लबो पर उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहींहोती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो
माँ बहुत गुस्से में होती है तो
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दु
अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ
ए अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजा
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से
माँ से इस तरह लिप्टू कि बच्चा
'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी मुस्कराती है
मुनव्वर राणा