अब आज सब बैठ गए सुबह से इस मुद्दे पर अपने-अपने विचार देने और लगे हाथ मैं भी आ गई इस पर अपना teekha bol सुनाने !
तो सुनिए, अब तक सभी ने यही कहा और सुना होगा की आज के दिन हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए या फिर अपने आस पास के पेड़ो को कैसे बचाना चाहिये ! और सही भी है अगर हम इन पेड़ो की रखवाली नहीं करेंगे या इन्हें सही तरीके से सीचेंगे नहीं तो ये हमारा साथ नहीं देंगे ! लेकिन क्या सिर्फ खाद पानी दे देने भर से इनकी देखभाल हो जाती है या सिर्फ नए पेड़ लगाने भर से ही हम अपने पर्यावरण को बचा लेंगे !
कुछ आंकड़े बताती हूँ जो अभी कुछ दिन पहले एक विद्यार्थी की साइंस की और सामान्य ज्ञान की किताब में पढे थे !
- एक एयर कंडिशनर एक घंटे में 3 kg कार्बन डाई ऑकसाइड उत्पन्न करता है !
- एक गीजर एक घंटे में 3.3 kg कार्बन डाई ऑकसाइड उत्पन्न करता है !
- पूरा विश्व एक दिन 80 मिलियन बैरल तेल खर्च करता है ! ( वाहनों पर )
- अब तक 200 मिलियन हेक्टयर जंगल प्रथ्वी पर से नष्ट हो चुके है !
- तंजानिया में माउन्ट किलिमंजारो 1912 से अब तक 80 % पिघल चुका है और सन 2020 में ये पूरी तरह समाप्त हो जायेगा !
कोई भी एक बड़ा वृक्ष अपने पूरे जीवन में एक टन कार्बन डाई ऑकसाइड सोखता है ! अब ज़रा गौर करिए अगर एक वृक्ष एक टन कार्बन डाई ऑकसाइड अपने जीवन में सोख रहा है तो हम अपनी तरफ से जो कार्बन डाई ऑकसाइड पर्यावरण को तोहफे में दे रहे उसको सोखने के लिए कितने वृक्षों ज़रूरत होगी ! लम्बा हिसाब है !
हम अक्सर चिल्लाते है गर्मी है गर्मी है, कभी पर्यावरण के चिल्लाने की आवाज़ सुनी है ???? कभी सुना है धरती माँ को ये कहते की बस करो अब और नहीं सह सकती ! कभी पेड़ो को चिल्लाते सुना है ??? मत काटो हमें ! कभी सुना है अपने आस-पास के परिंदों को चिल्लाते,मत उजाडो हमारे घर ! कभी सुना है जलीय जीव को चिल्लाते मत करो मेरा घर गन्दा ! शायद सुना हो या नहीं भी सुना हो लेकिन सुन कर भी क्या फायदा,हम तो वैसे भी अक्सर पीडितो की आवाज़ अपने लाभ के लिए अनसुनी कर ही देते है !
भारतीय पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ने कहा था "एक पेड़ दस बेटो के बराबर होता है, क्योकि ये हमें दस चीज़े देता है , ऑक्सीजन,पानी,कपडा,दवाई,एनर्जी,फूल,छाया,लकड़ी,अन्न,फल,अन्य खाद्य पदार्थ !"
अब आप ही सोचिये कि सिर्फ एक दिन हम अपने पर्यावरण को याद करके कौन सा मजाक कर रहे है ?????
बड़ी अच्छी बातें लिखी हैं आपने पर गीजर व एसी का प्रयोग बंद तो नहीं किया जा सकता व न ही इसके स्थानापन्न तरीके़ दैनिक प्रयोग में (कई कारणों से) अपनाए जा सकते हैं.
जवाब देंहटाएंपर्यावरण मध्यवर्गीय समस्या प्रतीत होती है अन्यथा सरकारें व अमीर लोग भी इस पर उतना ही ध्यान देते.
मज़ाक नहीं सोनी! रस्म अदाई...यह बताने के लिए कि हम तो संजीदगी से सोचते हैं, पर क्या करें होता ही नहीं...
जवाब देंहटाएंsahee kaha
जवाब देंहटाएं"बेहतरीन और तीखा आलेख..."
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी पोस्ट है. मैं भी इस विषय पर अपने ब्लौग पर सामग्री पोस्ट करता रहता हूँ. पर्यावरण को संरक्षित रखना बहुत ज़रूरी है. मेरे बच्चे तो उस काल की कल्पना भी नहीं कर सकते जब चीज़ें अपेक्षाकृत शुद्ध थीं और हम बेखटके बारिश के पानी में छपछप कर सकते थे. अब तो इतनी अशुद्धियाँ है हर जगह कि बच्चों को धूल-धक्के में भी नहीं खेलने देते.
जवाब देंहटाएंparyaavaran divas par bahut hi upayogi post. subhakaamanaaye.
जवाब देंहटाएंbahut upyogi jankari di aapne aur bahut achhi post...mere taraph se badhayi !!
जवाब देंहटाएंphoto phoolon ka bahut sunder laga .
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