शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

आज़ादी या सरकारी छुट्टी ???

15 अगस्त 1947  ये वो दिन था जब हमारा "भारत" आज़ाद हुआ और हमें अग्रेज़ी हुकूमत से आज़ादी मिली ! "आज़ादी", क्या है ये आज़ादी ? क्या मतलब होता है देश की आज़ादी का ? ये प्रश्न इसलिए क्योकि मैंने अग्रेज़ी हुकूमत की गुलामी नहीं देखी, देखा है तो सिर्फ आज का भारत जिसे आज़ाद(?) कहा जाता है ! मुझे नहीं पता की जब भारत गुलाम था तब वो कैसा था ? उस वक़्त के लोगो का गुलामी को लेकर क्या मनोभाव था ? उस वक़्त लोग किस हद तक अपने देश से प्यार करते थे ? उस वक़्त का  गुलामी का मंजर कैसा रहा होगा ? कितना जूनून था लोगो में अपने देश की आज़ादी को लेकर ? लोग किस कदर देश की आज़ादी के लिए अपना खून बहाने के लिए तत्पर थे ? माँए, कैसे अपने बेटो को अपने देश के लिए शहीद होने के लिए भेज दिया करती थी ? ये और इस जैसे और ना जाने कितने ही प्रश्न आज मन में उठते है क्योंकि मैंने गुलाम भारत नहीं देखा ! देखा है तो सिर्फ आज का भारत, जो की में अब देख भी रही हूँ  ! 
भारत को मिली आज़ादी  के बारे में सिर्फ वही सब जानती हूँ जो अब तक किताबो और अखबारों में पढ़ा फिल्मो में देखा  और बुजुर्गो से सुना है (और उपरवाले से ये प्रार्थना करती हूँ की फिर कभी वो मंज़र ना देखने पड़े !) उस सब पर यकीं करते हुए कहती हूँ की भारत वास्तव में एक सोने की चिड़िया हुआ करता था जहां की मिटटी सोना उगलती थी, सभी में आपसी भाई चारा था, तब हर कोई अपने देश से  प्यार करता था, अपनी आज़ादी को जीता था, भारत की आज़ादी के लिए जो शहीद हुए, तब उन्हें भगवान से कम नहीं आँका जाता था !  सभी लोग 15 अगस्त को लाल किले पर होने वाले समारोह को कोसो दूर से पैदल चल कर देखने आया करते थे ! ये था आज़ादी का वो जूनून जो बिना किसी लागलपेट के बिना किसी स्वार्थ  के सभी के अन्दर था ! ये था, वो आज़ाद भारत जिसे सोने की चिड़िया  कहा जाता था,  लेकिन  मेरे लिए तो ये  सब एक सपने जैसा ही है !
अब अगर आज के भारत की बात की जाए तो आज आज़ादी के जश्न का मतलब ही ख़त्म हो गया ! आज 15 अगस्त और 26  जनवरी जैसे दिन सिर्फ एक सरकारी छुट्टी से बढ़ कर और कुछ नही है  ! आज जब घर के बड़ो से  आज़ाद भारत की कहानी सुनती हूँ तो उस भारत और आज के भारत में एक फर्क देखने लगती हूँ क्योंकि मेरे लिए आज़ादी के बाद का भारत और आज का भारत,  जो की आज़ाद (?) कहलाता है दोनों में फर्क है !
भारत को तो आज भी सोने की चिड़िया कहा जा सकता है क्योकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और वो आज भी कृषि उत्पादन में विश्व पटल पर छाया हुआ है ! कम ही लोग जानते होंगे की भारत आज गेंहू उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है और चावल के उत्पादन में भी भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है ! विश्व में चावल और गेहूं जैसे आधारभूत अनाज के उत्पादन में  दूसरा स्थान प्राप्त करने के बाद भी आज भारत में कितने ही ऐसे लोग है जो भर पेट भोजन के लिए भी तरसते है और कितने ही ऐसे लोग है जिन्हें साफ़ सुथरा अनाज मिलता होगा ?? आज सडको चोराहो पर ना जाने कितने ही छोटे बच्चे हाथ फैलाए खड़े नज़र आते है !
ये उस भारत के हाल है जहां की मिटटी आज भी सोना उगलती है लेकिन अफ़सोस ये है की वो सोना सही हाथो  में नहीं पहुँच पाता ! ये अनाज जब खेतो से निकल कर सरकारी मंडियों से होता हुआ जब लोगो तक पहुँचता है तो उसमे से ज्यादातर अनाज तो सड़ चुका होता है और निर्यात करने के बाद जो थोडा बहुत साफ़ सुथरा अनाज बचा होता है उसकी कीमत कहीं ज्यादा होती है ! हमारे  देश में  कितने ऐसे लोग है जो गेहूं और चावल के इतने बड़े उत्पादक देश के वासी होने पर भी बासमती चावल और शुद्ध गेहूं का आटा खरीद पाते है ??
इसके अलावा भी भारत में आज भी कई ऐसी खूबियाँ है जिनके लिए हम भारत के कृषि उत्पादन का शुक्रिया अदा कर सकते है ! आज भारत ना सिर्फ गेहूं बल्कि कपास  और चीनी के उत्पादन में विश्व में तीसरे स्थान पर है लेकिन यहाँ भी यही हाल है ! ना तो किसी को साफ़ और उचित मूल्य पर चीनी मिल पाती और ना ही ऐसा कभी हुआ की कपास के इतने बड़े उत्पादक होने पर भी सर्दियों में ठण्ड से किसी की जान ना गयी हो ! आखिर इस सब की वजह क्या है ? क्यों हम लोग अपने देश की इन खूबियों को जी नहीं पाते है ! इसका एक ही जवाब होगा और वो है भ्रष्टाचार, जिसमे हमारे  देश ने विश्व में  84 वां स्थान प्राप्त किया है ! लेकिन जिस गति से ये भ्रष्टाचार अपने पैर फैला रहा है उससे तो यहीं डर है कि कहीं 84 का आंकड़ा उल्टा ना हो जाये !
ये है हमारे आज़ाद भारत का एक छोटा सा सच ! आज जो हालात देश के है और जिस क़र्ज़ में हमारा देश डूबता जा रहा है और जिन लोगो के हाथ में देश की कमान है उसके आधार पर कह सकते  है की देश ना तो राजनितिक रूप मे आज़ाद है और ना ही आर्थिक रूप में और आज की जो राजनितिक स्थिति  है उससे तो यही लगता है की देश शायद फिर से गुलाम हो जायेगा ! लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ हमारे देश के भ्रष्ट नेता और हमारा कमजोर प्रशासन ही जिम्मेदार है ??? आज भी कश्मीर और राम मंदिर जैसे मुद्दे राजनेताओ की सियासी रोटियां सेकने के काम आते है ! ये वो मुद्दे है जो अगर सुलझ गए तो नेताओ का वोट मांगने का जरिया ख़त्म हो जायेगा !
लेकिन  इसमें गलती सिर्फ इन नेताओ की तो नहीं है ! जब भी भ्रष्टाचार की बात आती है तो लोग अक्सर सफेदपोशो और खाकी वर्दी को कोसने लगते है कि इन्होने देश का सत्यानाश कर दिया ! ये देश को फिर से विदेशी ताकतों का गुलाम बना देंगे ! इन्होने ऐसा कर दिया वैसा कर दिया ये कर दिया वो कर दिया वगेरह-वगेरह ! लेकिन एक बार खुद से पूछ कर देखिये क्या हम सभी अपने देश के लिए समर्पित है ??? क्या हमारे अन्दर आज़ाद भारत की आज़ादी का जश्न बनाने का जज्बा है ??? क्या हम 15 अगस्त के अलावा कभी और अपने शहीदों  को याद कर पाते है ?? क्या हमने कभी कोई भ्रष्ट काम नहीं किया ?? क्या हमने कभी किसी को रिश्वत नहीं दी ?? क्या हमने कभी अपने गलत काम को सही करवाने के लिए सिफ़ारिशो और नोटों  का सहारा नहीं लिया ??? ऐसे और भी ना जाने कितने ही सवाल है जिनके जवाब शायद नहीं में ही होंगे  और शायद ही क्यों पक्का होंगे  ! चलिए "गाँधी जी" की कही बात को याद करते है उन्होंने कहा था "जब हम किसीपर एक ऊँगली उठाते है  तो बाकी की तीन उँगलियाँ हमारी  तरफ ही होती है !" इसके अलावा ये भी सुना ही होगा "स्वयं को सुधारो, जग सुधरेगा !" वैसे ये सब तो में अपने एक पूर्व लेख में भी कह चुकी हूँ ! जिसमे एक कमेन्ट जो  "आशीष" जी के नाम से आया था उसमे उन्होंने बड़े ही खुले अंदाज़ में अपने जुगाड़ लगाने की बात कबुली थी !
आज हमारे समाज में कई लोग ऐसे है जो इन सब चीजों  का सहारा लेते है और कोस देते है सिस्टम को लेकिन हम ये भूल जाते है कि इस सिस्टम को ऐसे बनाने वाले भी हम लोग ही है इन नेताओ का चदावा चडाने वाले भी  हम लोग ही है और कह देते है कि छोड़ो यार जैस चल रहा है चलने दो अपना काम तो हो रहा है ना बस और  क्या चाहिए ! कहीं  बम  ब्लास्ट  हो जाये  तो पहले  अपने  लोगो  कि खैर  खबर  ले  लो  वो  सब तो ठीक  है ना और जब  सभी  के ठीक  होने  कि खबर  मिल जाती  है तो यहीं  कहते  है शुक्र  है हम बच  गए  ! लेकिन कब   तक  ??? आज तो हम बच गए  क्या ये  ज़रूरी  है कि कल  किसी  और बम  ब्लास्ट  में भी हम बच  जाए  ! क्या इस आतंकवाद  को जड़  से ख़त्म  करने  में हमारी  कोई  भूमिका  नहीं  है  ??  मेरी  नज़र  में ये है हमारे   आज  के  आज़ाद  भारत कि कहानी जहां हर कोई एक दूसरे पर दोष   मड देता  है लेकिन कोई भी खुद  को सुधारने  कि कोशिश  नहीं  करता  !
आज हमारे भारत  को फिर  से आज़ादी की ज़रूरत  है और वो  आज़ादी हमें भ्रष्टाचार, आतंकवाद , घोटालो , बड़ते  अपराध , बढती  हुई  महगाई  कश्मीर और राम मंदिर जैसी और भी कई समस्याओं  से तो  चाहिए लेकिन उस  सबसे  पहले  हमें अपनी  छोटी  मानसिकता  से आज़ादी चाहिए ! जो इन सियासतदारो को  अपनी गन्दी सोच और अपनी घटिया सियासत चलाने  का मौका देती है तो उठाईये   आज़ादी कि तरफ  कदम  माना  की मुश्किल  है लेकिन नामुमकिन   तो नहीं  ! कब तक बैठे के इन मंत्रियो के सहारे ??



 

20 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा पोस्ट, सार्थक लेख.
    15 अगस्त और 26 जनवरी सरकारी या फिर स्कूलों में मनाया जाने वाला त्यौहार बन कर रह गया है. जन-जन से इसका जुड़ाव न के बराबर है.
    ..बहुत खूब.

    आपके ब्लॉग में प्रकाशित लेखों को कट-पेस्ट नहीं किया जा सकता. यह सुविधा न होने से अच्छे लगे अंश का उद्धरण देना भी संभव नहीं हो पाता.

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  2. बेहद उम्दा तरीके से कही गयी सटीक और सार्थक बात ! आपने सच कहा गलती हमारी भी है !

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  3. बेहतरीन विश्लेषण...उम्दा आलेख.

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  4. उम्दा पोस्ट
    नागपंचमी की बधाई
    सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाएं-हिन्दी सेवा करते रहें।


    नौजवानों की शहादत-पिज्जा बर्गर-बेरोजगारी-भ्रष्टाचार और आजादी की वर्षगाँठ

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  5. आपके जस्बे को सलाम!

    मुझे हमेशा लगता है कि कैसे भारतीय हैं हम? हमारे पास अपने लिये, अपने बच्चों तथा परिवार के लिये, कहीं कहीं अपनी जात-बिरादरी के लिये भी सपने हैं!!पर देश के लिये किसी आंख में सपना कम ही दिखायी पड़ता है. सपने देखने में भी इतनी कंजूसी ?? या हम अभी भी एक देश नहीं है?

    मुझे लगता है कि लोकतन्त्र का अपहरण हो गया है. जब तक देश की सारी जनता चुनाव प्रक्रिया में भाग नहीं लेती तब तक बड़े स्तर पर कुछ नहीं हो सकता. इंडिया ने पुख्ता प्रबन्ध कर रखे हैं ताकि कोई भारतीय इस चुनाव प्रक्रिया मे भाग न ले सके, 10-20 करोड़ खर्च करके आप एक एम.पी का इलेक्शन लड़ सकने लायक हो सकते हैं उस देश में जहां सरकारी रिपोर्ट कहती है कि 77% जनता 20 रुपये रोज़ पर जिन्दा है.

    महाराज की सरकार ने गरीब भूखी जनता पर रहम किया है अब 3 रुपये प्रति किलो की दर से 35 किलो गेहूं प्रति बीपीएल भारतीय परिवार प्रति माह मिलेगा (वो भी शुरुआत में 120 जिलों में ही बस),यह बाद दीगर है कि आइपीएल इंडिया मज़े से 55 रुपये प्रति लीटर का 50 लीटर पैटोल एक बार में भरवा कर अपनी लम्बी गाड़ी मे फुर्र हो जाता है.

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  6. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

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  7. बहुत ही अच्छी प्रस्तुती ,हम आजाद है भूखे मरने के लिए

    हम आजाद हैं एक निकम्मे प्रधानमंत्री के निकम्मेपन को सहने के लिए तथा उसे मोती तनख्वाह देने के लिए ...

    हम आजाद हैं शरद पवार जैसे लोगों को पूरे देश के गरीबों की रोटी को लूटने देने के लिए और ऐसे लूटेरों को मंत्री पद पर बैठाकर मोटी तनख्वाह देने के लिए ..

    इतने बेशर्म तो अंग्रेज भी नहीं थे ...?

    हमें अब सत्य बोलना होगा नहीं तो ये झूठी आजादी हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी ...

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  8. सोनी बेटा! चैतन्न बाबू त सब बात कहिए दिए हैं..हमरे लिए त कुछ बचबे नहीं किया… उनका सब बात को हमरा भी बिचार समझो.. एतना और जोड़ना चाहेंगे कि आजादी का मतलब अपने धर्म को बेहतर और दूसरे के धर्म को बदतर बताना भी हो गया है... आज़ादी इस बात का कि अगर हमरे पार्टी का सरकार पाँच दस साल रह जाए त इतिहास के किताब में अपना जीबनी छपवा दें कि हम केतना बड़ा समाज सेबी और त्याग का मूरत थे... भले इसके लिए भगत सिंह वाला चैप्टर हटाना पड़े...आज़ादी के दीवानों के बारे में त एतने बता सकते हैं कि एगो बच्चा से पूछा गया कि भगत सिंह कौन थे, त जवाब मिला राज संतोसी के फिलिम में अजय देवगन और धर्मेंदर के सिनेमा में बॉबी देओल.

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  9. ... ८४ का उल्टा ... जिस रफ़्तार से चल रहा है भ्रष्टाचार, ऎसा लगता है कि गेंहू, चावल, कपास की रेंकिंग को पीछे न छोड दे !!!

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  10. आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

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  11. कहा तो बहुत कुछ सही है सोनी..कुछ आरोपों से बचा हुआ हूं...

    रिश्वत नहीं दी...
    शहीदों को कभी भूला नहीं..
    देश के लिए सपना है..लगा रहता हूं

    दूसरी बात देश आजाद है.....गुलामी से बेहतर है....बस गड़बड़ ये हो गई है कि हम इसका मतलब कुछ और लगा रहे हैं....याद है बचपन की एक कहावत..स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर होता है..तो आज हम यही अंतर भूल गए हैं....राजनीति मे तुष्टीकरण है....इससे निजात पाने के लिए हमें ही आगे आना होगा...दूसरा नागनाथ और सांपनाथ को चुनने की जगह तीसरे, चौथे, पांचवे को चुन लें..भले ही महा त्रिशंकु संसद बने....इसी उथले हुए में से मक्खन निकलेगा..ऐसा नहीं है कि सभी सांसद बेईमान हैं.....सभी नेता बेईमान हैं..पर मुश्किल है कि जनता ही खुद उन्हें बेईमान बनने का मौका देती है..ये इंसानी कमजोरी होती है कि वो गलत काम की तरफ झुकता है। सवाल है कि ऐसा मौका ही पैदा क्यों होता है..ऐसा मौका हम खुद देते हैं....चालीस फीसदी मत क्या इशारा करते हैं....सवाल ये है कि सब चलता है कि परिपाटी छोड़कर कम से कम देश के लिए काम करते हुए कैसी थकावट.....तो उठो और कुछ करो..चाहे छोटे स्तर पर ही सही..नहीं तो ईमानदार लोगो का ही साथ दो...कुछ तो करो....

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  12. एक विचारोत्तेजक लेख । भावना से भरा । अर्थपूर्ण ! क्या हम आजाद भारत देश के नागरिक कहलाने के हकदार हैं ? इस विषय पर आपके विचारों व भावनाओं से सहमत हूँ । ईमानदार भारतीय खोजना कठिनतर हो गया है ।

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  13. soni..article par bahut mehnat ki hai jo dikh rahi hai..well done..!

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  14. bhavnapurn lekh...........lekin ye bhi sach hai, hamare pyre desh me bahut saara bhrastachar hai, bahut saari khamiyan hain lekin fir bhi ham aage badh rahe hain.......aur wo din dur nahi jab hamari ranking har jagah No. one hogi......:)

    Be POsitive..........mere blood group bhi wahi hai..:)

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  15. एक शिक्षक की नज़र से ही ये देखना संभव है...!इन नेताओं ने तो सब गड़बड़ कर दिया है..इनकी गलतियाँ कोई कितनी और कब तक सुधारे....ये तो सुधरने वाले नही है...

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  16. Hi,

    I do share the same thoughts and uploaded the poem named "anmol azadi" on my blog on 15th August.

    Regards,
    Rajat
    http://rajatnarula.blogspot.com

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