मंगलवार, मई 25, 2010

क्यों जीए 150 -200 साल ????

अभी  कुछ दिन पहले किसी न्यूज़ चैनल पर  बाबा रामदेव ने ये घोषणा की है, कि वो आयुर्वेद और योग के सहारे 150 से 200 वर्ष तक जिन्दा रह सकते है, और अगर जलवायु और वातावरण  स्वच्छ हो तब तो वो 400 वर्ष तक जिन्दा रह सकते है !
अब ये घोषणा बाबा रामदेव ने की है तो कुछ तो सच होगी ही (अब यूही तो उन्हें "योग गुरु बाबा रामदेव" कहा नहीं जाता) या हो सकता है सच ना भी हो, हाँ, लेकिन आयुर्वेद और योग के सहारे 100 वर्षो तक तो जीया जा  सकता है ! इतना भरोसा तो मुझे भी आयुर्वेद और योग पर है ही ! लेकिन क्या  वास्तव में ऐसा हो सकता है ???
अगर इसे दूसरे तरीके से समझा जाए तो मेरे विचार से तो, ऐसा नहीं हो सकता ! कोई भी अपनी म्रत्यु पर विजय नहीं पा सकता ! इंसान योग और आयुर्वेद की ताकत से अपने शारीर को अंदरूनी बीमारियों से तो बचा सकता है लेकिन बाहरी बीमारियों का क्या ?? जो आए दिन इंसानों पर अपना असर दिखाती रहती है !
बाबा रामदेव की इस घोषणा के अलावा आपने एक और खबर सुनी होगी, अभी आंध्र प्रदेश और तमिल नाडू  में भयानक तूफ़ान आया "लैला", ये तूफ़ान ना जाने कितनी ही जिंदगिया  लील गया ! इसके अलावा मेंगलोर में अभी एक हवाई हादसा भी हुआ जिसमे 150 से अधिक जिन्दगिया खाक हुई और इनके अलावा और ना जाने कितने ही हादसे रोज़ होते रहते है जिसमे कितनो कि जाने जाती रहती है !
अब अगर इन तीनो खबरों पर गौर किया जाए तो कोई भी बाबा रामदेव द्वारा की गई घोषणा को सिरे से नकार सकता है, और नकारे भी क्यों ना, आखिर इन दोनों हादसों और इन जैसे अनेक हादसों को देख कर तो यही साबित होता है कि कोई भी अपनी जिंदगी की गारंटी नहीं ले सकता !
लेकिन अगर कुछ देर के लिए हम ये मान भी ले की हमारे साथ ऐसा कोई हादसा नहीं होगा और हम अपनी जिंदगी कि गारंटी ले सकते है, (हालांकि ऐसा हो नहीं सकता, यहाँ तो अगले मिनट कि का पता नहीं कि क्या हो जाए ) तो क्या फिर भी हम 150 से 200 वर्ष जीना चाहेंगे ??? अब योग गुरु बाबा रामदेव इतने वर्ष जीए तो बात समझ में आती भी है आखिर उनके इतने चाहने वाले है उनके योग शिक्षा और उनके आयुर्वैदिक ज्ञान से से ना सिर्फ हमारे देश को बल्कि अब तो दुनिया को भी लाभ हो रहा है और इसलिए उन्हें तो 200 तो क्या 400 वर्ष भी जीना चाहिए ! लेकिन एक साधारण व्यक्ति क्या इतने वर्षो तक जीना चाहेगा ??? अब अगर मैं किसी और कि बात ना करके अपनी ही बात करू तो मैं तो शायद इतने वर्ष नहीं जीना चाहूंगी लेकिन ऐसा हो भी सकता है, अगर मेरे साथ-साथ मेरा परिवार, मेरे मित्र, मेरे जीवन से जुदा हर सदस्य  और सबसे ज्यादा तो मेरे लेखो को  पदने वाला हर इंसान भी अगर 150 से 200 वर्ष जीए तो शायद ऐसा हो सकता है !!!!!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िंदगी फूलों की नहीं
    फूलों की तरह महँकी रहे.

    ये लाईनें मेरे मानस गुरु गुलज़ार साहब की हैं... और ज़िंदगी का फलसफा बयान करती हैं.एक और जगह उन्होंने कहा है कि ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नहीं.कालिदास, तुलसी दास, कबीर, महर्षि वेदव्यास, शेक्सपियर, कीट्स, शेल्ली, मोपासाँ, बाल्ज़ाक, ओ हेनरी, सार्त्रे, सिमों द बूवाँ, कुरोसावा … बस करता हूँ… इन सभी की उम्र 100 साल से लेकर 500 साल होगी और ये आज भी ज़िंदा हैं.
    आप की बात की क़द्र करता हूँ… मेरी भी यही ख्वाहिश है कि मुझे इन लोगों जितनी ज़िंदगी मिल जाए तो मालिक का शुक्रिया अदा करूँगा.
    फाइनली, न कोई जीता है, न कोई मरता है… इस नक्षत्र पर एक यात्रा है हमारी... और सितारों के आगे जहाँ और भी हैं...

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  2. हम ज्यादा बाबा रामदेव को पढते या सुनते नहीं लेकिन उनकी इज्जत करते हैं...
    अब वो 400 साल भी जिए तो पुरे दुनिया को फायदा होगा..

    लेकिन सही कहा आपने... वैसे अगर हमें जीने का मौका मिले 400 साल तो हम मना भी नहीं करने वाले...

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  3. तुमरा बिचार एकदम पर्फेक्ट है... एतना दिन जी के कोई का करेगा..अऊर जिनगी के साथ साथ युवावस्था भी रहेगा कि नहीं..ई बात का बारे में रामदेओ बाबा बोले हैं कि नहीं, का जाने!! बाकी ययाति को तो जवानियो मिल जने पर सब बेकार लगने लगा अऊर ऊ बोलाः
    भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः
    तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः।
    कालो न यातो वयमेव याताः
    तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः॥
    हमने भोग नहीं भुगते, बल्कि भोगों ने ही हमें भुगता है;
    हमने तप नहीं किया, बल्कि हम स्वयं ही तप्त हो गये हैं;
    काल समाप्त नहीं हुआ हम ही समाप्त हो गये;
    तृष्णा जीर्ण नहीं हुई, पर हम ही जीर्ण हुए हैं !
    सौ बात का एक्के बात है कि कुछ लोग मर कर भी अमर हो जाता है, अऊर कुछ लोग जिंदा होकर भी धरती का बोझ बना रह्ता है..
    ..अऊर माफी वाला बतवा त हम मजाक में बोले थे..बच्चा लोग माफी माँगते अच्छा नहीं लगता है... पाप लगेगा हमको..

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  4. लंबी उम्र जीना और अकस्मात जिंदगी का खत्म होना कुछ अलग अलग भी है....
    थोड़ा ध्यान दिलाना चाहूंगा
    ..बाबा रामदेव का कहना है कि 150 वर्ष तक जिंदा रहा जा सकता है...यानि की मौत पर विजय की बात उन्होने नहीं कही।

    योग औऱ आर्युवेद की मदद से अगर कोई हादसा न हो तो शरीर को निरोग रखते हुए पूरी आयु जी जा सकती है। इंसान सांसो की फिक्स गिनती लेकर आया है। जितना एक सांस से दूसरी सांस के बीच का अंतर होगा जीवन उतना ही लंबा होता है। प्रणायाम और योग मूलत शरीर को निरोग रखने के साथ-साथ सांसों पर नियत्रंण रखने का काम करते हैं।
    100-110 की उम्र के कई लोगो के बारे में आपने सुना होगा, जिनका स्वास्थ भले ही नौजवानो जैसा न हो, पर वो पूरी तरह स्वस्थय होते हैं। कई के तो दांत भी पूरे नहीं गिरे होते। ये फैमली में भी होता है। बालो और दांत के कारण खासतौर से। ज्योति बसु के दांत 96 साल की उम्र में भी काफी सलामत थे।

    हां कौन जिना चाहेगा..ये प्रशन है। भई अपन तो नहीं जिना चाहेंगे। हिंदु हैं सो दुबारा आएंगे ही। जितना शरीर का अब तक ख्याल रखा है उस हिसाब से तो अपन 70 पार नहीं करने वाले .वैसे भी हम अतिसधारण जीव है, प्राणी है.....हीहीहीहीही....

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  5. अपने मूँह से क्या कहें..जब तक गाड़ी चल जाये तब तक सैर सपाटे का आनन्द ले ले रहे हैं.

    अच्छा लगा आपका ब्लॉग देख कर.

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  6. सोनी जी, मनुष्य की उम्र जितनी बढ़ती जाती है उसे जीवन से उतना ही अधिक मोह होता जाता है। कम उम्र में यह कहना कि कौन इतना जीना चाहेगा बिल्कुल स्वाभाविक है किन्तु किसी बेहद वृद्ध व्यक्ति से सच सच पूछिए वह और जीना चाहेगा।
    घुघूती बासूती

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  7. धरती रत्नगर्भा है । यहाँ सब है , चाहे अभी मरो चाहे दीर्घायु प्राप्त करो ।

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  8. जितने भी दिन हम जियें, जियें चैन से ईश.
    उस दिन के पहले उठा, जिस दिन नत हो शीश..
    *
    कान अन्य के आ सकें, तब तक देना साँस.
    काम न आयें किसी के, तो हो जीवन फाँस..
    *
    वह सहस्त्र वर्षों जियें, जो हरता पर-पीर.
    उसका जीवन ख़त्म हो, दे सबको पीर..
    *
    उसका कभी न अंत हो, जिसको कहते आत्म.
    मिटा मात्र शरीर है, आत्म बने परमात्म..
    *
    सदियाँ हम मानें जिसे, वह विधि का पल मात्र.
    पानी के बुलबुले सा, है मानव का गात्र..
    *
    ज्यों की त्यों चादर धरे, जो न मृत्यु छी पाए.
    ढाई आखर पढ़े बिन, साँस न आए-जाए
    *
    ..
    Acharya Sanjiv Salil

    http://divyanarmada.blogspot.com

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  9. लोगों का काम है कहना..इस कान से सुनो उस से निकाल दो..ईष्वर नामक प्रकृति ने हमें इसीलिए दो कान दिये हैं..

    आपने सही सवाल उठाया कि इतने साल क्या करोगे ? दवाइयों का व्यापार और योग के नाम पर डोनेषन और राजनीति के लिए संभावनाएं बटोरेंगे..और कर भी क्या सकते हैं..आस्था के व्यवसाय में फूलना ही फूलना है..

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