्योकि आपका दिया हुआ उधारण काफी कुछ कह रहा है और मैं ये बिलकुल नहीं भूली कि आज भी बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है या पैदा होते ही किसी कूड़े के ढेर पर मंडराने वाले जानवरों के हवाले कर दिया जाता ! ............आखिर में यही कहूँगी कि धन्य है वो बेटी जो इस छोटी मानसिकता वाले समाज का हिस्सा बनने से पहले ही मौत कि गोद में सुला दी गई ! ............

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  11. सोनी बिटिया! तुम भले हमको सर कहो, हम त बिटिया ही कहेंगे... इस तरह का सम्बोधन सहज नहीं निकलता है... मन से आवाज़ आता है...हमरी बेटी तुमसे बहुत छोटी है... सादी के आठ साल बाद आई हमरे जिन्नगी में... अऊर ई आठ साल में हमरे देस के सभे धर्म ग्रंथ के अंदर बईठा हुआ न जाने केतना नाम से पुकारा जाने वाला ऊ मालिक का कोई दरवाजा हम नहीं छोड़े... मगर जब मालिक को छोड़ दिए, तब आठ साल बाद बंगाल में हमरी बेटी आई, हमरे आँगन में… इसलिए बंगाल का बहुत एहसान है हमरे ऊपर...खैर समय से आती त तुमरे जईसा होती...
    एही बेटी को पैदा होने से पहले मार दिया जाता है... अऊर वसु लोग का पाप का प्रायस्चित के लिए इसी नारी (गंगा) के हाथों मुक्ति दिलाया जाता है, अऊर लोग गंगा को पैदा होते ही बच्चों को बहा देने वाली हत्यारिन माँ कहते है (महाभारत से)... कैकेयी को कुमाता कह दिया, ई सोचबो नहीं किया कि अगर ऊ नहीं होतीं त राम मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं होते...
    भासन बंद... आगे तुम लिखो इसी बिसय पर...हमरा आसिस हईये है!!

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  12. @ चला बिहारी ब्लोगर बनने .........
    अभी-अभी अपने पापा को उनका बर्थडे विश किया है , और यहाँ आकर जब आपका भावपूर्ण कमेन्ट पढ़ा और उसमे अपने लिए दिए जाने वाले एक प्यारे संबोधन कि वजह पढ़ी तो अपनी मम्मी कि कही बात याद आ गई जो आए दिन होने वाली भ्रूड हत्या पर कह देती है कि बेटी कि कीमत वही जानता है जिसे बेटी का सुख ना मिला हो ......... और शास्त्रों में भी कन्यादान को सबसे बड़ा दान ऐसे ही नहीं कहा गया ..........तो ज्यादा ना बोलते हुए बस इतना ही कि आज से आपको सर नहीं "बाबूजी" कहूँगी कल फादर्स डे है इसे कल का उपहार भी समझ लीजिये ! उम्मीद है आपको पसंद आएगा !

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  13. soni mai vo bhagyshalee ma hoo jiske teen betiya hai .
    ise honour killing par maine kuch panktiya likhee hai vo meree next post rahegee......
    Ashiksha agyanta aur oopar se jhoota dambh insaniyat hee le doobata hai..........
    bahut acchee post......
    Babujee shavd me jo ijjat aur mithas hai vo aur kisee sambodhan me nahee..........
    Aasheesh

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  14. @ Apanatva
    बहुत-बहुत धन्यवाद आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा !

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  15. waise ye pahle bhi hota aaya hai, bas Media ab jayda sajag ho gaya hai......kuchh logo ki manovriti ke karan......saare samaj ke liye aisa nahi socha ja sakta.........abhi bhi beti ko bete se jayda pyar karne wale bhi hai..........aur sirf ek beti wale baap bhi...:)


    lekin ye bhi sach hai ........jindagi jeene ke kram me aisee bahut saari ghatnayen dil ko todti hai..........aur man kahta hai, kass aisa kuchh na hota.........:(

    ek behtareeen rachna.........ke liye badhai
    aapko follow karne se nahi rok paya!!

    Nimantran: mere bolg pe aane ka....:D

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  16. randomly i landed here.....but, our thoughts really matched......
    now honour killing really a big issue.....

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  17. समय बदल रहा है अगले तीन चार दशकों में स्थिति में बहुत अंतर आएगा........

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  18. आपने मेरी बात को सहज भाव से लिया मुझे बहुत प्रसन्नता हुई.....

    आज की पोस्ट सामयिक और सार्थक है.... शुभकामनाएं..

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  19. सोनी तुम तो बहुत अच्छा लिखती हो,बस अपने लिखने मे ध्यान दो। जब मैने ब्लाग शुरूकिया था तो मुझे कुछ भी नही आता था मगर धीरे धीरे बहुत कुछ सीख लिया है। मुझे भी ब्लागवाणी आसान लगती थी मगर अब चिट्ठा जगत और ब्लागर पर ही काम चला रही हूँ । इम्दली की मुझे भी अधिक समझ नही आयी और ना ही ब्लागप्रहरी की। आगे देखें क्या होता है मेरे ब्लागपर आने के लिये शुक्रिया।

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  20. khusiyon ki chita jala kar longo ko kunsi .....izzat praapt ho jaati hai ....ye baat mujhe samajh nahi aati hai .

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  21. एक विचारनीय पोस्ट अपनी एक कविता संलग्न कर रही हूँ जो इसी विषय पर है

    "प्रपंच"
    दर्द की दीवार हैं,
    सुधियों के रौशनदान.
    वेदना के द्वार पर,
    सिसकी के बंदनवार.
    स्मृतियों के स्वस्तिक रचे हैं.
    अश्रु के गणेश.
    आज मेरे गेह आना,
    इक प्रसंग है विशेष.
    द्वेष के मलिन टाट पर,
    दंभ की पंगत सजेगी.
    अहम् के हवन कुन्ड में,
    आशा की आहुति जलेगी.
    दूर बैठ तुम सब यहाँ
    गाना अमंगल गीत,
    यातना और टीस की,
    जब होगी यहाँ पर प्रीत.
    पोर पोर पुरवाई पहुंचाएगी पीर.
    होंगे बलिदान यहाँ इक राँझा औ हीर.
    खाप पंचायत बदलेगी,
    आज दो माँओं की तकदीर.

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  22. @ रचना दीक्षित
    द्वेष के मलिन टाट पर,
    दंभ कि पंगत सजेगी
    अहम् के हवन कुन्ड में,
    आशा कि आहुति जलेगी...............
    धन्यवाद, एक भावपूर्ण कविता को इस पोस्ट से जोड़ कर इसे आगे ले जाने के लिए ..................

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  23. insaan janwar hai...jindagi bhar insaan bannane ki koshish karta rehta hai...per finally janwar hi reh jata hai

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  24. Soni ji,

    Sahi prashn uthaya aapne...

    Let's hope for something better.

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  25. तीखा और खरा!
    पर सितारों के आगे आसमा और भी है....
    (हालाँकि मेरा ये कहने का मतलब इन न्रशंस हत्याओं को उचित ठहराना कदापि नहीं है!)

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  26. इज्ज़त का ही तो सवाल है |
    एक बार इज्ज़त गयी तो दोबारा नहीं मिलती वापस |
    यह कहावत तो सुनी होगी |
    इसी इज्जत की खातिर तो जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान के राज मोहम्मद गौरी को बताये थे |
    क्यूंकि संयुक्ता उसकी बहन थी |
    इससे इज्ज़त की खातिर तो रावण ने सीता का हरण किया था क्यूँकी सूर्पनखा उसकी बहन थी |
    इसी इज्ज़त की खातिर तो पद्मावती ने जोहर किया था |
    इसी इज्ज़त के लिए तो यह सब पद है प्रतिष्ठा है सम्मान है पदक है इनाम है पुरुस्कार है अवार्ड है |
    यह भी बंद होने चाहिए | जब इज्ज़त की बात ही नहीं है तो |
    फिर क्यूँ कोई किसी को कुछ बोल देता है लिख देता है तो लाठियां चल जाती हैं तलवारें निकल आती हैं |
    कोई आत्म हत्या कर लेता है | कोई किसी को मार देता है |
    तो फिर बेईज्ज़त हो कर जीना ही अच्छा |
    अदालत भी जब छोडती है तो कहती है बाइज्ज़त बरी किया जाता है |
    और अब कितना दूं उदहारण |

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