मंगलवार, नवंबर 19, 2019

पुरुष दिवस

पुरुष एक ऐसी वेदना है जिसकी संवेदना को बचपन से ही मारना शुरू किया जाता है ! बचपन मे अगर कभी उसकी आँख में आँसू आए तो कहा जाता है "ये क्या तू लड़कियों की तरह से रो रहा है चुप कर" ! मतलब रो कर अपनी पीढ़ा जाहिर करने का  पहला और अंतिम अधिकार लड़कियों का है लड़को का नहीं ! लड़को को बचपन मे उनके खिलौने उनके खेल उनके काम बिल्कुल अलग करके दिए जाते है  क्योंकि ईश्वर ने उन्हें शुरू से ही शारीरिक बलवान बनाया है तो समाज ने भी उनकी इस विशेषता का ध्यान रखते हुए उन्हें लगातार बलशाली कामो की तरफ़ धकेला है ! उनका ये बलशाली होने का टैस्ट उनके बचपन से ही शुरू हो जाता है घर मे कोई भारी चीज़ इधर से उधर करनी है तो बुलाओ लड़के को , रसोई में कोई स्टील का डब्बा खुलने में दिक्कत दे रहा है तो बुलाओ लड़के को , छोटी बहन तो क्या बड़ी बहन को भी अगर बाहर जाना है तो भेजो साथ मे लड़के को, बाहर से कोई सामान लाना है तो फिर से लड़का, आधी रात को अचानक कोई बीमार हो जाये तो लेके जाए लड़का (और हाँ इसके साथ सख्त हिदायत कि बीमार के पास खड़े होकर आँसू नहीं बहाने क्योंकि रोने धोने का काम लड़कियों का है), घर मे कोई रिश्तेदार आ जाये तो बाहर से नाश्ता पानी लाना हो तो भेजो लड़के को, यहाँ तक कि घर मे कोई चूहा,छिपकली, कॉकरोच मर जाए तो उसकी लाश उठा कर ठिकाने लगाने के लिए भी बुलाओ लड़के को .....!!!!
मतलब लड़का ना हुआ कोई चलता फिरता बिना भाव का रोबोट हो गया ! जिसे कहीं भी कभी भी अपने बारे में ना तो बोलना है और ना सोचना है क्योंकि ऐसा कुछ भी करना उसको सीधा स्वार्थी होने का खिताब देगा और पितृसत्तात्मकता का तमगा मिलेगा वो अलग ! इन्ही सब के चलते इनके साथ होता क्या है कि ये खुद को एक्सप्रेस करना भूल जाते है या यूं कहिए इन्हें ये शिक्षा कभी दी ही नहीं जाती कि अपना मन सामने वाले के आगे कैसे खोला जाए और यहीं से ये लोग बस एक कमाऊ मशीन बन कर रह जाते है !  सुबह से शाम तक कमाओ फिर आओ खाओ सो जाओ ! अगले दिन से फिर वही रूटीन ! वक्त के साथ एक टॉइम ऐसा आता है जहाँ ना ये अपने बारे में बोलना चाहते ना कोई और इनके बारे में सुनना चाहता ! फिर भी कहीं कोई इनसे इनके बारे में कुछ पूछ भी ले तो इनके पास खुद को ब्यान करने के लिए शब्द नहीं होंगे ! 
आज भी #मेंस_डे होने के बाद भी कोई इनको विश भी करें तो दाँत निपोर कर रह जाएंगे ! आज सुबह ही जब मैंने अपने हसबेंड को मेंस डे विश किया तो उनका शर्माना देखने लायक था इसपर जब पूछा क्या गिफ़्ट चाहिए तो जवाब मिला "तुझे कुछ चाहिए तो तू ले आ मुझे कुछ नहीं चाहिए" ! मतलब भावनाओ के साथ इनकी इक्छाये भी खत्म ! ऐसे होते है पुरुष ! हालांकि जैसे अपवाद महिलाओ में है वैसे ही अपवाद पुरुषों में भी है लेकिन को अलग बहस का मुद्दा है और आज इनके दिन पर कोई बहस नहीं ! 
आख़िर में पूरे पुरुष समाज को Happy #international_mens_day 💐