सोमवार, नवंबर 29, 2010

आज यही सही !!!!!

लबो पर उसके कभी बद्दुआ नहीं  होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती

इस  तरह  मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ  जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

ए अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया

मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊ
माँ से इस तरह लिप्टू कि बच्चा हो जाऊ

'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

लिपट जाता  हूँ माँ से और  मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू  में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी  मुस्कराती  है

मुनव्वर राणा 
 

बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

हमें कोई तो सुधारे !!!!

आज भारत दुनिया के उन देशो में है से एक है जहां की जनसख्याँ में युवाओ की संख्या का  प्रतिशत सबसे  अधिक है और यही वजह है की  आज भारत को "यंग इंडिया" भी कहा जाता है ! ये जान कर ख़ुशी होती है की आज भारतीय  युवा दुनिया में अपनी  एक अलग पहचान बना रहा है ! आज भारत का युवा वर्ग हर क्षेत्र में आगे बढ़ कर अपनी मोजूदगी भी दर्ज़ करा रहा है ! ऐसे बहुत से  यंग लीडर है जिहोने अपने क्षेत्र में ना सिर्फ अपनी एक पहचान बनाई है बल्कि अपने क्षेत्र में कई असरकारक कार्य भी किए है ! अभिनव बिंद्रा,नारायण मूर्ति, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रियंका चोपड़ा, सुशिल कुमार,बिजेंद्र सिंह, मिताली राज़,झूलन गोस्वामी, अंकित फाडिया, सिद्दार्थ वरदराजन, नारायण मूर्ति, सुष्मिता सेन जैसे नाम आज भारतीय यंग ब्रिगेड का हिस्सा है ! ये वो बड़े नाम है जो आज विश्व पटल पर अपना परचम लहरा रहे है !
वही इसके उलट आज भारतीय युवा वर्ग में एक ऐसा वर्ग भी है जो नाम,दोलत,शोहरत सब  कमाना चाहता है लेकिन बिना किसी मेहनत के या फिर एक बहुत छोटे शोर्टकट के साथ और आज ऐसे युवाओ की संख्या दिनोंदिन बदती जा रही है ! पिछले कुछ दिनों से अखबार के पन्ने ऐसी खबरों से अटे पड़े रहे ! जिसमे से एक खबर में दिल्ली में एक बी कॉम फ़ाइनल ईअर की युवती करोडो के गहनों के साथ पकड़ी जाती है और कुछ दिन पहले गाज़ियाबाद में एक ३० वर्षीय विवाहित युवक करोडो के गहनों के साथ पकड़ा जाता है युवती का गुनाह अभी साबित नहीं हुआ लेकिन युवक के गुनाह के साबित होने के बाद पता लगा की वो अपने शौक के लिए चोरी करता था ! इसके अलावा आज का भारतीय युवा चेन स्नेचिंग,झपटमारी,चोरी की वारदातों, हत्या नशाखोरी, साइबर क्राइम जैसे और ना जाने कितने ही अपराधो में लिप्त होता जा रहा है ! लेकिन इस सबकी वजह क्या है ! क्यों आज युवा वर्ग इस अपराध की दुनिया की तरफ आकर्षित होता जा रहा है ?? बल्कि सारी सुविधाए मिलने के बाद भी क्यों आज धनाड्य वर्ग के युवा भी इस ओर आकर्षित हो रहे है ?? क्यों वो इतनी आसानी से इस ओर मुड़ रहे है ??
अगर इन सबकी वजह तलाशी जाये तो एक नहीं अनेक होंगी ओर सबका अपना अपना कारण  होगा ! सबसे बड़ा कारण जो आजकल ज़्यादातर लोगो के मुह से सुना है वो है आज की फिल्मे और  टीवी पर आने वाले शोस जो इन युवाओ को बिगाड़ने  में पर्याप्त है ! लेकिन क्या सिर्फ यहीं एक कारण है अक्सर बुजुर्गो को युवाओ के पहनावे को लेकर कहते सुना है कि आजकल के लड़के लडकियों ने तो हद ही कि हुई है कोई शर्म हया नहीं बची इनमे ! मुझे याद है कि मेरे घर पर एक बुजुर्ग महिला आती है जो कि हरियाणा से है और अक्सर आज के युवाओ के पहनावे को लेकर अपनी भाषा में एक बात ज़रूर कहती है "आजकल के छोरे छोरियां ने देख के तो  पता ही को नी चालता कि छोरा कोण  ते अर छोरी कोण !" जिसे सुन कर मुझे अक्सर हँसी आ जाती है वैसे उनका कहना  गलत भी नहीं है खुद में एक दो बार मेट्रो ट्रेन में लडको को लड़की समझने की गलती कर चुकी हूँ ! अक्सर देखा जाता है की जहां बड़े बुजुर्ग बैठे हो वहाँ आज के युवाओ पर चर्चा ज़रूर होती है  जिसमे सभी अपने अपने विचार व्यक्त  करते नज़र आते है ! किसी की नज़र में आज का युवा जोशीला होता है तो कोई कहता है की गर्म  खून है इसलिए ऐसा है तो किसी की नज़र में ये सब माता पिता की शय का असर होता है तो किसी की नज़र में ये आजकल की फिल्मो में उटपटांग  चीजों को देखकर बिगड़ रहे है ! 
सबके अलग अलग विचार है आज के युवाओ को लेकर ! जोकि गलत भी नहीं है लेकिन अगर आज के युवा वर्ग को उसी की नज़र से समझा जाए तो और भी कई कारण सामने आयेंगे और सबसे बड़ा और पहला कारण जो मुझे नज़र आता है वो है "पियर प्रेशर" जो बहुत ज़ल्दी और गहरा असर करता है और जिसने कभी मेरे ऊपर भी असर करने की कोशिश  शुरू की थी  लेकिन उस वक़्त अपने टीचर्स और मम्मी-पापा के सपोर्ट के चलते मैं तो इस पियर प्रेशर से बच गयी, लेकिन ये सच है कि इसकी वजह से कई युवा ना चाहते हुए भी ऐसे काम करने लगते  है जिसे वो जानते है कि वो गलत है लेकिन अपने दोस्तों के सामने टशन मारने के लिए और उनके सामने खुद को कमतर ना आंके  जाने लिए वो इसे ज़रूरी भी समझते है ! ये इसी का नतीजा है कि छोटी सी उम्र में ही कश लगाने से लेकर ड्रग्स जैसी नशीली चीजों के प्रोयोग से वे खुद को मोर्डन और बेहतर साबित करना चाहते है इसके अलावा आज अक्सर एक चीज़ जो हर छोटे चौक चोराहो  से लेकर मॉल्स, शोपिंग काम्प्लेक्स जैसे बड़ी जगहों पर नज़र आती है और वो ये है, हाथो में हाथ डाले घूमते हुए प्रेमी युगल ! अब वो कितने सच्चे और कितने झूठे होते है ये तो वही जाने लेकिन इस सबसे एक बात ज़रूर साबित हो जाती  है की गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड रखना अब एक फैशन  बन गया है ठीक उस तरह जैसे कि कभी महंगे मोबाईल और गेजेट रखना फैशन के साथ-साथ स्टेटस सिम्बल हुआ करता था  और अब ये फैशन इस कदर परवान चड़ने लगा है कि युवा वर्ग अपनी इन ज़रुरतो को पूरा करने के लिए अपराधिक दुनिया में कदम रखने से भी नहीं हिचकता बल्कि अब वो अपनी इंटेलिजेंस, अपने जोश और जूनून का भरपूर फायदा अपराध जगत में शमिल होकर उठाने लगा है ! अभी पिछले दिनों एक फिल्म आई थी "बदमाश कम्पनी" जिसमे कुछ युवाओ को अपने अनोखे लेकिन "गैरकानूनी" आइडियास के चलते शोर्टकट के सहारे लखपति बनते दिखाया गया था ! वास्तव में यही है आज का कडवा सच ! जिसे आज हर कोई सुधारना चाहता है !
हम युवाओ को सुधारने कि ज़िम्मेदारी हमारे अपनों की ही है लेकिन जिस तरह गहनों की चोरी के मामले में पकड़ी गयी लकड़ी को उसके घरवाले ने इज्ज़त का हवाला देते हुए उसे अपने घर से बरसो पहले निकाल दिया था अगर इसी तरह आज हर माता-पिता करने लगे तो शायद ही कोई सुधरे इसलिए अगर आज वास्तव में पथ भ्रमित हो चुके युवाओ को कोई सुधारना चाहता है या सुधार सकता है तो वो उनके टीचर्स और उनके माता-पिता ही है खासतौर पर टीचर्स की ज़िम्मेदारी थोड़ी ज्यादा होती है क्योंकि घर के बाहर एक वही होते है जो हमें समझ सकते है और समझा सकते है !

सोमवार, सितंबर 13, 2010

परफेक्ट होना बोरिंग है !

अभी कुछ दिन पहले की बात है जब मैं अपनी ही एक फ्रेंड के घर गयी थी, बड़ी परेशान थी बेचारी और इस परेशानी में लगी हुई थी धडाधड अपने नाख़ून चबाने ! मुझे आज तक समझ नहीं आया कि  लोग परेशान होने पर अपने नाख़ून क्यों चबाने लगते है ! छी बहुत गन्दी आदत है ये ! खैर, उसकी इस परेशानी को देख कर मैंने उससे पूछा क्या हुआ क्यों परेशान है ? तब उसने थोडा सोचते हुए कहा की उसे समझ  नहीं आ रहा की "उसका ब्वाय फ्रेंड उसके लिए परफेक्ट है या नहीं"........ ये सुन कर मेरे मुहँ से निकला ....... है ?????? दरअसल वो  और उसका  ब्वाय फ्रेंड पिछले तीन साल से साथ है और अब तो घरवालो  की मंजूरी  भी मिल गयी है लेकिन आज अचानक ये सुन कर पहले मुझे हँसी आ गयी हंसी इसलिए क्योंकि दरअसल वो हमेशा अपने ही बनाये सवालों में अक्सर उलझ जाती है  और  पता था की आज भी ऐसा ही होने वाला  है ! लेकिन आज तीन साल बाद उसे क्या सूझी और वो भी तब जबकि उन दोनों की फैमली उनके रिश्ते पर अपनी मोहर लगा चुकी है ! तब मैंने पूछा की क्यों ऐसा क्या हो गया आज, कि तीन साल बाद  आज तू ये सब सोच रही  और तब जो उसने बताया वो तो और भी मजेदार था दरअसल उसने कुछ दिन पहले आमिर खान का किसी चैनल  पर interview देखा था अब आमिर खान तो वैसे भी मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहलाते है (लेकिन अपने काम की वजह से) लेकिन मेरी फ्रेंड को ये सनक सवार हो गई कि उसका ब्वाय फ्रेंड भी मिस्टर परफेक्ट होना चाहिए आमिर खान की तरह और बाकि सभी लोग भी उसके ब्वायफ्रेंड को जो कि अब उसका होने वाला हसबेंड है इसी नाम से बुलाये "मिस्टर परफेक्शनिस्ट !
अब ये सब सुन कर मेरे मुंह से एक ही शब्द निकला "हे भगवान्" ! फिर मैंने पूछा की तुझे कैसा मिस्टर परफेक्ट चाहिए उसने बताया, जो सारे काम टाइम से करे टाइम पर घर आए टाइम पर ऑफिस जाए टाइम पर उठे टाइम पर सोये टाइम पर खाए सब कुछ एक दम टाइम पर करे  ...ओह तो तुझे टाइमटेबल चाहिए मेरा इतना कहना था कि ये सुन कर उसने मुझे कुछ ऐसे देखा की मुझे पता चल गया की अगर मैंने कुछ और बोला तो मेरा जिंदगी का टाइम टेबल बिगड़ जायेगा खैर, ये सुन कर अपने गुस्से पर काबू करती हुई वो बोली नहीं तुझे कुछ नहीं पता परफेक्ट ऐसे ही  होते है और मिस्टर परफेक्ट ही सब कुछ होता है , तब मैंने कहा कि  लेकिन मैंने तो सुना है की कोई भी परफेक्ट  नहीं होता और ये सही भी है...... ये सुन कर वो बोली प्रवचन  मत दे मुझे भी पता है कोई परफेक्ट नहीं होता लेकिन होना तो चाहिए ना !!!! हाँ तो तू होना तो चाहिए के चक्कर में जो है उसकी दुश्मन क्यों बन रही है !
खैर, ये बहस थोड़ी आगे जाकर ख़त्म हो गयी क्योंकि सभी को पता था की उसकी उलझन दिन बीतने के साथ दूर हो जाएगी हर बार की तरह ! लेकिन इस पूरी बहस से एक बात दिमाग में कोंधने लगी और वो ये की क्या "परफेक्ट होना ही सब कुछ है ???" और एक परफेक्ट इंसान कैसा होगा अब इस पर मेरा विश्लेषण शुरू हुआ जो कुछ -कुछ मेरी फ्रेंड के कहे अनुसार ही था शायद एक परफेक्ट ऐसा होगा जो रोज़ सुबह ठीक 5  बजे उठे उसके बाद फ्रेश होकर एक घंटे योगा करे फिर उस दिन का अखबार पढे ठीक टाइम पर नाश्ता करे ठीक टाइम पर ऑफिस जाए ठीक टाइम पर घर आए सही समय  पर लंच करे डिनर करे अच्छा सोचे कभी गुस्सा ना करे सभी से अच्छी तरह से बर्ताव करे कभी किसी से कोई झगडा नहीं करे कोई बुरी आदत नहीं हो सभी काम समय पर पूरे करे हमेशा अच्छा ही सोचे ! ईईईईई........ ऐसा इंसान भगवान् ने मेनुफेक्चर किया होगा ???? और अगर किया भी है तो क्या वो आज की लाइफ में सभी को अच्छा लगेगा ?????
माना कि आज सभी को   परफेक्शन  चाहिए लेकिन अगर हर कोई परफेक्ट हो जायेगा तो लाइफ तो बोरिंग हो जाएगी ! मतलब, अगर हर कोई सारे काम टाइम पर करने लगे कोई गलती ना करे किसी को शिकायत का मौका ना दे तो जिंदगी आधी से ज्यादा परेशानिये तो दूर हो जाएँगी लेकिन उसके साथ ही साथ जिंदगी नीरस भी हो जाएगी ! क्या मैं गलत कह रही हूँ ??? एक उधारण लेते है अगर एक घर में सभी लोग परफेक्ट हो जाये और  सभी लोग एक जैसे सोचने लगे एक जैसी बाते करे एक जैसे ही समय पर काम करने लगे तो ??? तब घर में सबसे पहले तो बच्चो को अपने बड़ो से डांट पढनी बंद हो जाएगी और दूसरा घर के किसी भी सदस्य में कोई बहस नहीं होगी टीवी रिमोट के लिए झगडा नहीं होगा क्योंकि तब तो एक ही चैनल चलेगा आखिर सब एक जैसा जो सोचने लगेंगे और जब एक जैसा सोचेंगे तो एक जैसा देखेंगे भी ! अब अगर यही उधारण हम थोड़े बड़े स्तर पर ले मतलब कि अगर आज देश का हर सरकारी कर्मचारी अपने काम में परफेक्ट हो जाये और अपने सारे काम टाइम पर करने लगे तो बेचारे विपक्ष का क्या होगा ?? तब विपक्ष की दुकान कैसे चलेगी बल्कि तब तो विपक्ष की भूमिका ही ख़त्म हो जाएगी ! अरे विपक्ष छोड़ो तब तो शायद देश में सरकार की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि तब जनता नेता सभी एक जैसा सोचने लगेंगे और तब ना तो कोई झगडा होगा और ना ही कोई बहस सब कुछ एक ही धारा में चलता जायेगा बिना कुछ सोचे ! उफ्फ्फ .....ये परफेक्ट ढूंढने के चक्कर में विश्लेषण ने अजीब ही दिशा पकड़ ली लेकिन बात सही है की अगर हर इंसान एक जैसा सोचने लगेगा और बिना कोई गलती किए हर इंसान अपने सभी काम समय पर करने लगेगा तो लाइफ शायद बोरिंग हो जाएगी !
अपने इस पूरे विश्लेषण के बाद एक बात समझ में आई अव्वल तो कोई परफेक्ट होता नहीं और अगर कोई इस कदर परफेक्ट होगा तो वो बोरिंग होगा या फिर टाइमटेबल होगा ! तो Don't be paerfect but be Good .....

रविवार, अगस्त 29, 2010

चलती फिरती ब्लोगिंग !!!

जब से इस ब्लॉग जगत में कदम रखा है इस ब्लोगिंग के कीड़े ने ऐसा काटा है की हर तरफ बस ब्लॉग नज़र आते है मतलब की जहां भी कुछ लिखा दिखे उसे पढ़ कर कमेन्ट देने की इक्छा प्रबल होने लगती है ! अब चाहे  वो पूरा ब्लॉग हो या फेसबुक और ट्विटर जैसी  साईट पर किसी का स्टेटस या फिर किसी की लिखी चार लाइने,  लेकिन ये सब तो रही इन्टरनेट की बात लेकिन उसका क्या जो हमारे आस पास चलते फिरते ब्लॉग घूमते है !
अभी पिछले दिनों दिल्ली से बाहर जाना हुआ बाढ़ के डर से नहीं किसी ज़रूरी काम से और बस वही हाइवे पर नज़र आए ये एक के बाद एक चलते फिरते ब्लॉग ! हाइवे से गुजरते हुए रास्ते में कई ट्रक और मिनी ट्रक और टेम्पो आदि देखे जिन पर लिखी लाइने किसी माइक्रो ब्लोगिंग से कम नहीं थी ! वैसे उन सभी को पढ़ कर आज की सबसे प्रचलित माइक्रो  ब्लोगिंग साईट ट्विटर की याद आ गयी वास्तव में इन ट्रक वालो ने तो चलता फिरता ट्विटर ही खोल रखा है और ट्विटर इसलिए क्योकि जिस तरह ट्विटर पर अपनी बात कहने के लिए आपके पास 140 शब्दों की सीमा होती है उसी तरह ये भी अपनी बात कुछ शब्दों में ही कह देते है ! अब मैंने इनकी चलती फिरती ब्लोगिंग में जो कुछ भी पढ़ा वो बड़ा ही रुचिपूर्ण और असरकारक लगा ! आप भी पढ़िए
तेरे यार दा ट्रक (तेरे पास कैसे आया)
जट दी मर्सिडीज़ (नीले रंग की)
13 मेरा 7 (?????)
चल मेरी रानी कम पी इराक का पानी (मैंने तो सुना था गाड़िया डीज़ल और पेट्रोल से चलती है)  
जट रिस्की आफ्टर विस्की ( हा हा हा )
सत्येन्द्र का सत्तू (पता नहीं कहा मिलेगा)
दिल 20 तेरा 80 20  तेरे ( वाह वाह वाह )
यो तो ऐसे ही चाल्लेगी ( चला चला आगे तेरा मामा तेरा इंतजार कर रहा है )
अनारकली भर के चली (बदबूदार कूड़ा)
यारां दा टशन ( बजाएगा मामा का बैंड )
वजन घटाए सिर्फ 45 दिनों में (जय हो बाबा रामदेव )
सोनू मोनू दी गड्डी (तो सोनू मोनू कहाँ है)
बुरी नज़र वाले तेरा मुहँ कला ( कोई नी जी फेयर एंड लवली है ना )
होर्न प्लीज़ ( सॉरी, होर्न ख़राब है )
फिर मिलेंगे (इस बारे में सोचा जायेगा )
तो ये थी मेरी चलती फिरती ब्लोगिंग अरे नहीं मेरी नहीं उन ट्रक वालो की जिन्हें मैंने पढ़ा लेकिन कमेन्ट यहाँ किया ! वैसे ऐसी चलती फिरती ब्लोगिंग पढ़ कर समय कब कट गया पता ही नहीं चला ! आपने भी ऐसी ही चलते फिरते ब्लॉग देखे होंगे,  तो ज़रा आप भी बताईये अपने कमेन्ट के साथ !

शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

आज़ादी या सरकारी छुट्टी ???

15 अगस्त 1947  ये वो दिन था जब हमारा "भारत" आज़ाद हुआ और हमें अग्रेज़ी हुकूमत से आज़ादी मिली ! "आज़ादी", क्या है ये आज़ादी ? क्या मतलब होता है देश की आज़ादी का ? ये प्रश्न इसलिए क्योकि मैंने अग्रेज़ी हुकूमत की गुलामी नहीं देखी, देखा है तो सिर्फ आज का भारत जिसे आज़ाद(?) कहा जाता है ! मुझे नहीं पता की जब भारत गुलाम था तब वो कैसा था ? उस वक़्त के लोगो का गुलामी को लेकर क्या मनोभाव था ? उस वक़्त लोग किस हद तक अपने देश से प्यार करते थे ? उस वक़्त का  गुलामी का मंजर कैसा रहा होगा ? कितना जूनून था लोगो में अपने देश की आज़ादी को लेकर ? लोग किस कदर देश की आज़ादी के लिए अपना खून बहाने के लिए तत्पर थे ? माँए, कैसे अपने बेटो को अपने देश के लिए शहीद होने के लिए भेज दिया करती थी ? ये और इस जैसे और ना जाने कितने ही प्रश्न आज मन में उठते है क्योंकि मैंने गुलाम भारत नहीं देखा ! देखा है तो सिर्फ आज का भारत, जो की में अब देख भी रही हूँ  ! 
भारत को मिली आज़ादी  के बारे में सिर्फ वही सब जानती हूँ जो अब तक किताबो और अखबारों में पढ़ा फिल्मो में देखा  और बुजुर्गो से सुना है (और उपरवाले से ये प्रार्थना करती हूँ की फिर कभी वो मंज़र ना देखने पड़े !) उस सब पर यकीं करते हुए कहती हूँ की भारत वास्तव में एक सोने की चिड़िया हुआ करता था जहां की मिटटी सोना उगलती थी, सभी में आपसी भाई चारा था, तब हर कोई अपने देश से  प्यार करता था, अपनी आज़ादी को जीता था, भारत की आज़ादी के लिए जो शहीद हुए, तब उन्हें भगवान से कम नहीं आँका जाता था !  सभी लोग 15 अगस्त को लाल किले पर होने वाले समारोह को कोसो दूर से पैदल चल कर देखने आया करते थे ! ये था आज़ादी का वो जूनून जो बिना किसी लागलपेट के बिना किसी स्वार्थ  के सभी के अन्दर था ! ये था, वो आज़ाद भारत जिसे सोने की चिड़िया  कहा जाता था,  लेकिन  मेरे लिए तो ये  सब एक सपने जैसा ही है !
अब अगर आज के भारत की बात की जाए तो आज आज़ादी के जश्न का मतलब ही ख़त्म हो गया ! आज 15 अगस्त और 26  जनवरी जैसे दिन सिर्फ एक सरकारी छुट्टी से बढ़ कर और कुछ नही है  ! आज जब घर के बड़ो से  आज़ाद भारत की कहानी सुनती हूँ तो उस भारत और आज के भारत में एक फर्क देखने लगती हूँ क्योंकि मेरे लिए आज़ादी के बाद का भारत और आज का भारत,  जो की आज़ाद (?) कहलाता है दोनों में फर्क है !
भारत को तो आज भी सोने की चिड़िया कहा जा सकता है क्योकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और वो आज भी कृषि उत्पादन में विश्व पटल पर छाया हुआ है ! कम ही लोग जानते होंगे की भारत आज गेंहू उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है और चावल के उत्पादन में भी भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है ! विश्व में चावल और गेहूं जैसे आधारभूत अनाज के उत्पादन में  दूसरा स्थान प्राप्त करने के बाद भी आज भारत में कितने ही ऐसे लोग है जो भर पेट भोजन के लिए भी तरसते है और कितने ही ऐसे लोग है जिन्हें साफ़ सुथरा अनाज मिलता होगा ?? आज सडको चोराहो पर ना जाने कितने ही छोटे बच्चे हाथ फैलाए खड़े नज़र आते है !
ये उस भारत के हाल है जहां की मिटटी आज भी सोना उगलती है लेकिन अफ़सोस ये है की वो सोना सही हाथो  में नहीं पहुँच पाता ! ये अनाज जब खेतो से निकल कर सरकारी मंडियों से होता हुआ जब लोगो तक पहुँचता है तो उसमे से ज्यादातर अनाज तो सड़ चुका होता है और निर्यात करने के बाद जो थोडा बहुत साफ़ सुथरा अनाज बचा होता है उसकी कीमत कहीं ज्यादा होती है ! हमारे  देश में  कितने ऐसे लोग है जो गेहूं और चावल के इतने बड़े उत्पादक देश के वासी होने पर भी बासमती चावल और शुद्ध गेहूं का आटा खरीद पाते है ??
इसके अलावा भी भारत में आज भी कई ऐसी खूबियाँ है जिनके लिए हम भारत के कृषि उत्पादन का शुक्रिया अदा कर सकते है ! आज भारत ना सिर्फ गेहूं बल्कि कपास  और चीनी के उत्पादन में विश्व में तीसरे स्थान पर है लेकिन यहाँ भी यही हाल है ! ना तो किसी को साफ़ और उचित मूल्य पर चीनी मिल पाती और ना ही ऐसा कभी हुआ की कपास के इतने बड़े उत्पादक होने पर भी सर्दियों में ठण्ड से किसी की जान ना गयी हो ! आखिर इस सब की वजह क्या है ? क्यों हम लोग अपने देश की इन खूबियों को जी नहीं पाते है ! इसका एक ही जवाब होगा और वो है भ्रष्टाचार, जिसमे हमारे  देश ने विश्व में  84 वां स्थान प्राप्त किया है ! लेकिन जिस गति से ये भ्रष्टाचार अपने पैर फैला रहा है उससे तो यहीं डर है कि कहीं 84 का आंकड़ा उल्टा ना हो जाये !
ये है हमारे आज़ाद भारत का एक छोटा सा सच ! आज जो हालात देश के है और जिस क़र्ज़ में हमारा देश डूबता जा रहा है और जिन लोगो के हाथ में देश की कमान है उसके आधार पर कह सकते  है की देश ना तो राजनितिक रूप मे आज़ाद है और ना ही आर्थिक रूप में और आज की जो राजनितिक स्थिति  है उससे तो यही लगता है की देश शायद फिर से गुलाम हो जायेगा ! लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ हमारे देश के भ्रष्ट नेता और हमारा कमजोर प्रशासन ही जिम्मेदार है ??? आज भी कश्मीर और राम मंदिर जैसे मुद्दे राजनेताओ की सियासी रोटियां सेकने के काम आते है ! ये वो मुद्दे है जो अगर सुलझ गए तो नेताओ का वोट मांगने का जरिया ख़त्म हो जायेगा !
लेकिन  इसमें गलती सिर्फ इन नेताओ की तो नहीं है ! जब भी भ्रष्टाचार की बात आती है तो लोग अक्सर सफेदपोशो और खाकी वर्दी को कोसने लगते है कि इन्होने देश का सत्यानाश कर दिया ! ये देश को फिर से विदेशी ताकतों का गुलाम बना देंगे ! इन्होने ऐसा कर दिया वैसा कर दिया ये कर दिया वो कर दिया वगेरह-वगेरह ! लेकिन एक बार खुद से पूछ कर देखिये क्या हम सभी अपने देश के लिए समर्पित है ??? क्या हमारे अन्दर आज़ाद भारत की आज़ादी का जश्न बनाने का जज्बा है ??? क्या हम 15 अगस्त के अलावा कभी और अपने शहीदों  को याद कर पाते है ?? क्या हमने कभी कोई भ्रष्ट काम नहीं किया ?? क्या हमने कभी किसी को रिश्वत नहीं दी ?? क्या हमने कभी अपने गलत काम को सही करवाने के लिए सिफ़ारिशो और नोटों  का सहारा नहीं लिया ??? ऐसे और भी ना जाने कितने ही सवाल है जिनके जवाब शायद नहीं में ही होंगे  और शायद ही क्यों पक्का होंगे  ! चलिए "गाँधी जी" की कही बात को याद करते है उन्होंने कहा था "जब हम किसीपर एक ऊँगली उठाते है  तो बाकी की तीन उँगलियाँ हमारी  तरफ ही होती है !" इसके अलावा ये भी सुना ही होगा "स्वयं को सुधारो, जग सुधरेगा !" वैसे ये सब तो में अपने एक पूर्व लेख में भी कह चुकी हूँ ! जिसमे एक कमेन्ट जो  "आशीष" जी के नाम से आया था उसमे उन्होंने बड़े ही खुले अंदाज़ में अपने जुगाड़ लगाने की बात कबुली थी !
आज हमारे समाज में कई लोग ऐसे है जो इन सब चीजों  का सहारा लेते है और कोस देते है सिस्टम को लेकिन हम ये भूल जाते है कि इस सिस्टम को ऐसे बनाने वाले भी हम लोग ही है इन नेताओ का चदावा चडाने वाले भी  हम लोग ही है और कह देते है कि छोड़ो यार जैस चल रहा है चलने दो अपना काम तो हो रहा है ना बस और  क्या चाहिए ! कहीं  बम  ब्लास्ट  हो जाये  तो पहले  अपने  लोगो  कि खैर  खबर  ले  लो  वो  सब तो ठीक  है ना और जब  सभी  के ठीक  होने  कि खबर  मिल जाती  है तो यहीं  कहते  है शुक्र  है हम बच  गए  ! लेकिन कब   तक  ??? आज तो हम बच गए  क्या ये  ज़रूरी  है कि कल  किसी  और बम  ब्लास्ट  में भी हम बच  जाए  ! क्या इस आतंकवाद  को जड़  से ख़त्म  करने  में हमारी  कोई  भूमिका  नहीं  है  ??  मेरी  नज़र  में ये है हमारे   आज  के  आज़ाद  भारत कि कहानी जहां हर कोई एक दूसरे पर दोष   मड देता  है लेकिन कोई भी खुद  को सुधारने  कि कोशिश  नहीं  करता  !
आज हमारे भारत  को फिर  से आज़ादी की ज़रूरत  है और वो  आज़ादी हमें भ्रष्टाचार, आतंकवाद , घोटालो , बड़ते  अपराध , बढती  हुई  महगाई  कश्मीर और राम मंदिर जैसी और भी कई समस्याओं  से तो  चाहिए लेकिन उस  सबसे  पहले  हमें अपनी  छोटी  मानसिकता  से आज़ादी चाहिए ! जो इन सियासतदारो को  अपनी गन्दी सोच और अपनी घटिया सियासत चलाने  का मौका देती है तो उठाईये   आज़ादी कि तरफ  कदम  माना  की मुश्किल  है लेकिन नामुमकिन   तो नहीं  ! कब तक बैठे के इन मंत्रियो के सहारे ??



 

मंगलवार, अगस्त 03, 2010

अभी तो मुजरा शुरू हुआ है !

कुछ हफ्ते पहले एक फिल्म  आई थी "राजनीति" जिसमे   वर्तमान राजनीति को दिखाने की कोशिश की गयी थी और अब पिछले हफ्ते एक फिल्म आई थी "खट्टा मीठा", इस फिल्म में पी डब्ल्यू डी और एम् सी डी जैसे विभागों के काम करने के तरीके को दिखाया गया है इस फिल्म में अक्षय कुमार ने एक बड़ा ही सटीक डायलोग बोला है  कि " पैसा दो तो पुलिस मुजरा भी करेगी" तो लीजिये हो गया मुजरा शुरू ! अभी तो कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू भी नहीं हुए  और सभी विभागों ने अपना-अपना मुजरा शुरू कर दिया ! सभी की कारगुजारिया धीरे-धीरे  करके बाहर आने लगी है और ये तो होना ही था भई, ये भारत  देश है जहां सौ में से नब्बे  बेईमान का नारा लगता है , तो इतना बड़ा करोडो का गेम्स प्रोजेक्ट आखिर शराफत से कैसे संपन  हो सकता  है घपला तो होना ही था लेकिन उस घपले की पोल गेम्स से ही पहले खुल जाएगी ये  अंदाजा कम ही था, लेकिन इसकी भविष्यवाणी हमारे "चैतन्य" भाई मेरी पिछली पोस्ट "अच्छा, महंगा ..................हमारा शहर दिल्ली !" पर कर चुके थे !  हालांकि उनकी ये भविष्यवाणी  बारिश से होने वाली समस्याओं को लेकर थी !

खैर, अभी तो मुजरा शुरू ही हुआ है वैसे मुजरा तो लगभग आज हर सरकारी और गैरसरकारी विभाग करता है लेकिन इस मुजरे के पीछे किसका हाथ है ये खुलने में समय लगता है और समय भी इतना की एक पूरी नस्ल जवान हो जाये और यहाँ भी यही होने वाला है ! अभी बहुत से ऐसे लोग है जिन्होंने खा कर डकार भी नहीं मारी है बल्कि उनका खाना पीना अभी चालू ही है या अगर अक्षय के स्टाइल में ही कहूँ तो उनके मुजरे तो अभी चालू है और अब इन मुजरो से सबसे ज्यादा परेशानी उस पक्ष (विपक्ष) को होने वाली है जिसे ये मुजरा करने को नहीं मिला और अब शुरू होगा पक्ष और विपक्ष का कोमन्वेल्थ गेम, जिसका नतीजा तो ऊपरवाला ही जाने या फिर धरती पर बैठा कोई ज्ञानी !  मैं अज्ञानी तो इसका नतीजा नहीं बता सकती !
अब हर कोई, क्या जनता और क्या नेता, वो सब जो इस मौके की तलाश में ही थे कि कब मौका मिले और वो कब चौका मारे तो उनकी तो इस घपले कि खबर सुन कर बाछे ही खिल गयी ! अरे भई, अंधे को क्या चाहिए दो आँखे, सो मिल गयी ! जंतर-मंतर पर प्रदर्शनों की शुरुवात तो हो चुकी है ! अब देखना ये है कि ये खेल उस खेल से कितना लम्बा चलता है ! गेम्स तो कुछ दिन में निबट जायेंगे  लेकिन ये "खेल" तो पीढ़िया देखेंगी !
इन "खेलो" की भनक शायद इतनी जल्दी नहीं लगती अगर इंद्र देवता मेहरबान ना होते क्योकि बारिश ने ही घटिया मेटेरियल की पोल खोली है ! कहीं स्टेडियम स्विमिंग पुल में तब्दील हो चुके है तो कहीं की टाइले उखड-उखड कर खिलाडियों को ज़ख़्मी करने लगी है ! कहीं वर्ल्ड क्लास स्टेडियम का दर्ज़ा पाने वाले स्टेडियम की छत टपकने लगी है तो कहीं के हाई क्लास रोड तालाब बनगए है और ये सब तब है जबकि इन प्रोजेक्टों को पूरा करने के लिए कई वर्ल्ड क्लास  विदेशी कम्पनियों को टेंडर दिए गए थे ! कल ट्विटर पर जूनियर बच्चन  ने एक ट्विट पोस्ट की "कोई तो बारिश बंद करवाओ वर्ना कोमनवेल्थ कमिटी को स्विमिंग पुल बनाने की ज़रूरत नहीं होगी क्योकि उसके लिए सड़के ही काफी होंगी !"  दिल्ली की हालत देख कर तो कई लोग सोशल नेटवर्किंग साईट पर अपने स्टेटस में ये कहने लगे है कि "दिल्ली किस मुहँ से बारिश होने की दुआ कर रही है !" अभी कुछ दिन पहले एक मंत्री ने अपने कोमनवेल्थ गेम्स को लेकर  ब्यान में ये दुआ  मांगी कि " भगवान् गेम्स के दौरान इतनी बारिश हो कि गेम्स बर्बाद हो जाये !" अब अगर सता के गलियारों में बैठे ये नेता गण अपने फायदे के लिए साफ़ तौर पर देश की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ने के ख्वाब देखेंगे तो बेचारी जनता अपना सहयोग क्यों देगी !
इन "खेलो" कि खबर लीक होने से एक सबसे बड़ा फायदा  या नुक्सान ये हुआ कि  2019 में होने वाले एशियाड खेलो के लिए भेजी जाने वाली दावेदारी सरकार कि तरफ से नामंजूर होने की गंध आने लगी है ! हालाँकि इन घपलो पर "शीला" सरकार और कोमनवेल्थ गेम्स के चेयरमेन "सुरेश कलमाड़ी" ये चीख-चीख कर कह रहे है की कोई घपला  नहीं हुआ और उनके पास सारा हिसाब मौजूद है लेकिन क्या आप इस पर विश्वास करेंगे ??? अभी तो सिर्फ धुआं उठना शुरू हुआ है लेकिन आग तलाशनी बाकि है ! क्या लगता है उस आग तक पहुचने में कितना समय लगेगा ??? या फिर उस आग तक पहुंचा ही नहीं जा सकेगा ! चलिए एक और प्रश्न का जवाब तलाशते है !

सोमवार, जुलाई 26, 2010

अपने बच्चे, बच्चे और दूसरो के मुसीबत !!!

आज सुबह की ही बात है,मम्मी से मिलने घर पर एक आंटी आई थी ! कई सालो की जान-पहचान है उनकी हमारे  साथ ! आते ही बातो का सिलसिला शुरू हुआ और उन्होंने मम्मी को बताया कि "उनके घर में दो सिंगल रूम सेट खाली है कोई अच्छा किरायदार बताना !" मम्मी ने कहा "ठीक है, कोई पूछने आएगा तो बता दूंगी !" अब इस पर आंटी जी की अगली लाइन थी कि 'कोई ऐसा बताना जिसके बच्चे ना हो ! " है.....???? आंटी जी की बात सुन कर मेरा रिएक्शन कुछ ऐसा ही था  ! अब इससे पहले की मम्मी कुछ बोलती मैंने झट से पूछ लिया "क्यों,आंटी आपको बिना बच्चो वाले किरायदार ही क्यों चाहिए ??" आंटी, बजाय कोई जवाब देने के मुझे देखने लगी ! मम्मी को आंटी की बात का कारण शायद पता था इसलिए उन्होंने मुझे चुप रहने को कहा, और आंटी से बोली आप छोड़ो इसकी बातो को !" लेकिन मैं भी मैं हूँ  अपने सवाल का जवाब लिए बगैर  चुप रहना मुझे नहीं आता ! हालाँकि इस वजह से कभी-कभी डांट भी पढ़ जाती है ! लेकिन फिर भी जवाब तो मैं लेकर ही रहती हूँ ! इसलिए अपना सवाल फिर से दोहराया "आंटी बताओ ना,आपको बिना बच्चो वाला किरायदार ही क्यों चाहिए" अब वो थोड़ी झेंप  चुकी थी और तुरंत बोली "अरे नहीं, मेरा मतलब है जिसकी नयी-नयी शादी हुई हो या फिर कोई ऐसा जिसके एक ही बच्चा हो" !
मैंने कहा "मुझे समझ नहीं आया,अभी तो आप कह रहे थे कि आपको बिना बच्चो वाले किरायदार ही चाहिए और अब आप कह रहे हो कि एक बच्चा हो, इसलिए ठीक से समझाओ कि आप कह क्या रहे हो !" अब आंटी, मेरी मम्मी से बोली "देखना इसको" ! "तब मम्मी बोली "कुछ नहीं बस बच्चे थोडा परेशान करते है इसलिए मना कर रही थी !" मैंने कहा "मतलब ???' तब आंटी बोली "अरे,अभी तू नहीं जानती, जब छोटे बच्चे होते है तो कितना परेशान करते है !  मैंने कहा "तो वो तो सभी के बच्चे करते है,आप इस वजह से किसी  किरायदार को कमरा नहीं दोगी !" आंटी बोली "अरे नहीं, घर में बच्चे होते है तो शोर बहुत करते है और हमेशा उधम मचा कर रखते है सर में दर्द कर देते है !"तब मैंने कहा,"आंटी,अभी तक तो सुना था कि जब कोई मकान मालिक किरायदार रखता है तो पूछता  है कि तुम शाकाहारी हो या मांसाहारी लेकिन आप ने तो नया रुल बना दिया !" तब मम्मी बोली " नहीं, अब बहुत से लोग बिना बच्चो वाले किरायदार ही चाहते है !"  
मुझे ये बात बुरी लगी कि बेचारा आदमी पहले तो एक अदद कमरे के लिए परेशान और अब मकान मालिको के नए-नए रूल्स से परेशान ! फिर कुछ देर बाद मुझे याद आया कि बच्चे तो आंटी जी के भी है और वो भी एक नहीं चार ! अभी लगभग चार-पांच साल पहले तक तो ये भी किराए पर ही रहती थी, अब इन्होने एक मकान बनवा लिया है ! तब मैंने आंटी से कहा, आंटी किराये पर तो आप भी रहती थी आप सोचो कि अगर आप किसी से उस वक़्त अपने लिए कमरा पूछती और तब आपसे कोई ये कहता तो आप को कैसा लगता ???" आंटी बोली 'सोनी, तेरी बात सही है, लेकिन फिर भी कौन मुसीबत चाहता है ??? मैंने कहा "मुसीबत ???? आंटी, बच्चे तो सभी के ऐसे होते है तो आप किसी और के बच्चो को मुसीबत कैसे कह  सकते हो !" तब आंटी ने कहा "अरे तुझे पता नहीं है, किरायेदारो के बच्चे कितना परेशान करते है !" मैंने कहा, " फिर भी आंटी आपको  सिर्फ इस वजह से तो किसी को कमरा देने से मना नहीं करना चाहिए !" इसके बाद आंटी जी एक के बाद एक अनोखे कारण देने लगी और मम्मी ने भी मुझे चुप ही रहने को कह दिया, लेकिन मुझे ये सारी बातें अच्छी नहीं लगी !
जब ये आंटी जी खुद किरायदार थी तब अक्सर कहती थी कि मकान मालिक बहुत चिक-चिक करते है और अब जब  मकान मालिक बन गई है तो कहती है कि किरायदार परेशान करते है ! पता नहीं लोग अपना  अतीत को क्यों भूल जाते है ??
दिल्ली में वैसे भी किराए पर कमरे मिलना मुश्किल होता है और उस पर कुछ लोग ऐसे होते है जो अपने मकान को एक सराय की तरह बना देते है जिसमे ना तो कोई सहूलियत होती है और ना ही कोई  सुविधा, फिर भी इन मकान मालिको के रूल्स ऐसे होते है कि जैसे किसी को महल किराये पर दे रहे है ! बेचारा, किरायदार ना हो इनका गुलाम हो ! कुछ लोग अक्सर पापा को भी सलाह देते है कि आप भी अपने घर कि छत  पर एक कमरा बनवा लो और किराए पर उठा दो  कमाई हो जाएगी, तब पापा कह देते है अरे नहीं, छत पर धूप बहुत आती है क्योकि हमारा घर चारो तरफ से घिरा हुआ नहीं है  "तो इस पर सलाहकारों का कहना होता है तो इसमें क्या हुआ जिसको ज़रूरत होगी वो लेगा !
मकान मालिको का ऐसा बर्ताव ही किरायदारो को परेशान करता है ! एक तो वो वैसे ही अपने हालातो से परेशान होते होंगे और दूसरे ये अनोखे मकान मालिक उन्हें चैन नहीं लगने देते ! सभी को सभी की परेशानी समझते हुए अपना सहयोग देना चाहिए ! आखिर सभी के हालत हमेशा एक से तो नहीं रहते !

बुधवार, जुलाई 14, 2010

अच्छा, महंगा, अस्तव्यस्त, और डूबता हुआ .........आपका और हमारा शहर "दिल्ली" !!!!

कुछ दिन पहले अखबारों में कुछ सर्वे छपे थे जो दिल्ली को लेकर थे और वो इस तरह थे !

  1.  दिल्ली देश का रहने लायक सबसे अच्छा और नंबर वन शहर है !
  2. एक न्यूज़ चैनल के अनुसार दिल्ली देश का सबसे महंगा शहर है !
  3. एक अन्य सर्वे के अनुसार  दिल्ली, ट्रैफिक अस्तव्यस्तता के मामले में दुनिया का पांचवा शहर है !
  4. एक अन्य सर्वे के अनुसार देश में आने वाले सभी विदेशी टूरिस्ट्स में से 67 % लोगो के अनुसार दिल्ली एक असुरक्षित शहर है !
 इन सभी सर्वे में कितनी सच्चाई है ये तो पता नहीं,  लेकिन अगर ये ज़रा भी सच है तो सोचने वाली बात ये है कि जिस शहर को देश का सबसे अच्छा और रहने लायक शहर कहा जा रहा है क्या  वास्तव में ऐसा है ??? दो दिन पहले हुई बारिश ने गेम्स के लिए आधी से ज्यादा उधडी हुई दिल्ली को तालाब में तब्दील कर दिया ! आज आलम ये है की बारिश ख़त्म हो जाने के बाद भी कई इलाके जलमग्न  हैं और हमेशा की ही तरह दिल्ली सरकार और एमसीडी ने आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू कर दिया और ये सिलसिला भी हमेशा की तरह बारिश ख़त्म होने के साथ-साथ ख़त्म हो जायेगा !
सर्वे में दिल्ली को सबसे अच्छा शहर कहने का आधार था यहाँ का रहन-सहन, हेल्थ और एजुकेशन ! इन आधारों पर दिल्ली को सर्वश्रेष्ट स्थान ???? ये वाकई हैरान कर देने वाली बात क्योकि इस  शहर में फोन करने पर पिज्जा तो 30 मिनिट में आपके घर पहुँच जायेगा लेकिन अम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और दिल्ली पुलिस जैसी सुविधाए 30 मिनिट में आपके घर पहुँच जाये इस बात की  गारंटी नहीं ! लेकिन वी.आई.पी. इलाकों में ये सुविधाए 30 मिनिट से पहले भी पहुँच सकती है तो हुआ ना ये शहर रहने लायक अब सभी लोग वी.आई.पी. इलाकों में नहीं रहते तो इसमें बेचारे सर्वे करने वालो की क्या गलती !  अब अगर हेल्थ की बात करे तो दिल्ली में सभी तरह चिकित्सीय सुविधाए मौजूद  है लेकिन यहाँ भी बात आती है की ये सब किसके लिए है, अब सभी तो प्राइवेट अस्पताल का खर्च उठाने में समर्थ हो नहीं सकते और जो सरकारी अस्पताल में शरण लेते है वो ज्यदातर भगवान् भरोसे ही जीते है और अगर एजुकेशन की बात की जाये तो जहां आपको कार लोन दो दिन में मिल सकता है वहीँ आपको एजुकेशन लोन के लिए दो हफ्ते से भी ज्यादा का इन्जार करना पढ़ सकता है ! अब बैंको के अनुसार देश की राजधानी में एजुकेशन ज़रूरी हो या ना हो लेकिन कार होना ज़रूरी है ! अब देश के सबसे अच्छे शहर में रहने के लिए कुछ तो स्टेटस होना ही चाहिए !
अब दूसरे सर्वे के अनुसार दिल्ली देश का सबसे महंगा शहर है ! ये सर्वे तो झूठ हो ही नहीं सकता ! अभी कल ही ही बात है मैंने टोमेटो सूप पीने की इच्छा जाहिर की लेकिन पता लगा की टमाटर 50 रूपये किलो हो गए है ! कीमत सुन कर मैंने इंस्टेंट मेक सूप से ही काम चलाया ! टमाटर, जो की हर सब्जी की जान है वो अगर इतना महंगा है तो बाकी सब्जियों का क्या ??? सब्जियों के अलावा रोज़मर्रा की ज़रुरतो में काम आने वाली सभी चीजों की कीमते आज आसमान में छलांगे लगा रही है तो कैसे नहीं होगा ये देश का सबसे महंगा शहर, बिलकुल होगा !
तीसरे सर्वे में दिल्ली को ट्रेफिक अस्तव्यस्तता के मामले में विश्व में पांचवा स्थान प्राप्त हुआ है ! यह  जान कर  ख़ुशी हुई खुशी इसलिए की शुक्र है आज विश्व में दिल्ली से भी ज्यादा ट्रेफिक ट्रबल वाले शहर है लेकिन वास्तव में इस सर्वे पर यकीं नहीं हो रहा ! लेकिन अगर यही हालत रही तो कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान पूरे भारत  का प्रतिनिधित्व करने वाली दिल्ली गेम्स में इस ट्रैफिक ट्रबल से अपनी इज्ज़त बचा पायेगी ??? क्या तब  सडको पर पदने वाला अतिरिक्त भार दिल्ली ढो पायेगी ???
अब बात उन विदेशी सैलानियों की जिन्होंने दिल्ली को एक असुरक्षित शहर का तमगा दिया ! कुछ दिन पहले ट्विटर पर मंदिरा बेदी की ट्वीट पढ़ी थी जो शायद इसी सर्वे को लेकर लिखी गई थी जिसके अनुसार "दिल्ली, लडकियों के लिए मुंबई से ज्यादा असुरक्षित है !" वास्तव में अगर दिल्ली में लडकियों की सुरक्षा की बात की जाये तो दिल्ली में अब भी लडकियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण तैयार नहीं हुआ है ! अक्सर भीड़ में छूने की कोशिश में निकलता किसी पागल जानवर का हाथ, चौक-चौराहों पर घूरती  हुई नज़रें, उलजलूल फब्तियां इस बात का सबूत है कि दिल्ली में आज भी एक अकेली लड़की दिल्ली के मर्दों की टेढ़ी नज़र का कारण है ! क्या इस माहौल  में विदेशी युवतियां खुद को सुरक्षित रख पाएंगी ??? क्या सभी विदेशी सैलानी गेम्स का आनंद निर्भय हो कर ले पाएंगे ???
आज दिल्ली को हर तरफ से सजाने की कोशिश की जा रही है ! कल ही पढ़ा था की अ़ब जगह-जगह सडको को गन्दा करने वालो पर डबल फाईन लगेगा ! लेकिन क्या ये फाईन लोगो को बदल सकेगा ??? क्या दिल्ली सरकार सडको के साथ-साथ लोगो के दिमाग भी चमका सकेगी, जिनमे अपने देश की इज्ज़त को लेकर कोई जागरूकता नहीं है ! क्या सिर्फ टैक्सी, ऑटो वालो को अंग्रेजी भाषा सीखा देने भर से उनके रवैये में सुधार हो सकेगा ??? डर है की उस वक़्त अखबारों में गेम्स से ज्यादा चर्चा विदेशी सैलानियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की ना हो ! जिस गेम्स से सरकार और जनता ये उम्मीद लगाये हुए है की भारत को इससे एक ऊँचा आयाम मिलेगा, भारत का विदेशी व्यापार बढेगा, या विश्व पटल पर भारत की मांग  बढेगी, इश्वर ना करे की उस गेम्स के बाद ये नज़ारा उल्टा हो !

सोमवार, जुलाई 12, 2010

पॉल, मणि और रेहान भाई की टोपी...............

फुटबाल वर्ल्ड कप का नतीजा आ चुका है और पॉल की जीत हो चुकी है ! अब  स्पेन की जीत कहने से तो पॉल की जीत कहना ज्यादा अच्छा लग रहा है क्योकि फुटबाल से ज्यादा तो इसके नतीजों की भविष्वाणी करने वाले पॉल और मणि ही मशहूर हो रहे थे ! आज चारो तरफ फुटबाल वर्ल्ड कप की विनर टीम से ज्यादा इनका शोर है ! वैसे पिछले कुछ दिनों से अच्छी खासी चर्चा पा रहे थे ये दोनों ! फिर चाहे सोशल नेटवर्किंग साईट हो, प्रिंट मिडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मिडिया या फिर अपना ब्लोगर ! बल्कि पॉल शब्द तो ट्विटर पर एक दिन में इस्तेमाल होने वाला सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द बन गया ! अब ये फुटबाल कप जो भी टीम जीतती, तो जीत उसकी भविष्वाणी करने वाले की ही जीत होती और इस बार जीत हुई पॉल की, मणि हार गया, वैसे भी जीत तो एक ही की होनी थी ! क्योकि अगर होलैंड जीतता तो मणि जीतता ! अब अपनी इस भविष्वाणी के सच हो जाने पर  ना जाने कितनी ही और भविष्वाणी पॉल को करनी पड़ेंगी और कितने ही लोगो से रोज़ मिलना पड़ेगा ! पता नहीं लोगो को पॉल की अपोयिन्टमेंट मिलेगी भी या नहीं ! इस वक़्त तो देश के सबसे बड़े वी.वी.आई.पी. पॉल ही होगा ! लेकिन इस सबसे एक बात ज़रूर साबित हो गई कि अन्धविश्वाश ना सिर्फ अपने देश में बल्कि पूरे विश्व में आज अपनी चरम सीमा पर है ! अब इस की एक कड़ी देखिये "रेहान भाई" बिरयानी वाले !


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ये है रेहान भाई जो सिटी प्लाज़ा मार्केट, सेक्टर 62 नॉएडा में अपनी चलती फिरती दुकान के साथ दोपहर एक बजे पहुँच जाते है ! इन्हें यहाँ अपनी इस चलती फिरती दुकान को लगाते हुए तकरीबन छ से सात साल हो गए ! इनकी दुकान पर मिलने वाली चिकन बिरयानी के सभी कायल है और यहीं वजह है की दुकान लगने के लगभग छ घंटे के अन्दर ही रोज़ बना कर लायी हुई इनकी कई किलो बिरयानी हाथो-हाथ बिक जाती है ! 35 रूपए हाफ प्लेट का मूल्य भी लगभग सभी की जेबों को सूट करता है ! लेकिन अब ये रेहान भाई पिछले कुछ दिनों से अपनी दुकानदारी से खुश नहीं है और वजह भी बड़ी अनोखी है ! चलिए वजह जानने से पहले एक नज़र इनके स्टाइल पर डाल ली जाये !



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अब इनका स्टाइल देख कर कोई सेलेब्रेटी तो याद आ ही गया होगा और अगर अब भी याद नहीं आया तो अब इस अगली तस्वीर को देख कर आपको समझ आ ही जायेगा की ये किसके स्टाइल की कोपी है !



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जी हाँ, ये हिमेश रेशमिया की ही कोपी है ! लेकिन यहाँ बात सिर्फ स्टाइल कॉपी करने की नहीं है बात थोड़ी बड़ी है ! दरअसल ये रेहान भाई पिछले पाँच सालो से हिमेश रेशमिया का स्टाइल फोलो करते आ रहे है ! ड्रेस से लेकर टोपी तक सब कुछ, बहुत बड़े फैन है हिमेश रेशमिया के ! लेकिन आजकल थोड़े दुखी है और दुखी होने की वजह ये है की इनकी बिरयानी की बिक्री पहले के मुकाबले थोड़ी कम हो गई है ! अब इसकी कई वजह हो सकती है, लेकिन रेहान भाई अपनी बिरयानी की बिक्री कम होने की सिर्फ एक वजह मानते है और इनके अनुसार वो वजह है हिमेश रेशमिया का अब टोपी ना पहनना ! सुन कर हैरानी हुई कि हिमेश रेशमिया के टोपी ना पहनने से इनकी बिक्री का क्या लेना देना  ????

लेकिन रेहान भाई तो यहीं मानते है की जबसे हिमेश रेशमिया ने अपनी टोपी उतारी है तब से ही इनकी बिरयानी की बिक्री कम हुई है और अब ये चाहते है की हिमेश रेशमिया फिर से टोपी पहनना शुरू कर दे ! वैसे कुछ समय पहले तक हिमेश रेशमिया भी अपनी टोपी को अपने लिए लकी मानते थे और अपनी ये टोपी वो म्यूजिकल शो "सारेगामापा" के कंटेस्टेंट विनीत को भी पहना चुके थे ! अब इस टोपी ने इन दोनों कि कितनी किस्मत बदली ये तो वही जाने लेकिन हमारे रेहान भाई तो पूरी तरह से इस टोपी को ही अपनी किस्मत मान चुके है ! मेरे लिए तो ये किसी अन्धविश्वास से कम नहीं है !

अब जबसे हिमेश रेशमिया ने टोपी पहनना छोड़ दिया है तब से रेहान भाई बड़े दुखी है ! लेकिन अब इन्हें कौन समझाए कि जो टोपी इनके स्टाइल आइकॉन हिमेश रेशमिया कि किस्मत नहीं बदल सकी वो इनकी बिरयानी कैसे बिकवायगी ! तो जाइये आप भी मिल कर आईये इन रेहान भाई उर्फ़ हिमेश रेशमिया के डुप्लिकेट से और लुत्फ़ उठाइए इनकी चिकन बिरयानी का शायद तब बिक्री थोड़ी ज्यादा हो जाये और इन्हें ये ज्ञात हो जाये, कि किसी और के टोपी पहनने या ना पहनने  से इनकी दुकानदारी पर असर नहीं पढता !

ये सभी तस्वीरे मेरे मित्र और इन्ही की बिरयानी के शौक़ीन प्रदीप लांबा द्वारा ली गई है !



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रविवार, जुलाई 04, 2010

जब उड़ी मेरे नाम की धज्जियाँ !!!!!

मुझे नियमित रूप से पढने  वालो को पता होगा की मैंने अपनी एक पोस्ट में एक व्यंग्य लिखा था ! जिसका शीर्षक था, "नेता जी की नरक यात्रा" ! ये हास्य व्यंग्य लिखा तो मैंने था लेकिन इसकी मूल रचनाकार मैं नहीं थी ! ये बात मैं तब बता चुकी थी !
मेरी आदत है की कुछ भी अच्छी लाइन या कोई अच्छा वालपेपर या फिर अपनी ही कोई चुनिन्दा पोस्ट को मैं अपने फेसबुक अकाउंट पर अपडेट कर देती हूँ और यहीं मैंने इस हास्य व्यंग्य के साथ भी किया  और वहाँ भी कमेन्ट आने शुरू हो गए ! तब वहाँ भी मुझे अपनी सफाई देनी पड़ी और यही हाल जागरण जक्शन पर भी हुआ ! खैर अब वो बात ख़त्म हो चुकी थी ! लेकिन जब मैंने अपनी आदत अनुसार एक  वालपेपर अपने फेसबुक अकाउंट पर अपडेट किया तो फिर से वही सब पिछला शुरू हो गया ! लोगो के कमेन्ट आने शुरू हुए ! सभी ने मेरे उस लिखने की शेली की तारीफ की जो मेरे लिए टेढ़ी खीर है ! आप भी इस वालपेपर पर एक नज़र डालिए !




इसे लिखने में किसका दिमाग है मुझे पता नहीं ये तो मैंने गूगल से डाऊनलोड किया था ! वैसे भी ऐसा कुछ लिखने की कला मुझमे नहीं है ! लेकिन वहीँ अपना पुराना राग की अगर कुछ अच्छा लगता है तो उसे पोस्ट कर देती हूँ  और जब इस वालपेपर को अपडेट करने के बाद एक बार फिर से सभी को ये बताना पड़ा की ये मैंने नहीं लिखा !
इसलिए  अब तय किया हैं कि जब भी ऐसा कुछ हास्यपूर्ण पढूंगी तो रचनाकार के नाम के साथ सीधा लिंक ही पोस्ट कर दूंगी ! तो इसी के चलते आज एक लिंक दे रही हूँ इस कहानी  के लेखक और नायक है श्री आर. के. खुराना जी ! आप भी एक नज़र डालिए इनकी कहानी पर !
बेशक, मैं खुद तीखा लिखती हूँ लेकिन मुझे हास्य पढना ज्यादा पसंद है और अक्सर ऐसा कुछ तलाशती रहती हूँ ! इस कारण ही मैं खुद कुछ हास्य कवियों और कार्टूनिस्ट कलाकारों को फोलो भी करती हूँ ! ऐसे ही  हास्य की तलाश  में मैंने श्री सचिन देव  जी बाउंसर पढे ! बाउंसर ऐसे की कोई भी क्लीन बोल्ड हो जाये ! इनके बाउंसर में एक नाम मेरा भी था तो आप भी पढ़िए की किस तरह इन्होने अपने चोथे बाउंसर में मेरे नाम और मेरे ब्लॉग teekha bol को क्लीन बोल्ड किया ! 
हालाँकि उनके ये बाउंसर ११ जून को फैके गए थे लेकिन मेरी लेटलतीफी की हद देखिये कि मेरा  इनसे सामना  ३ जुलाई को हुआ या यू कहे कि इनके बाउंसर मुझ तक पहुचने से पहले थक गए !  वैसे जवाबी कारवाही तो मैंने भी कर  दी ! लेकिन फिर भी इन लाज़वाब बाउंसर के आगे टिकना थोडा मुश्किल ही लगा !
तो आज आप सभी हंसिये अगली बार अपने तीखे बोल के साथ जल्द ही मिलूंगी ! वैसे भी इस बार आने में थोड़ी देर हो गई !

गुरुवार, जून 17, 2010

कब बदलेगी ये "इज्ज़त" की सोच ????

कल के अखबार में एक खबर पढ़ी, खबर दिल्ली के स्वरूप नगर की थी जिसमे एक लड़का और एक लड़की शादी करना चाहते थे मतलब प्रेम विवाह ! अपने घर वालो की मर्जी से, लेकिन जब लड़का, लड़की के घर अपनी शादी की बात करने गया तो लड़की के घर वालो ने लड़के को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया और ये देख कर जब लड़की ने लड़के को बचाने की कोशिश की तो उन लोगो ने लड़की को भी पीटना शुरू कर दिया ! पीटते-पीटते भी जब उनका मन नहीं भरा तो उन्होंने दोनों को लोहे के ट्रंक  में डाल कर उन्हें तब तक बिजली का करंट दिया जब तक वो मर नहीं गए ! आज उन दोनों को मारने वाले लड़की के ताऊ और लड़की के पिता दोनों की पुलिस की गिरफ्त में है !और दोनों में से किसी को भी अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है !
अब दूसरी खबर .........अभी कुछ दिन पहले की ही बात जब एक युवक और एक युवती ने गंगनहर में कूद कर जान दे दी और यहाँ भी वजह वही थी दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन दोनों के शायद घरवाले इस बात से राज़ी नहीं थे !
ऐसी और ना जाने कितनी ही घटनाएं हम रोज़ अखबारों में पदते है और अपने आस-पास देखते है ! इन सभी घटनाओं में सिर्फ एक ही चीज़ उभर कर आती है और वो है घर की इज्ज़त ! जिसके लिए माता-पिता अपने ही बच्चो का क़त्ल करने से नहीं हिचकते ! अभी पिछले दिनों ही 'निरुपमा' का केस सामने आया जिसकी चर्चा  मैं अपने ही एक पूर्व  लेख में कर चुकी हूँ !
आखिर माँ-बाप अपनी ही बेटी का क़त्ल कैसे कर सकते है ??? वो भी उस बेटी का ------
जिस बेटी को एक माँ ने अपने ढूध से सीचा,
जिस बेटी की ऊँगली पकड़कर पिता ने उसे चलना सिखाया,
जिसकी उंगलियों ने अपने भाई की कलाई को राखी से सजाया,
जिसकी एक मुस्कराहट ने पिता का हर गम दूर किया,
जिसकी गूंजती किलकारी ने माँ के होटो पर एक मुस्कान बिखेरी,
जिसे कभी पिता ने अपने घर की रौनक कहा,
जिसकी मासूम शरारतो ने भाई को हंसाया तो कभी परेशान किया,
जिसकी एक छोटी सी ख्वाइश पर भी पिता ने अपना सब कुछ वार दिया,
जिसकी हर पसंद नापसंद को पिता ने अपनी पसंद नापसंद बनाया,
जिसकी एक छोटी सी आह पर पिता ने दुनिया सर पर उठा ली,
जिसे पिता ने कभी अपने जीने की वजह बताया,
जिसकी हर सांस से माता-पिता ने अपनी हर सांस जोड़ ली,
जिसकी चंचलता ने माता-पिता को प्रफुल्लित कर दिया,
जिस पिता के आँगन में खेल कर वो बड़ी हुई,
उसकी एक चाहत  ने ऐसा क्या कर दिया कि,
                 "एक पिता अपनी ही बेटी का कातिल बन गया"    
स्वरुप नगर कि घटना में अपनी ही बेटी का क़त्ल करने के बाद एक पिता और एक ताऊ को (जो मेरी नजरो में पिता समान ही है) उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं ! क्या ये सब करने के बाद वो दोनों पिता कहलाने लायक है ??
हमेशा से सुनती आई हूँ कि माता-पिता अपने बच्चो के लिए कुछ भी कर सकते है ! किसी भी माता-पिता के जिंदगी कि सबसे बड़ी चाहत अपने बच्चो को खुश  देखना ही होती है ! लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है ???
किस इज्ज़त और किस समाज के लिए वो ऐसा कुक्र्त्य करते है !
 क्या इज्ज़त, अपने ही जन्म दिए बच्चो कि ख़ुशी से बढकर है ???
अगर माता-पिता को कुछ वास्तव में गलत लगता है तो बच्चो को समझाया भी जा सकता है उन्हें उनकी गलतियों से अवगत भी कराया जा  सकता है, लेकिन शायद नहीं क्योकि माता-पिता अक्सर अपने बच्चो के प्रश्नों का ना तो जवाब देना चाहते  और ना ही उन्हें समझना चाहते, उन्हें ये पसंद ही नहीं कि उनके बच्चे कोई फैसला ले या फिर वो अपनी पसंद का जीवनसाथी चुन सके और शायद इसलिए ही माता-पिता के पास अपने बच्चो की पसंद को खारिज कर उन्हें मौत के घाट उतारने में भी कोई हिचक महसूस नहीं होती ! बल्कि अपने किए हुए ऐसे नरसंहार को वो गर्व से सही भी ठहराते  है ! हाँ भई, तो क्या हुआ बच्चे जिंदा नहीं है  उनकी इज्ज़त तो जिंदा रह ही जाती है ! जिसे शायद वो ताउम्र अपने गले से  लगा कर सके ! शायद यही इज्ज़त उन्हें हर ख़ुशी दे सके, शायद यही इज्ज़त उनके जीवन का सहारा बन सके, और शायद यही इज्ज़त उनकी आखिरी सांस में उन्हें सहारा दे सके !
ओनर किलिंग पर लिखे अपने पिछले लेख की ही तरह आज एक बार फिर से हार मान गई ! माता-पिता की सोच शायद बच्चो की बली दे कर ही बदलेगी लेकिन इस सोच को बदलने के लिए  और कितनी बलीया देनी पड़ेंगी ???

मंगलवार, जून 08, 2010

नेता जी की नरक यात्रा ...................

एक भ्रष्ट नेता जी, (ईमानदार  नेता के साथ भगवान् ऐसा कभी ना करे) की कार दुर्घटना  में मृत्यु हो गई ! ( ऐसा अक्सर होता नहीं है ) मृत्यु के बाद उनकी आत्मा को यमराज  एक बड़ी सी लिफ्ट में यमलोक लेकर पहुंचे ! आखिर वीआईपी जो ठहरे, अब भैसे पर तो आम आदमी ही बैठता है ! खैर ......यमलोक पहुचे तो  नेताजी से पूछा गया की कहाँ रहना पसंद करेंगे नरक में या स्वर्ग में ????  नेताजी जी सोच में डूब गए की कहाँ रहा जाये ??? तभी एक यमदूत ने उन्हें कहा की आपकी सहूलियत के लिए हम आपको एक-एक दिन दोनों जगह रहने देते है उसके बाद आप फैसला लेना कि कहा रहना है ! नेताजी को बात जँच गई और उन्होंने तुरंत हामी भर दी !
उसके बाद नेताजी को पहले नरक दर्शन के लिए ले जाया गया, उसी बड़ी वाली लिफ्ट में ! लिफ्ट ऊपर जाने लगी , और थोड़ी देर में लिफ्ट में ऊपर पहुँच गई ! जैसे ही लिफ्ट का दरवाज़ा खुला सामने नरक था ! नरक को देखते ही नेताजी की आँखे चोंधिया गई ! बाहर एक बड़ा सा गोल्फ कोर्स बना हुआ था जहां कई लोग गोल्फ का आनंद ले रहे थे, थोडा और अन्दर जा कर देखा तो एक बड़ा सा बीअर बार बना हुआ था जहां नेताजी की पसंद के अनुरूप सभी सुविधाए मोजूद थी ! वही नेताजी के सभी यार दोस्त भी बैठे हुए मिल गए ! नेताजी ने सभी के साथ बड़ा आनंद लिया, और इस तरह एक दिन कब बीत गया नेताजी को पता भी नहीं चला !
अगले दिन फिर से वही यमदूत नेताजी को लेने आ गया ! नेताजी फिर से लिफ्ट में सवार हुए और चल पदे स्वर्ग की ओर ! लिफ्ट थोड़ी ही देर में स्वर्ग पहुँच गई ! जैसे ही नेताजी ने स्वर्ग में प्रवेश किया तो वहाँ देखा की चारो तरफ सत्संग चल रहा है ! लोग ध्यान पूजा में मग्न है ! हर कोई ईश्वर भक्ति में मंत्मुघ्द हुआ बैठा है ! ये सब नेताजी को अच्छा तो लगा पर बहुत अच्छा नहीं ! यहाँ तो नेताजी के लिए एक दिन भी बिताना मुश्किल हो गया ! परेशान नेताजी ने जैसे-तैसे एक दिन काटा ! अगली सुबह फिर से वही यमदूत नेताजी को लेने पहुँच गया ! नेताजी फिर से उस बड़ी वाली लिफ्ट में सवार हुए ! थोड़ी देर में लिफ्ट यमराज के ऑफिस के बाहर रुकी !
अब नेताजी को एक फॉर्म भरने के लिए दिया गया, जिसमे उनसे पूछा गया की वो नरक में रहना पसंद करेंगे की स्वर्ग में ???
नेताजी ने जवाब में लिखा " वैसे तो स्वर्ग अच्छा है लेकिन वहाँ मेरी जान पहचान का कोई भी नहीं है ओर नरक में तो अपने सभी यार दोस्त है ही ओर मेरी पसंद की सभी चीज़े भी है वहाँ मौजूद है, तो इस कारण वश मैं नरक में ही रहना चाहूँगा !" ओर ये लिख कर नेताजी ने अपना फॉर्म जमा कर दिया !
नेताजी की इच्छा को माना गया ओर यमराज ने अपने यमदूत से कहा की इन्हें अगले दिन नरक में भेज दिया जाए ! नेताजी ये सुन कर बड़े खुश हुए !
अगले दिन नेताजी को यमदूत ने फिर से लिफ्ट में बैठाया ओर चल दिए नरक की ओर ! लिफ्ट धीरे-धीरे ऊपर जाने लगी ओर नेताजी की ख़ुशी तेजी से बदती गई ! थोड़ी देर बाद नरक आ गया ओर नेताजी को वहाँ छोड़ा गया ! लेकिन ये क्या नेताजी को तो अचानक गुस्सा आ गया ! उन्हें नरक में ना तो वो गोल्फ कोर्स दिखा ओर ना बीअर बार और ना ही अपने वो सभी दोस्त ! बल्कि आज तो नरक में चारो तरफ गंदगी  फैली हुई थी ओर वहाँ सभी लोगो की काम ना करने के कारण पिटाई भी लगाई जा रही थी ! ये देख कर नेताजी घबरा गए ! उन्होंने यमदूत से पूछा, ये सब क्या है ???? कल तो यहाँ बढ ही सुन्दर नज़ारा था ओर आज ये सब क्यों ????
तब यमदूत ने बड़े प्यार से बोला "वो क्या है ना नेताजी कल स्वर्ग ओर नरक के इलेक्शन थे ओर हमें आपका वोट चाहिए  था, बस इसलिए ही आपको वो सब्जबाग दिखाया गया था ! अब आप यही रहिये !"
भगवान् नेताजी की आत्मा को शांति दे !!!!!!!

शनिवार, जून 05, 2010

अजी छोड़िए ये मजाक .......

आज विश्व पर्यावरण दिवस है सभी जानते होंगे ! प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस ! अच्छा है, वैसे भी ये तो आजकल का चलन बन गया है किसी को साल में एक दिन याद करके बाकि दिन भूल जाने का ! फिर चाहे विश्व पर्यावरण दिवस हो, अर्थ अवर डे, या फिर कोई और दिन !
अब आज सब बैठ गए सुबह  से इस मुद्दे पर अपने-अपने विचार देने  और लगे हाथ मैं भी आ गई इस पर अपना teekha bol सुनाने  !
 तो सुनिए, अब तक सभी ने यही कहा और सुना होगा की आज के दिन हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने  चाहिए या फिर अपने आस पास के पेड़ो को कैसे बचाना चाहिये ! और सही भी है अगर हम इन पेड़ो की रखवाली नहीं करेंगे या इन्हें सही तरीके से सीचेंगे नहीं तो ये हमारा साथ नहीं देंगे ! लेकिन क्या सिर्फ खाद पानी दे देने भर से इनकी देखभाल हो जाती है या सिर्फ नए पेड़ लगाने भर से ही हम अपने पर्यावरण को बचा लेंगे !
कुछ आंकड़े बताती हूँ जो अभी कुछ दिन पहले एक विद्यार्थी की साइंस की और सामान्य ज्ञान की किताब में पढे थे !
  1. एक एयर कंडिशनर एक घंटे में 3 kg कार्बन डाई ऑकसाइड उत्पन्न करता है !
  2. एक गीजर एक घंटे में 3.3 kg  कार्बन डाई ऑकसाइड उत्पन्न करता है !
  3. पूरा विश्व एक दिन 80 मिलियन बैरल तेल खर्च करता है ! ( वाहनों पर )
  4. अब तक 200 मिलियन हेक्टयर जंगल प्रथ्वी  पर से नष्ट हो चुके है !
  5. तंजानिया में माउन्ट किलिमंजारो 1912 से अब तक 80 % पिघल चुका है और सन 2020 में ये  पूरी तरह समाप्त हो जायेगा !
ये वो सुविधाए है जिन्हें हम सभी इस्तेमाल करते है , लेकिन जाने-अनजाने किस कदर हम पर्यावरण को नुक्सान पंहुचा रहे है ! उसका हमें इल्म भी नहीं !  हमारी प्रयोग में आने वाली सुविधाओ से हम पर्यावरण  को ना जाने कितने टन कार्बन डाई ऑकसाइड दे रहे है अगर हिसाब लगाने बैठे तो सभी  गणितज्ञ मात खा जाये !
कोई भी एक बड़ा वृक्ष अपने पूरे जीवन में एक टन कार्बन डाई ऑकसाइड सोखता है ! अब ज़रा गौर करिए अगर एक वृक्ष  एक टन कार्बन डाई ऑकसाइड अपने जीवन में सोख रहा है तो हम अपनी तरफ से जो कार्बन डाई ऑकसाइड पर्यावरण को तोहफे में दे रहे उसको सोखने के लिए कितने वृक्षों ज़रूरत होगी !  लम्बा हिसाब है !
हम अक्सर चिल्लाते है गर्मी है गर्मी है, कभी पर्यावरण के चिल्लाने की आवाज़ सुनी है ???? कभी सुना है धरती माँ को ये कहते की बस करो अब और नहीं सह सकती ! कभी पेड़ो को चिल्लाते सुना है ??? मत काटो हमें ! कभी सुना है अपने आस-पास के परिंदों को चिल्लाते,मत उजाडो हमारे घर ! कभी सुना है जलीय जीव को चिल्लाते मत करो मेरा घर गन्दा ! शायद सुना हो या नहीं भी सुना हो लेकिन सुन कर भी क्या फायदा,हम तो वैसे भी अक्सर पीडितो की आवाज़ अपने लाभ के लिए अनसुनी कर ही देते है !
भारतीय पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ने कहा था "एक पेड़ दस बेटो के बराबर होता है, क्योकि ये हमें दस चीज़े देता है , ऑक्सीजन,पानी,कपडा,दवाई,एनर्जी,फूल,छाया,लकड़ी,अन्न,फल,अन्य खाद्य पदार्थ !"
अब आप ही सोचिये कि सिर्फ एक दिन हम अपने पर्यावरण को याद करके कौन सा मजाक कर रहे है ?????

सोमवार, मई 31, 2010

क्यों ना देखू पायरेट फिल्म ?????

कल ही कि बात है, सोचा कि दीदी घर आई हुई है चलो  कोई फिल्म देख कर आते है, जब ये बात दीदी को बोली तो उन्होंने कहा कि "कोई ऐसी फिल्म रिलीज़ हुई है जिस पर छ-सात सौ रुपए खर्च किए जा सके ???" सच कहू तो उस वक़्त मैं चुप हो गई ! वैसे भी इस मामले में अक्सर दीदी से डांट पड़ जाती है ! वैसे भी अब तक जितनी भी फिल्मे किसी मल्टीप्लेक्स  पर जा कर देखी है उन सभी में से कुछ को छोड़ कर बाकी सभी उतने पैसे खर्च करने लायक थी नहीं ! दिल्ली में अब वैसे भी सिंगल स्क्रीन थियेटर बंद होते जा रहे है और जो अब भी बाकी है उन पर अच्छी फिल्मे रिलीज़ नहीं होती ! तो बचते है मल्टीप्लेक्स ! वैसे बचते है क्या बल्कि आज यही एक ऑप्शन है ! अब अगर दो लोग भी इन मल्टीप्लेक्स पर फिल्म देखने जाये तो उनका खर्चा कितना होगा ! अगर फस्ट शो देखने जा रहे है तो
टिकेट = 150 /- रूपये (एक के लिए)
पोपकोर्न = 75 /- रूपये (एक छोटा टब)
कोल्ड ड्रिंक = 50 /- रूपये एक गिलास ( कही-कही मूल्य ज्यादा भी होता है )
और अगर पानी की प्यास लगी तो आपको पानी भी यही से खरीदना पड़ेगा क्योकि पानी की बोतल ले जाना मना होता है !
आने-जाने का खर्चा अलग ( अब तो पेट्रोल भी महंगा हो गया है )
अगर इस खर्च को जोड़ा जाये तो 150 +75 +50 = 275 /- रूपये ये एक का खर्चा होगा
और दोनों का खर्चा होगा 275 +275 = 550 /- रुपए
अब अगर ये 550 /- रुपए किसी अच्छी फिल्म पर खर्च किए जाये तो हम खुश हो कर यही कहते है कि पैसे वसूल हो गए लेकिन अगर इतने ही पैसे कुछ ऐसी फिल्मो पर खर्च किए जाये जो देखने लायक ही ना हो तो ??? तो मैं तो यही कहती हूँ "मेहनत कि कमाई पानी में बह गई !"
जब भी कोई फिल्म रिलीज़ होती है तो उस फिल्म के निर्माता-निर्देशक सभी से यही कहते है कि हमारी फिल्म सबसे अलग है और आप सभी लोग इन्हें थियेटर में जा कर देखे ! वाकई कई फिल्म इतनी अलग होती है कि वो या तो किसी  दूसरे गृह के प्राणियों को दिखाने के लिए बनाई  गई हो या फिर किसी को थर्ड डिग्री देने के लिए ! ऐसी फिल्मो पर पैसे खर्च करने से तो यही अच्छा है कि मैं पायरेट फिल्म देखू या इन्हें सीधे इंटरनेट से ही  डाऊनलोड कर लूँ  ! हालाँकि ये दोनों ही तरीके गैरकानूनी है ! लेकिन इस तरह इन बे सिर पैर कि फिल्मो पर खर्च की जाने वाली हमारी मेहनत की कमाई तो बच ही सकेगी, क्योकि वैसे भी हमारे बोलीवुड के ज़्यादातर निर्माता-निर्देशकों की फिल्मे या तो होलीवुड से प्रेरित होती है या फिर किसी भुतिया कहानी से ! वैसे इस तरह की फिल्मो को देखने के लिए या तो पैसे वापसी की गारंटी मिलनी चाहिए  या फिर टिकेट के पैसे शो ख़त्म होने के बाद लिए जाए ! लेकिन ऐसा हो नहीं सकता ! इसलिए जब तक अच्छी फिल्मे नहीं बनेंगी तब तक ये पायरेटेड फिल्मो का गोरखधंधा  यूही चलता रहेगा ! फिर चाहे ये निर्माता-निर्देशक कितना भी चिल्लाये, क्योकि ना तो ये टिकेट के पैसे ही  कम करते है ना ही अन्य खर्चे कम करते है ! लेकिन काम के साथ सभी को मनोरंजन भी चाहिए, लेकिन ऐसे महंगे होते मनोरंजन पर कैसे खर्च किया जाये ???

मंगलवार, मई 25, 2010

क्यों जीए 150 -200 साल ????

अभी  कुछ दिन पहले किसी न्यूज़ चैनल पर  बाबा रामदेव ने ये घोषणा की है, कि वो आयुर्वेद और योग के सहारे 150 से 200 वर्ष तक जिन्दा रह सकते है, और अगर जलवायु और वातावरण  स्वच्छ हो तब तो वो 400 वर्ष तक जिन्दा रह सकते है !
अब ये घोषणा बाबा रामदेव ने की है तो कुछ तो सच होगी ही (अब यूही तो उन्हें "योग गुरु बाबा रामदेव" कहा नहीं जाता) या हो सकता है सच ना भी हो, हाँ, लेकिन आयुर्वेद और योग के सहारे 100 वर्षो तक तो जीया जा  सकता है ! इतना भरोसा तो मुझे भी आयुर्वेद और योग पर है ही ! लेकिन क्या  वास्तव में ऐसा हो सकता है ???
अगर इसे दूसरे तरीके से समझा जाए तो मेरे विचार से तो, ऐसा नहीं हो सकता ! कोई भी अपनी म्रत्यु पर विजय नहीं पा सकता ! इंसान योग और आयुर्वेद की ताकत से अपने शारीर को अंदरूनी बीमारियों से तो बचा सकता है लेकिन बाहरी बीमारियों का क्या ?? जो आए दिन इंसानों पर अपना असर दिखाती रहती है !
बाबा रामदेव की इस घोषणा के अलावा आपने एक और खबर सुनी होगी, अभी आंध्र प्रदेश और तमिल नाडू  में भयानक तूफ़ान आया "लैला", ये तूफ़ान ना जाने कितनी ही जिंदगिया  लील गया ! इसके अलावा मेंगलोर में अभी एक हवाई हादसा भी हुआ जिसमे 150 से अधिक जिन्दगिया खाक हुई और इनके अलावा और ना जाने कितने ही हादसे रोज़ होते रहते है जिसमे कितनो कि जाने जाती रहती है !
अब अगर इन तीनो खबरों पर गौर किया जाए तो कोई भी बाबा रामदेव द्वारा की गई घोषणा को सिरे से नकार सकता है, और नकारे भी क्यों ना, आखिर इन दोनों हादसों और इन जैसे अनेक हादसों को देख कर तो यही साबित होता है कि कोई भी अपनी जिंदगी की गारंटी नहीं ले सकता !
लेकिन अगर कुछ देर के लिए हम ये मान भी ले की हमारे साथ ऐसा कोई हादसा नहीं होगा और हम अपनी जिंदगी कि गारंटी ले सकते है, (हालांकि ऐसा हो नहीं सकता, यहाँ तो अगले मिनट कि का पता नहीं कि क्या हो जाए ) तो क्या फिर भी हम 150 से 200 वर्ष जीना चाहेंगे ??? अब योग गुरु बाबा रामदेव इतने वर्ष जीए तो बात समझ में आती भी है आखिर उनके इतने चाहने वाले है उनके योग शिक्षा और उनके आयुर्वैदिक ज्ञान से से ना सिर्फ हमारे देश को बल्कि अब तो दुनिया को भी लाभ हो रहा है और इसलिए उन्हें तो 200 तो क्या 400 वर्ष भी जीना चाहिए ! लेकिन एक साधारण व्यक्ति क्या इतने वर्षो तक जीना चाहेगा ??? अब अगर मैं किसी और कि बात ना करके अपनी ही बात करू तो मैं तो शायद इतने वर्ष नहीं जीना चाहूंगी लेकिन ऐसा हो भी सकता है, अगर मेरे साथ-साथ मेरा परिवार, मेरे मित्र, मेरे जीवन से जुदा हर सदस्य  और सबसे ज्यादा तो मेरे लेखो को  पदने वाला हर इंसान भी अगर 150 से 200 वर्ष जीए तो शायद ऐसा हो सकता है !!!!!!

गुरुवार, मई 20, 2010

सोशल नेटवर्किंग साईट, फायदे का सौदा !!!!!

सोशल नेटवर्किंग साईट, एक ऐसा माध्यम जहां अनजाने भी अपने बन जाते है, और जहां जा कर कई बार हमारे अपने ही हमारे अनजाने बन जाते है ! ऐसा इसलिए क्योकि कई बार हम इन सोशल नेटवर्किंग साईट पर इतना वक़्त बिताते है कि हमें हमारे अपने नज़र ही नहीं आते ! ये साईट एक ऐसा जाल है जिसमे एक बार प्रवेश करने के बाद निकलना किसी को भी अच्छा नहीं लगता, और कुछ समय पहले तक तो ये सिर्फ आम लोगो में प्रचलित थी पर अब धीरे-धीरे ये आम लोगो से निकल कर खास लोगो के बीच प्रचलित होने लगी है और  इसके कई उधाहरण रोज़ देखने को मिल रहे है ! अभी कुछ ही दिन पहले कि बात है जब अमिताभ बच्चन जी ने ट्विटर ज्वाइन किया उससे पहले सचिन तेंदुलकर ने ! दोनों ने ही पहले ही दिन अपने कई फोलोअर बना लिए ! लेकिन इन सबसे भी बड़ी बात ये है कि अब आपकी और हमारी दिल्ली ट्रेफिक पुलिस भी ट्विटर और फेसबुक से जुड़ गई है ! जो हर पल कि ट्रेफिक अपडेट आपको देती रहती है, कहाँ जाम लगा है , कहाँ बस पलटी है, कहाँ ट्रेफिक डायवर्ट किया गया है , वगेरह-वगेरह ! हालाँकि उनकी ये सारी कसरत कॉमन वेल्थ गेम के लिए है लेकिन फिर भी लोगो को दिल्ली ट्रेफिक पुलिस से सीधे जुड़ने का ये तरीका बड़ा पसंद आ रहा है ! सभी अपनी परेशानियों का सीधे-सीधे हल दूंद रहे है ! किसी को जानना है की वो अपनी गाड़ी के शिशो पर कितने mm की फिल्म चद्वाए तो किसी को जानना है की वो आज किस रास्ते ना गुजरे सभी के जवाब भी कुछ ही देर में मिल रहे है ! लेकिन बेचारी दिल्ली ट्रेफिक पुलिस उसे ये पता नही की उसने किस ओखली में सर दिया है और शायद यही बताने के लिए  दिल्ली के कुछ समझदार लोग भी है जो ये जानना  चाह रहे ही अगर उन्होंने हेलमेट नहीं पहना तो "मामा जी" कितने में मानेंगे ! हालाँकि इसका कोई जवाब नहीं मिला जबकि जवाब तो इसका भी मिलना चाहिए था ! लगे हाथ मैंने भी पूछ डाला की क्या मैं यहाँ उन "मामो " के नाम ले सकती हूँ जिन्होंने बिना वजह हम लोगो से चदावा  लिया ! लेकिन इसका भी जवाब नहीं मिला बल्कि कुछ देर बाद देखा तो ये दोनों और इन जैसे और कमेन्ट डिलीट किए जा चुके थे ! ऐसी उमीद तो नहीं थी लेकिन हुआ ऐसा ही  !
लेकिन अगर दिल्ली ट्रेफिक पुलिस खुद को मिलने वाले सभी कमेन्ट को गभीरता से तो कॉमन वेल्थ गेम तक पूरी व्यवस्था ही सुधर जाएगी, लेकिन ये " दिल्ली ट्रेफिक पुलिस" है जो हमेशा हमारे साथ रहने के स्लोगन तो लिख सकती है पर उसे निभा नहीं सकती !
खैर ये बात तो रही दिल्ली ट्रैक पुलिस की, लेकिन अगर सोच कर देखा जाए तो इस तरह की शुरुवात अगर सभी सरकारी विभाग कर दे तो हमारी सरकारी व्यवस्था काफी हद तक सुधर सकती है ! लोग सीधे तौर पर अपनी शिकायते सम्बंधित विभाग के पास पंहुचा सकते है ! जिसका सीधा लाभ लोगो तक पहुच सकेगा  और तब शायद ये भ्रष्ट होती सरकार कुछ हद तक सुधर सके ! आज तरह-तरह लोग इन साइट्स  से जुड़ कर सीधे लोगो से संपर्क साध रहे है ! अभी कुछ दिन पहले ही बाबा राम देव के राजनीति में आने की चर्चा के बाद बाबा रामदेव को लेकर कई तरह की बाते की जाने लगी कई तरह के प्रश्न  किए जाने लगे और उन सभी प्रश्नों का जवाब बाबा रामदेव ने प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के साथ-साथ सीधे ही अपने सोशल नेटवर्किंग अकाउंट पर देना शुरू किया ! जिससे लोगो को उन्हें सीधे तौर पर समझने में मदद मिली ! अगर ऐसी ही पहल आज हर राजनितिक पार्टी कर दे तो पार्टी के आलाकमान को  अपने ही कार्य्कर्तऔ के उलजलूल बयानों और उटपटांग हरकतों की वजह से शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा ! और इससे सीधे-सीधे उस पार्टी को यह भी पता चल जायेगा की किस जगह उसकी पार्टी कितनी प्रगति कर रही है ! तब कोई भी पार्टी यह नहीं कह सकेगी की वो  काम तो कर रही लेकिन कुछ लोगो की वजह से उनका किया काम सफल नहीं हो पा रहा !
शशि थरूर के मामले में अभी पिछले दिनों जो भी हुआ वो सभी ने देखा और उस पूरे मामले में ट्विटर ने एक अहम्  भूमिका निभाई ! बेशक ललित मोदी की एक ट्विट ने पूरा हंगामा खड़ा किया लेकिन उस एक ट्विट से काफी बड़ा खुलासा हो गया ! जो शायद नहीं हो पता अगर दोनों ही दिग्गज उस सोशल नेटवर्किंग साईट से ना जुड़े होते ! हालाँकि इस मामले के बाद सभी नेता इस तरह की साईट से तौबा कर चुके हो लेकिन मेरा तो मानना यही है की हमारे सभी राजनेताओ  को इस तरह की सोशल नेटवर्किंग साईट से जुड़ना चाहिए ! ताकि लोग तब सीधे ही उनसे सवाल जवाब कर सके !
अगर ऐसा होता है तो ये आने वाले समय में हमारे देश के लिए बहुत ही अच्छा प्रयोग होगा जिससे ना सिर्फ देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकेगी बल्कि आम जानता भी सही मायनो में अपने चहेतों को परख भी सकेगी !

गुरुवार, मई 13, 2010

धर्म बड़ा या कर्म फैसला आपका ........

 मुझे धर्म के नाम पर बोलना ज्यादा आता नही क्योकि या तो इसका ज्ञान मुझे नहीं है या फिर जितना है वो बहुत थोडा है और इस आधे अधूरे ज्ञान के सहारे मैं अज्ञानता नहीं फैलाऊंगी ! हाँ, लेकिन आज एक कहानी ज़रूर सुनाउंगी जिससे ये तय हो सके की जिस धर्म के लिए हम अक्सर लड़ते है,या जिस धर्म के नाम पर हमारे नेता अपना वोट बैंक भरने की जुगत में लगे रहते है  वो धर्म ज्यादा बड़ा है या फिर हमारा कर्म ! एक गाँव  में एक परिवार रहता था जिसमे सिर्फ तीन लोग थे एक बूदी  माँ उसका बेटा और उसकी पत्नी ! एक बार की बात है कुम्भ का मेला लगा हुआ था तब माँ ने अपने बेटे से इच्छा जाहिर की कि बेटा मेरी तो उम्र हो गई है सोच  रही हूँ इस दुनिया से विदा लेने से पहले कुम्भ नहा लू ! बेटा, माँ कि इस इच्छा को सुन कर बोला हाँ माँ अगर तेरा मन है तो मैं तुझे ज़रूर कुम्भ ले जाऊंगा इस पर माँ बोली नहीं ठीक है बेटा तू मेरे जाने के तयारी कर दे और बहु से कहा कि बहु मैं कुम्भ जा रही हु रास्ते में खाने के  लिए कुछ बना देना बहु को अपनी सास का कुम्भ जाना अच्छा नहीं लगा क्योकि उसे खर्चे कि चिंता थी उसने अपने पति से पूछा कि क्या बनाऊ सास के लिए तो बेटे ने बोला  लड्डू बना दो माँ को ताकि माँ को खाने कि परेशानी ना हो इस पर बहु और चिद गई उसने गुस्से में आकर अपनी सास के आटे कि भूसी के लड्डू बना दिए और अपनी सास को दे दिए ! अगले दिन बेटा अपनी माँ को लेकर कुम्भ पहुच गया और माँ को एक झोपडी में ठहरा दिया और कुछ दिन बाद ले जाने के लिए कह कर चला गया ! अब वो बूदी माँ रोज़ सुबह उठती और गंगा स्नान करके अपनी झोपडी में आकर पूजा पाठ में लग जाती जैसे ही उसकी पूजा खत्म हुई तो उसे भूख लगी और उसने खाने के लिए लड्डू निकाले जो उसकी बहु ने बना कर दिए थे परन्तु जैसे ही लड्डू खाना चाहा वैसे ही किसी ने दरवाज़े के बाहर से आवाज़ लगाई "टातरिया खाद्काऊ गोपाल लड्डू पाउ" माँ उठ कर देखा तो एक छोटा सा बालक दरवाज़े पर खड़ा था, माँ ने बड़े प्यार से उसे अपना लड्डू दे दिया ! अगले दिन जब वो बूदी माँ फिर से स्नान करके आई और फिर से अपने लड्डू निकले तो तभी वो बालक दौबारा आ गया और फिर से यही कहने लगा "टातरिया खाद्काऊ गोपाल लड्डू पाउ" माँ ने फिर से उसे अपनी थाली का लड्डू दे दिया इसी तरह रोज़ ऐसा होने लगा और इस तरह माँ के अपने साथ लाये हुए सभी लड्डू वो बालक ही खा गया ! अब कुछ दिन बाद उस माँ का बेटा उसे ले जाने के लिए आया तब माँ स्नान करने के लिए गई हुई थी तब उस बेटे ने दिखा कि झोपडी में चारो तरफ स्वर्ण मुद्राए बिखरी हुई है जब उसकी माँ स्नान करके वापस आई तब उसने अपनी माँ से पूछा माँ ये सब किसके है माँ ने कहा बेटा पता नहीं इस झोपडी में मेरे सिवा तो कोई नहीं आता तब बेटे ने वो सभी मुद्राए उठाई और अपनी माँ के साथ उन्हें भी अपने घर  ले गया ! जब उसकी बहु ने ये सब देखा तो उसने अपनी माँ को भी कुम्भ में जा कर स्नान करने के लिए कहा और अपनी माँ के लिए उसने असली घी और मेवे और गुड के लड्डू बनाये और अपने पति से कहा वो उसकी भी माँ को कुम्भ में ले जाए ! तब वो बेटा अपनी सास को लेकर कुम्भ में ले गया और उसे भी एक झोपडी में ठहरा कर कुछ दिन बाद आपने के लिए कह कर चला गया अब उस बहु कि माँ रोज़ सुबह उठती और स्नान करके झोपडी में ही बेठ कर पूजा करने लगती वो पूजा कर करके जैसे ही अपने खाने के लिए लड्डू निकलने लगी तभी दरवाजे पर से एक आवाज़ आई "टातरिया खाद्काऊ गोपाल लड्डू पाउ" तब उस बहु कि माँ ने जवाव दिया 'जा मरे, गुड घी के लड्डू धी के जमाई के तोय दोऊ या आप खाऊ" ऐसा कह कर उसने उस बालक को वहाँ से भगा दिया और इसके बाद अब रोज़ ऐसा होने लगा वो बालक रोज़ आता और रोज़ वो उसे ऐसे ही भगा देती ! अब कुछ दिन बाद उसका जमाई उसे वापस लेने आया तो उसने झोपडी में देखा तो उसे अपनी सास वहाँ ना दिखाई दी तब उसने सोचा कि वो शायद अभी स्नान के लिए गई होगी ये सोच कर उसने रुक कर थोडा इंतज़ार किया लेकिन उसकी सास नहीं आई तब उसने वहाँ आस पास के लोगो से पूछा तो उन्होंने कहा कि इस झोपडी में तो उन्होंने किसी भी औरत को नहीं देखा तब वो उस झोपडी के अन्दर गया तो  उसे वहाँ लड्डू का खाली बर्तन  मिला और वही पर उसे एक चुहिया भागती हुई दिखाई दी, जब उसने उस चुहिया को पकड़ा तो वो चुहिया झट से उसके पास आ गई और तब वो उसी खाली बर्तन और उस चुहिया को ले कर अपनी पत्नी पास गया और ले जा कर उसने वो चुहिया अपनी पत्नी को दे दी और कहा कि यही तुम्हारी माँ है !
पहली औरत ने धर्म भी निभाया  और कर्म भी लेकिन दूसरी औरत ने धर्म तो निभाया पर कर्म नहीं, वो रोज़ गंगा सनान करती रही लेकिन उसका कर्म उसके धर्म के आगे हार गया ! तो इसका क्या मतलब हो सकता है धर्म बड़ा या कर्म ????

बुधवार, मई 12, 2010

सतयुग से चली आ रही है निरुपमा .........

"यत्र नारिय्स्ते पूज्यन्ते तत्र देवता रमयंते"
जहां नारी कि पूजा होती है वहीँ देवताओं का वास होता है ! कई बार सुनी है ये बात ! नारी को पूजना मतलब नारी को भगवान् का स्थान देना और कहा भी गया है कि नारी भगवान् का दूसरा रूप होती है, लेकिन जब भगवान् के इस दूसरे रूप को पुरुष अपनी संपत्ति समझने लगे तब ???
रामायण के उत्तर काण्ड में वाल्मीकि जी द्वारा लिखा गया है कि जब भगवान् श्री राम, सीता जी को लंका विजय के बाद लेकर आये तो उन्होंने सीता जी से कहा कि "मैंने तुम्हे अपने प्रतिष्ठा कि रक्षा के लिए छुड़ाया है और अब तुम दसो दिशाओ में जहां चाहो, जा सकती हो !"
कुछ ऐसा ही संदर्भ एक और कथा में मिलता है, जब ऋषि परशुराम ने अपने पिता, जमदग्नि के कहने पर अपनी माता रेणुका का वध किया और ये वध ऋषि परशुराम द्वारा अपने पिता को अपने आज्ञाकारी होने का प्रमाण देने के लिए किया गया था !
अगर हम हिन्दू पुराण-शास्त्र पदे तो हमे ऐसे कई उधाहरण मिलेंगे जिसमे एक स्त्री को पुरुषो द्वारा अपनी प्रतिष्ठा कि रक्षा के लिए मारा या छोड़ा गया है !
अब क्योकि इतिहास खुद को दोहराता है इसलिए सतयुग से चली आ रही ये परम्परा या प्रथा आज खुद को दोहरा रही है, बल्कि यू कहे कि ये सतयुग से ही चलायमान रही है ! ये कभी समाप्त ही नहीं हुई थी !
पहले सतयुग और अब कलयुग में वर्ष-प्रतिवर्ष इसकी संख्या में इजाफा होता रहा है ! प्रतिष्ठा के लिए की जाने वाली नारी हत्याए ना सिर्फ़ भारत में बल्कि अन्य देशो में भी देखने को मिलती है, इसलिए हम यह नहीं कह सकते की प्रतिष्ठा हत्या या ओनर किलिंग जैसी विचारधारा सिर्फ भारत में ही विकसित हो रही है ! ये वर्ष-प्रतिवर्ष बदती जा रही है ! लेकिन अक्सर ये देखने में आता है की इस तरह की ओनर किलिंग का शिकार ज्यादातर महिलाए ही होती आई है !
इसकी गहराई में उतर कर जितना इसके बारे में जानने की कोशिश की ये खाई उतनी ही गहरी होती चली गई ! कितनी ही निरुपमाये आज अतीत में दफन हो चुकी है !
मई 2008 में हरियाणा के पूर्वी राज्य बल्ला गाँव में इसी तरह एक शादी-शुदा जोड़े की लड़की के परिवारवालों ने इसलिए हत्या कर दी गई क्योकि लड़का नीची जाती का था, उस वक़्त लड़की 22 सप्ताह की गर्भवती थी ! इस दोहरी हत्या के बाद लड़की के पिता और और उसके चचेरे भाइयो का कहना था की हमने जो किया उस पर हमे गर्व है क्योकि ये नेतिकता के लिए ज़रूरी था !
कैसी नेतिकता ???  9 मई को अंतर्राष्ट्रीय मदर डे था, सभी ने माँ को ख़ुशी देने के कुछ ना कुछ किया होगा सभी ने माँ को इस दिन पूजा पर उस माँ का क्या जिसकी  उसके गर्भ समेत  हत्या कर दी गई ! उसके भी अपने बच्चे के लिए कुछ अरमान रहे होंगे, क्या तब माँ की इज्ज़त करना ज़रूरी नहीं समझा गया ! यहाँ एक और तथ्य याद आता है, रामायण में बताया गया है की जब राम जी ने सीता जी को निर्वासित (त्याग) किया तब सीता जी भी गर्भवती थी !लेकन फिर भी उनका निर्वासन किया गया बिना ये सोचे की वो अपने शिशु की रक्षा कैसे करेंगी !
20 जुलाई 2007 को साउथ लन्दन में भी एक ओनर किलिंग हुई जिसमे लड़की जिसका नाम बनाज़ महमूद था, उस वक़्त गर्भवती थी और उसकी हत्या उसके पिता और चाचा द्वारा करवाई गई ! यहाँ भी मामला उंच नीच का था !
कुछ इसी तरह की घटना भागलपुर में हुई जिसमे एक साथ 8 लोगो की हत्या की गई, इसमें भी लड़का नीची जाती का था !
घटनाएं और भी है इनका कोई अंत नहीं है, आज ये ओनर किलिंग ना सिर्फ भारत में बल्कि ग्रेटब्रिटेन,ब्राज़ील,इटली,पकिस्तान,स्वीडन,अमेरिका  जैसे देशो में भी होती आ रही है ! यू एन कमीशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में 5000 हज़ार ओनर किलिंग हर साल होती है !
 आज भले ही हम इकिस्वी सदी में जी रहे है लेकिन हम फिर भी इस ऊँच-नीच के भेद को नहीं भुला पा रहे है ! यही वजह है की ये ओनर किलिंग की घटनाएं लगातार बदती जा रही है !
आज निरुपमा को इन्साफ दिलाने के लिए केंडल मार्च निकाले जा रहे है हर तरफ उसे इन्साफ दिलाने की मांग की जा रही है और पूरी उम्मीद है की निरुपमा को इन्साफ ज़रूर मिलेगा, लेकिन क्या इसके बाद किसी और निरुपमा की हत्या नहीं होगी ? क्या निरुपमा को मिला इन्साफ लोगो के लिए एक सबक बन सकेगा ? ज्यादा दिन नहीं हुए जब मनोज और बबली हत्याकांड में भी कुछ इसी तरह के इन्साफ की मांग उठी थी और दोनों को इन्साफ भी मिला, लेकिन उसके बाद क्या हुआ ? सभी जानते है गाँव की पंचायत ने दोषियों को बचाने के लिए घर-घर जा कर पैसे इकट्ठे किये !
मैं अक्सर अपने लेख में एक रास्ता, एक उम्मीद तलाश ही लेती हूँ की हाँ, आज नहीं तो कल,  ऐसा होना बंद हो जायेगा लेकिन आज ओनर किलिंग की गहराइयों जब उतर कर देखा तो इससे बाहर आने का कोई रास्ता नज़र नहीं आया बल्कि ऐसा  लग ही नहीं रहा की ये कभी ख़त्म होंगी ! मुझे ऐसा कोई रास्ता नज़र नहीं आया कि जिस पर चल कर इसे हमेशा के लिए ख़त्म करने की कोशिश  की जा सके !  लेकिन क्या आपको कोई रास्ता नज़र आ रहा है ???

मंगलवार, मई 04, 2010

सब हो जायेगा....... अपने पास जुगाड़ है !!!

अक्सर आप सभी ने ये शब्द सुना होगा और सुना क्या होगा खुद इस्तेमाल भी किया होगा हाँ भई आखिर आज के समय में बिना किसी जुगाड़ के कोई काम तो वैसे भी नहीं होता ! अब कल ही बात है  किसी को ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना था तो इसके लिए वो आरटीओ के ऑफिस का रास्ता ढूंढने के बजाये लगा कोई जुगाड़ तलाशने की कही से कोई मिल जाये तो लाइसेंस जल्दी बन जाये सही भी है अब इतनी गर्मी में सरकारी दफ्तरों के चक्कर कौन काटे, और वो भी तब जब इनके काम करने की रफ़्तार सभी जानते हो ! खेर बताने की ज़रूरत नहीं की उसका लाइसेन्स कैसे बना होगा ! आप सभी जानते है आपने भी अपने-अपने लाइसेन्स ऐसे ही किसी दलाल या किसी जुगाड़ की मार्फ़त बनवा लिए होंगे, बिना कोई ड्राइविंग टेस्ट दिए, तभी तो आजकल दिल्ली की सडको पर हर तरह का ड्राइवर उपलब्ध है !
वैसे ऐसे कितने काम है जो हम ऐसे ही जुगाड़ लगा कर कर लेते है या करवा लेते है सोचो-सोचो थोडा तो सोच कर देखो ! सोच लिया तो अब बताओ  की उन सब से किस का फ़ायदा हुआ ? ये लो जी कर दिया मैंने मूर्खो वाला सवाल अरे भई फ़ायदा तो आप ही का हुआ बस एक जुगाड़ से सब कुछ हो गया ! लाइसेन्स बन गया,राशन कार्ड बन गया, और राशन कार्ड बन गया तो वोटर आईडी भी बन गया और एक बार वोटर आईडी बन जाये तो फिर तो पासपोर्ट भी बन गया लो जी मुबारक हो इस तरह आप बन गए एक देश के नागरिक, फिर चाहे आप उस देश के नागरिक हो या नहीं लेकिन एक जुगाड़ ने आपको देश की नागरिकता दिला दी ! अब ये तो वास्तव में मिठाई बाटने वाली बात है अरे भई सीधी से बात है एक छोटी सी जुगाड़ कितने फायदे की साबित हुई ! इस एक जुगाड़ से कोई भी ऐरा गेरा नत्थू गेरा बन जाता है किसी भी देश का नागरिक, अरे नहीं-नहीं किसी भी देश का नहीं सिर्फ भारत का क्योकि ये जुगाड़ तो यही चलता है ना ! कभी सोच कर देखा है सिर्फ एक राशन कार्ड बन जाने से ही कोई भी बाहरी हमारे देश की नागरिकता कितनी आसानी से हासिल कर लेता है ! बहुत ज्यादा नहीं सिर्फ 100 -200 रूपये दे कर कोई भी आसानी से राशन कार्ड बनवा लेता है और यही वो एक सबसे बड़ा प्रूफ होता है जिससे आगे की सारी प्रक्रिया चलती है !
कभी-कभी तो अपनी इस जुगाड़ की आदत पर गर्व भी होता है और सच में फक्र से कह भी देती हूँ की हम भारतीय तो वो इंसान है जो ताले के मार्केट में आने से पहले ही उसकी  चाबी  दूंद  लेते  है, भई आखिर  हम अक्ल के धनी जो है ! इसका एक उधारण है ना बिजली के मीटर जिसकी रफ़्तार एक छोटी सी तार से ही रुक जाती है, उधारण तो और भी है लेकिन बता कर क्या फायदा आप सब समझदार है ! वैसे कितना अच्छा लगता है ये सुन कर जब अमेरिका का राष्ट्रपति भी अपने देश के नागरिको से कह देता है की अगर भारतीयों विद्यार्थियों से आगे निकलना है तो हमे उनके जैसे सोचना पड़ेगा ! बोले तो जुगाड़ी बनना पड़ेगा ! जहां किसी देश में किसी प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए विद्यार्थी गढ़ मेहनत करते है वही यहाँ के विद्यार्थी मास्टरों की जेब गर्म करते है और जो नहीं कर पाते वो मुन्ना भाई बन जाते है ! हालाँकि सभी ऐसे नहीं होते, मैंने भी अपनी डिग्रिया  मेहनत से हांसिल की है मुन्ना भाई बन कर नहीं !
अभी कुछ दिन पहले एक फिल्म आई थी जिसका नाम था "रण" और उसको देखने के बाद तो मिडिया पर से भी भरोसा उठने लगा ! वैसे भी अक्सर नेता और अभिनेता ये कह भी देते है कि हमारे बारे में गलत छापा गया तब सुन कर लगता था कि हाँ आज ये पकड़ा गया तो ऐसा कह रहा है ! लेकिन अब धीरे-धीरे चीज़े समझ आने लगी और यही याद आया कि जब "हर शाख पर उल्लू बैठा हो, तो अंजामे गुलिस्ता क्या होगा ?"
फिर सोचा कि क्यों ना इस सबके खिलाफ आवाज़ उठाई जाए तो अचानक एक और दोहा याद आया कि "अकेला चना क्या भांड फोड़े" और साथ ही साथ बाबा रामदेव भी याद आ गए जिनके इस सबके खिलाफ आवाज़ उठाने को लेकर कुछ राजनीतिज्ञों ने उन्हें सनकी तक कह दिया ! फिर अचानक टीवी पर एक विज्ञापन देखा जिसकी टेग लाइन है "आज से खिलाना बंद और पिलाना शुरू" पर ये भी कुछ असर दिखाती नज़र नहीं आ रही तो क्या करे हम भी मूक और बधिर बन कर तमाशा देखे या कुछ करे या फिर सच में इस देश का कुछ नहीं हो सकता ??????

गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

खाप पंचायत, सतयुग से कलयुग तक............

"खाप पंचायत" ये नाम तो अब लगभग सभी सुन चुके होंगे ! पिछले कुछ दिनों से ये काफी चर्चा में है और इनके चर्चा में होने का कारण है इनके जारी किये गए अनोखे फरमान, जिन्हें  लोगो द्वारा तुगलकी फरमान कि संज्ञा दी गई !
 खाप पंचायतो का इतिहास बहुत पुराना है और ये  महाभारत काल से लेकर रामायण काल और उसके बाद मुग़ल शासन का सफ़र करते हुए अब  इस इकिस्वी सदी (कलयुग) के समाज में अपने वजूद के साथ आज भी कायम है !
कहा जाता है कि जब "राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान् शिव को ना बुलाकर उनका अपमान किया गया तब पार्वती जी ये अपमान सह ना पाई और उन्होंने   यज्ञ  के हवन कुंड कि अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए थे, जब  शिवजी को ये पता लगा तो बहुत क्रोधित हुए और तब उन्होंने  वीरभद्र को ये आज्ञा दी कि वो अपनी गन सेना के साथ जा कर राजा दक्ष का यज्ञ नष्ट करके उसका सर काट दे" ! खाप पंचायतो कि ये सबसे पुरानी घटना मानी जाती है !
रामायण काल में भी इन खाप पंचायतो का उल्लेख मिलता है, कहा जाता है कि हनुमान जी कि वानर सेना वास्तव में एक सर्व खाप पंचायत ही थी जिसमे भील,कोल,वानर,रीच,जटायु,रघुवंशी आदि विभिन्न जातियों तथा खापो के लोग सम्मिलित थे लेकिन क्योकि इसमें वानर अधिक थे इसलिए इन्हें वानर सेना कहा गया ! इस सेना के अध्यक्षता  महाराजा  सुग्रीव ने कि थी और इनके सलाहकार थे वीर जामवंत !
समय के चक्र के साथ काल बदलते गए युग बदलते गए लेकिन ये खाप पंचायते हर युग में देखने को मिलती रही ! सतयुग से लेकर मुग़ल शासन और उसके बाद  अंग्रेजो  के शासन काल तक इन खाप पंचायतो के वजूद को कोई हिला ना सका ! मुग़ल काल में समाज को एक स्वस्थ वातावरण देने के लिए इन पंचायतो का सहारा लिया जाने लगा क्योकि उस समय हर व्यक्ति से राजा निजी तौर पर मिल कर समस्या हल नहीं कर सकते थे इसलिए ये खाप पंचायते ज़रूरी हो गई ! ये तब एक तरह कि प्रशासन पद्दति के रूप में काम करने लगी और गाँव तथा प्रान्तों के छोटे बड़े फैसले यही पंचायते करने लगी इसके बदले इन्हें राजाओ से ऊँचे ओहदे तथा अन्य भेट मिलने लगी ! इनके द्वारा लिए  गए हर फैसले  को इनके अधीन आने वाले सभी गाँव तथा प्रान्तों को मानना ज़रूरी था !
लेकिन भारत कि आज़ादी के बाद से इन खाप पंचायतो कि ताकतों को देश के राजनीतिज्ञों ने भली भांति भाप लिया ! और तब ये राजनीतिज्ञ इस बात को अच्छी तरह से समझ चुके थे कि पंचो  द्वारा लिया गया कोई भी फैसला गाँव के हर व्यक्ति के लिए किसी पत्थर की लकीर के समान ही था और उस लकीर को मिटाने की हिम्मत किसी में भी ना थी, और यही वजह रही की राजनीतिज्ञों द्वारा इन खाप पंचायतो का इस्तेमाल  अपने वोट बैंक को बढाने के लिए किया जाने लगा और यही से ये खाप पंचायते सियासी रूप लेने लगी जिनका लाभ राजनेताओ ने जम कर उठाया ! और आज इसकी बानगी हमे इनके तुगलकी फरमानों के रूप में देखने को मिल रही है !
आज ये खाप पंचायते हिन्दू मेरिज एक्ट में संशोधन की मांग कर रही है इनकी मांग है की सरकार "एक गोत्र में होने वाली शादियों को अवैध करार दे" क्योकि इनका मानना है की एक गोत्र के सभी लड़के और लडकिया आपस में भाई-बहन होते है फिर चाहे कितनी भी पीढ़िया क्यों ना गुजर गई हो ! अपनी इसी सोच के चलते इन्होने मनोज और बबली हत्याकांड के दोषियों को बचाने के लिए हर घर से दस दस रुपए इक्कठे किये क्योकि मनोज और बबली एक ही गोत्र के थे और इसलिए  इनके अनुसार उनकी हत्या करने वाले दोषी नहीं है बल्कि दोषी मनोज और बबली थे जिन्होंने एक ही गोत्र में शादी की ! लेकिन अगर इनकी एक गोत्र में शादी ना करने की मांग को मान लिया जाता है तो आज जितने लोग इसके समर्थन में है उतने ही शायद इसके विरोध में भी हो क्योकि दक्षिद भारत में ना सिर्फ एक गोत्र में बल्कि एक बहन अपने बेटे के लिए अपने ही भाई की बेटी को दुल्हन के रूप में भी स्वीकार करती है और वहां इसका कोई विरोध नहीं है !
लेकिन आज ये खाप पंचायते राजनेताओ के लिए अपने वोट जुटाने में बहुत मददगार साबित हो रही है जैसा की मैंने पहले भी बताया की इन पंचायतो द्वारा लिया गया कोई भी फैसला इनके अधीन आने वाले सभी गाँवो के लिए मान्य होता है तो उसी का फायदा ये राजनेता उठा रहे है क्योकि इन पांचो का एक फैसला भी तख्ता पलट करने की हिम्मत रखता है ज्यादा दिन नहीं हुए जब 84 गाँवो वाली बालियाँ खाप के प्रमुख महेंद्र सिंह टिकेट ने किसान आन्दोलन चला कर उस वक़्त पूरी सत्ता को हिला कर रख दिया था और यही वो मूल वजह है जिसकी वजह से आज ये पंचायते  आज के इस युग में ये अपना आधिपत्य स्थापित किये हुए है ! आज ये पंचायते अपना समाजिक दायित्व भूल कर सियासी रंग में रंग चुकी है और इनको रोकना मतलब अपनी सत्ता को खोने जैसा है क्योकि इनकी विरोध में जो भी सत्ता कदम उठाएगी वो शायद दोबारा देश में शासन नहीं कर पायेगी !
तो क्या आज का समाज  इनके इन तुगलकी फरमानों को यूही चुपचाप मानता रहे ???? क्योकि जब तक ये नेता इन्हें अपना वोट बैंक मानते रहेंगे तब तक तो इन पंचायतो के फैसलों में कोई परिवर्तन संभव नज़र नहीं आता दिख रहा ! इस लेख पर अन्य लोगो की प्रतिक्रिया जानने के लिए यहाँ क्लीक करे 1http://sonigarg.jagranjunction.com/author/sonigarg/

बुधवार, अप्रैल 07, 2010

नारी का आँचल

हवा में जब उड़ता ये आँचल
दिल किसी का धडकाता ये आँचल

         पायल कि मधुर थिरकन पर
          गीत मधुर गाता ये आँचल

नारी की हर ताल के संग
लहर-लहर लहराता ये आँचल

सुन चूडियो की खनक को
मंत्रमुग्ध होता ये आँचल

देख चेहरे की चमक को
दांतों तले दब जाता ये आँचल

एक बार पिया जो आये सामने
शर्मा कर रह जाता ये आँचल

नारी के उजले सौन्दर्य को
अपने में छिपाता ये आँचल

नारी का बनता पहरेदार हमेशा
उसकी शर्म हया का ये आँचल

भूले से ग़र छूले कोई बुराई
फंदा गले का बनता ये आँचल
                                                      *************

शनिवार, अप्रैल 03, 2010

Bechara salesman

 कुछ लिखना चाह रही थी  समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखू क्योकि चारो तरफ कई दिन एक शोर मचा हुआ है और वो शोर है, सानिया मिर्जा कि शादी को लेकर, मिडिया  से लेकर फेसबुक तक और हिंदी चिटठा जगत से लेकर घर-घर तक चारो तरफ बस यही चर्चा है, खेर अब मैं यहाँ और शोर नहीं करुँगी ! लेकिन हाँ इस शोर के बीच मुझे एक और शोर सुनाई दिया दरअसल मेरे पास एक फोन आया, फोन टाटा इंडिकॉम से था वो सेल्समेन दरअसल एक फोन बेचना चाहता था कोई नया मोबाईल कनेक्शन  था, जिसकी खूबियों के बारे में वो मुझे बताने लगा हालांकि मैं उसे लगातार कह रही थी कि सर मुझे कोई नया कनेक्शन नहीं खरीदना लेकिन वो तो शायद अपना टार्गेट पूरा करने कि जल्दी में था इसलिए रिक्वेस्ट करने लगा कि "मैडम, प्लीज़ ले लीजिये काम आएगा" अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ हालाँकि मैं फोन डिस्कनेक्ट कर सकती थी लेकिन मुझे ऐसा करना उस वक़्त बदमिजाजी लगा, खेर मैंने उसे कहा कि "शाम शाम को ६ बजे फोन करना सोच कर बताउंगी" और ऐसा कह कर मैंने फोन रख दिया और अपने कामो में व्यस्त हो गई ! अब जैसा कि होना था वैसा ही हुआ उसका ठीक ६ बजे फोन आ गया (लेकिन मुझे इस बात कि उम्मीद नहीं थी ) और वो फिर से शुरू हो गया "मैडम, क्या सोचा आपने, आप फोन ले रही है" बेचारे ने इतनी उम्मीद से पूछा कि एक बार सोचा कि चलो ले लू लेकिन चूँकि   मुझे किसी नए कनेक्शन कि ज़रूरत थी नहीं इसलिए इस बार मैंने उसे बिलकुल साफ़ तौर पर कह दिया कि "सर, मुझे कोई फोन नहीं लेना और आप भी कृपया अब फोन रखे" लेकिन वो तो शायद कसम खा कर निकला था कि आज वो मुझे फोन बेच कर ही रहेगा अचानक बोला "मैडम, ले लीजिये"  तब मैंने बोला ठीक है सर ले तो लू पर इसका बिल कौन भरेगा" वो बोला "मैडम,  मैं भर दूंगा"  हे ?????......."सर, क्या बात है आपकी सेलरी बढ गई है क्या" मैंने पूछा, वो बोला "नहीं, मैडम, मुझे अपना टार्गेट पूरा करना है, बस ये आखिरी बचा है और आज ये मुझे बेचना है", इस बार उसकी आवाज़ में थोड़ी परेशानी थी मैंने कहा कि "सर, मुझे वाकई ये फोन नहीं लेना" और इस बार उसने "ठीक है" कह कर फोन रख दिया ! फोन रखते समय उसकी आवाज़ में परेशानी साफ़ झलक रही थी ! शायद उस पर अपना टार्गेट पूरा करने का बहुत दबाव था, लेकिन मैं भी क्या करती, इस बार के बजट ने मेरे ऊपर भी दबाव बना कर रखा था ! लेकिन बाद में जब बेठ कर सोचा तो लगा कि आज जहां हर तरफ नए-नए शोर मचे है वहाँ उस बेचारे को बस अपना टार्गेट पूरा करना है !  वैसे हम में से ऐसे कितने लोग है जो इन सेल्समेनो कि बात ध्यान से सुनते है शायद बहुत कम, मैं भी नहीं सुनती, आखिर कब तक सुने ये बोलते ही इतना है ! घर पर भी ना जाने कितने ही सेल्समेन रोज़ बेल बजाते है, किसी को सर्फ़ बेचना है, किसी तो तेल, किसी को शेम्पू, किसी को साबुन, किसी को वाटर प्यूरीफायर, किसी को चूहे मारने कि दवा, किसी को ना जाने क्या-क्या उफ़ !!!!!!!! सच बहुत परेशान करते है ये, कई  बार तो लोग इनकी सुने बिना ही इनके मुहँ पर दरवाज़ा बंद कर देते है, हाय, कैसा लगता होगा इन बेचारो को ! एक बार खुद को इनकी जगह रख कर देखा तो महसूस हुआ कि वास्तव में इनको कितना बुरा लगता होगा लेकिन वो ये किसी भी कस्टमर को महसूस नहीं  होने देते ! अब  इनके ऊपर अपने सिनिअर का इतना दबाव होता है कि उस दबाव में आकर ये बेचारे किसी कि बात का बुरा भी नहीं मानते फिर भले ही आप इन्हें गालिया ही क्यों ना दो ! लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि वो ऐसी नौकरी करते ही क्यों है???  तब मुझे अपने कॉलेज का एक वाकया याद आ गया ! मेरी एक दोस्त थी वो एक कॉल सेंटर में काम करती थी वो बताती थी कि अक्सर कई बार कस्टमर ऐसी भाषा का प्रयोग करते है कि अगर हमे अपनी नौकरी खो जाने का डर ना हो तो हम उन्हें उन्ही कि भाषा में जवाब दे दे ! लेकिन ऐसा हो नहीं सकता ! तब मैंने उससे पूछा था कि तू ऐसी  नौकरी कर ही क्यों  रही है, जवाब मिला " अभी मेरे पास इतनी डिग्री नहीं कि कोई और अच्छी नौकरी कर संकू और जब तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती तब तक यही सही " ,"तो  मतलब तू ये नौकरी मजबूरी में कर रही है?" , तो उसने कहा "और नहीं तो क्या,  मज़बूरी ही तो है वरना कौन ये सेल्समेन कि नौकरी अपनी खुशी से करता है"  उसकी ये बात आज मुझे अचानक याद आ गई, और तब मुझे समझ आया कि उस बेचारे कि क्या  मजबूरी रही होगी,और उस पर कितना दबाव होगा  वरना वो मेरी इतनी सुनता ही क्यूँ ???
खेर,ये दबाव होता ही ऐसा है इस दबाव में आ कर लोग मज़बूरी में वो काम भी कर जाते है जो वो वास्तव में करना नहीं चाहते अब देखिये अभी-अभी खबर आई कि "आयशा सिद्दगी" के दबाव के चलते सानिया मिर्जा के परिवारवालों ने 'सानिया" और "शोहेब" का निकाह दुबई में करने का फैसला किया है !!!!!!! अब क्या बोलू फिर से ये शोर सुनाई देने लगा !!!!!!

रविवार, मार्च 28, 2010

jaago india ab to jaago
क्यों भई क्या हुआ "जागो इंडिया जागो" का स्लोगन याद आ गया ! आना ही चाहिए अब ये स्लोगन इतनी बार टीवी पर दिखाया जाता है की अब तो ये बच्चे बच्चे की जुबां पर चढ़ चुका है ! अब आप ये सोच रहे होंगे की मैं आपको ये स्लोगन क्यों याद दिला रही हूँ ! अरे भई बेचारे ये चाय ( TATA TEA) बेचने वाले अपनी चाय के साथ कितना कीमती स्लोगन बेच कर रहे है और एक हम है की मजाल हो इनकी सुने और सुने भी क्यों अब ये बेचने वाले तो ना जाने क्या क्या बेचते रहते है किस किस की सुनेंगे ???(पिछले दिनों खबर पड़ी की कोई फेसबुक पर भूत बेच रहा है, सोचा की चलो खरीद लू पर मम्मी की डांट का डर भूत के डर से ज्यादा था इसलिए नहीं खरीदे) लेकिन कभी कभी हमे इन बेचने वालो की सुन भी लेनी चाहिए आखिर ये यूही तो गला फाड़ नहीं रहे !
चलिए अब थोड़ी आसान भाषा मैं समझाती हूँ की आखिर मैं कहना क्या चाहती हूँ !
आज हम सभी सिस्टम को अनेको अनेक गालिया देते है और कारण सिस्टम में मौजूद "भ्रष्टाचार" जिसकी वजह से आज लगभग सभी ने सिस्टम को गालिया देने के मामले में पीएचडी की हुई है ! लेकिन यहाँ मेरा एक सवाल है की आखिर इस सिस्टम को ऐसा बनाया किसने ???
आज़ादी के बाद हमे जो देश मिला क्या वो ऐसा ही था ??? क्या हमारे देश का सिस्टम आज़ादी के काल से ही ऐसा है ??? जवाब होगा नहीं ! हमारा देश तो "सोने की चिड़िया" कहलाया करता था जिसके ज़र्रे ज़र्रे में खुशिया थी उस वक़्त देश का खजाना भरा हुआ था ! लेकिन धीरे धीरे हमारा खजाना खाली होता गया ये या तो लूट लिया गया या फिर कई नासमझ सत्ताधारियो की वजह से बदहाली की भेट चढ़ गया, और आज इसका आलम ये है की हमे किसी भी तरह के आयोजन के लिए भी रिजर्व बैंक से मिलने वाले क़र्ज़ का मुँह तांकना पड़ता है ! आखिर क्या वजह है इसकी की जब भी कोई सरकार सत्ता में आती है तो वो सबसे पहले यही कहती है की सरकारी खजाना खाली है और वो कुछ नहीं कर सकती इसलिए उसे तरह तरह के टैक्स वसूलने पद रहे जिससे की वो भारत पद चदा हुआ क़र्ज़ उतार सके ! वाह री सत्ता क्या हाल किया उस "चिड़िया" का जिससे लोग कभी कर्जे थे मांगते, आज वो खुद है हाथ फैलाए खड़ा !!!!
आज जो हमारे देश की हालत है, उसके पीछे क्या वास्तव में सिर्फ लालची सत्ता ही जिम्मेदार है ??? क्या इस देश की हालत के जिम्मेदार सिर्फ देश के वो नेता ही है जिन्होंने देश को लूटने में अंग्रेजो को भी कही पीछे छोड़ दिया है ??? क्या भ्रष्टाचार सिर्फ इन नेताओं की वजह से है ??? जवाब एक बार ध्यानपूर्वक सोच कर देखिये !!!
आज ये जागो इंडिया जागो का नारा अचानक तो नहीं लगा इसकी कोई तो वजह होगी ! आज जब हमे जब भी apna कोई kaam karwaana ho तो हम सबसे पहले क्या karte है dilli की bhasha में bole तो हम कोई jugaad dundte है किसी के admission से lekar naukri tak सब कुछ, bas एक jugaad से ho jaye यही तो हम chahte है फिर driving lisence से lekar IPL की ticket tak सब कुछ chahiye लेकिन bina कोई mehnat kare, aji samay kiske paas है aajkal
जब सब कुछ bus एक phone से sambhav ho तो क्या zaroorat की कोई driving test de या jaakar line में lage, तो क्या हुआ की हमारे इस khilaane के tarike से khane wala और khana sikh jaye , aji तो क्या हुआ की देश lagaatar इस bhrstachaar की gart में jata chla jaaye
हमे तो bus अपने kaam से matlab है और kaam ho jaane के बाद de denge हम भी इस सिस्टम को gaali, @#$!@ ये सिस्टम कभी नहीं sudhrega और kyu sudhre आखिर bigada भी तो हम ने ही है
लेकिन जब हम ise bigaad sakte है तो क्या ise sudharne का dam हम में नहीं है क्या हम इस सिस्टम को bachane के लिए कुछ नहीं कर sakte ???
आज kabir का likha एक doha yaad aa गया
"jyu til maahi tel है, jyu chakmak mah aag, tera saai tuj में jhak सके तो jhak"
तो जागो इंडिया जागो agar इस khaksaar की baato में zara भी dum होगा तो कोई तो zaroor jagega क्या होगा ऐसा ???????

शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

क्या दिखाना चाहती है शिव सेना
मुंबई से दिल्ली तक शिवसेना आखिर दिखना क्या चाहती है क्यों वो शाहरुख़ खान के पीछे पड़ी है सिर्फ उनके एक ब्यान से अगर शिवसेना का इतना ही देश प्रेम जाग उठा तो उस वक्त शिव सेना कहा थी जब मुंबई पर हुम्ला हुआ उस वक्त खा थी जब मुंबई डूब रही थी और तब शिवसेना खा thi जब मुंबई ko एक मजबूत और असरकारक नेता की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे कोई नजर नहीं आया जब कसाब और उसके साथी मुंबई को लहूलुहान कर रहे थे अगर तब शिवसेना चुप थी तो अब भी चुप बेठे !
वैसे भी दिल्ली आ कर इस सेना ने अपना जो हश्र करवाया है वो उनके लिए एक अचछा सबक है ! देश में ऐसा तमाशा करने वालो के साथ ऐसा ही होना चाहिए !
शाहरुख़ खान हिट शिवसेना फ्लॉप ये तो होना ही था !