बुधवार, अगस्त 16, 2017

उसकी कहानी (अंतिम भाग)

नंदिनी की मौत को लगभग एक महीना बीत चुका था और इस दौरान उसके परिवार में काफी उथल-पुथल मच चुकी थी !
रातों को घर से गायब रहने वाला शशांक, आज गाड़ियां चोरी करने के जुर्म में जेल में था और विवेक भी कुछ अनचाही बीमारियों की वजह से अक्सर बीमार रहने लगा था !  इस सब के चलते पुरषोत्तम अपने काम से वोलेंट्री रिटायरमेंट ले चुका था ! शायद शारीरिक थकान से ज्यादा मानसिक थकान पुरषोत्तम पर हावी होने लगी थी उधर नंदिनी की माँ भी अब लगभग सारा वक़्त या तो अपने कमरे मे बन्द रह कर रोती रहती या फिर पुरषोत्तम की जिद पर उसके साथ कॉलोनी के पार्क में जाकर गुमसुम सी बैठ जाती ! अब दिन बस यूँही बीत रहे थे ! अब कब दिन हुआ कब रात ढली किसी को इससे मतलब ही नहीं था, अब सबकी दुनिया बस वो चारदीवारी ही थी !
पुरषोत्तम आज भी जब-जब नंदिनी को याद करता उसे रह-रह अपनी गलती का अहसास होता , उसने क्यों बात नहीं की नंदिनी से ? वो क्यों उसे उसके हिस्से का समय नहीं दे पाया ? क्यों वो सिर्फ़ उसके सभी खर्चे पूरे करने को ही अपनी जिम्मेदारी समझ बैठा ?????.........एक रात ऐसे ही सवालो में खोए हुए वो फिर से नंदिनी का लिखा वो आख़िरी कागज़ अपनी अलमारी से निकालता है और एक बार फिर उसे पढ़ने बैठ जाता है !!..............
हेलो पापा, कैसे है आप ?
पापा मैं आपकी नंदिनी, आपकी वही छोटी सी गुड़िया जिसे आप बचपन मे अपने कंधों पर बैठा कर घुमाते थे.....और जब आप थक जाते थे तो मैं फिर से रोने लगती थी और आप मुझे फिर से पूरे घर मे घुमाते थे .....और आपको याद है पापा, एक बार मम्मा ने बताया था कि जब आप मेरी उँगली पकड़ कर चलना सीखा रहे थे तब आपसे मेरा हाथ अचानक छूट गया था और मैं गिर गयी थी तब छोटी सी खरोंच आई थी मेरे हाथ और घुटने पर .....थोड़ा सा ख़ून भी निकल गया था.....तब मैं बहुत रोई थी और ये देख कर आप भी रो पड़े थे तब आपको देख कर मम्मा बहुत हँसी थी !!! और फिर उस दिन आप मेरी वजह से ऑफिस भी नहीं गए थे !!
आपको याद है पापा, शशांक और विवेक के आने के बाद जब भी हम तीनों में कभी झगड़ा होता, तो आप हमेशा मेरी ही साइड लेते थे और मम्मा तब बहुत गुस्सा करती थी और शशांक और विवेक भी रो पड़ते थे .....और ये सब देख कर मुझे बड़ा मजा आता था
और हाँ, पापा आपको वो बात याद है जब 9th क्लास में मेरा एक लड़के से झगड़ा हो गया था तब आपने उसे उसके घर जाकर भी डाँट लगाई थी .....और पापा, याद है मैं जब भी शाम को अगर शशांक के साथ कहीं जाती तो आप हमेशा शशांक को  मेरा ध्यान रखने को कहते जबकि मैं हर बार कहती कि ये तो मुझसे छोटा है !!!
लेकिन पापा जब आपने मुझे आगे की पढ़ाई के लिए जिस दिन हॉस्टल भेजा था ना उस दिन मैं आपको याद करके रात भर रोई थी, हालाँकि मैं बड़ी हो चुकी थी लेकिन पापा आप ही कहते थे ना कि बच्चे हमेशा बच्चे होते है और शायद मैं उस वक़्त मैं बड़ी होने की जगह बच्ची बन गयी थी .....पापा मुझे यहाँ हमेशा आपकी याद आती थी क्योंकि यहाँ जब मैं रात में अकेले जागती थी ना तो आप मेरे साथ बातें करने के लिए नहीं होते थे और जब भी मेरा किसी से झगड़ा होता तो आप उसको डाँटने के लिए भी नहीं होते थे .......शायद मुझे आपकी आदत हो चुकी थी और वो आदत जा ही नहीं रही थी .......मैं जब भी आपसे फ़ोन पर बात करने की कोशिश करती आप हमेशा बिज़ी होते थे और मैं फिर अकेली हो जाती ......शायद इसी वजह से मैं नशा करना सीख गई और मुझे याद है जब आपको ये पता लगा था तो आपको बहुत गुस्सा आया था और फिर धीरे -धीरे आपने मुझसे बात करना बंद कर दिया !!!!
फिर बस मम्मा के थ्रु ही बात होती .....पापा मैं वापस आप सबके पास आना चाहती थी मुझे नहीं पढ़ना था आगे !! मैं ये सब भी छोड़ना चाहती थी लेकिन शायद मैं इस नशे के दलदल में फँस चुँकि थी पापा सच में मैंने बहुत कोशिश की इस सबसे बाहर निकलने की लेकिन जब भी मैं ऐसा करती मुझे मैं फिर से अकेली लगती ......हर बार कोशिश करती और हर बार हार जाती लेकिन आज मै थक गई पापा ....अब और कोशिशें नहीं होती इसलिए आज जा रही हूँ आप सबसे दूर ....मुझे माफ़ करना पापा मैं आपकी फ़िर से वो प्यारी बेटी नही बन पाई .......!!!!
आपकी नंदिनी .....

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